अद्यतन कृषि के कुछ महत्वपूर्ण पहलू

राष्ट्रीय बागवानी मिशन : बागवानी उत्पादों में और वृद्धि के लिए केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन नामक कार्यक्रम की मई, 2005 में शुरुआत की गयी है। इस मिशन के अंतर्गत वर्ष 2011-12 तक देश में बागवानी उत्पादन 300 मिलियन टन तथा बागवानी के अंतर्गत बुवाई क्षेत्र को 40 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

तिलहनों और ऑयल पाम पर राष्ट्रीय मिशन

आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा 3 अक्टूबर, 2013 को ‘तिलहनों और ऑयल पाम पर राष्ट्रीय मिशन’ (NMOOP-National Mission on Oilseeds and Oil Plam) के 12वीं योजनावधि के दौरान क्रियान्वयन को स्वीकृति प्रदान की गई है तथा इस उद्देश्य से 3,507 करोड़ रु. का वित्तीय आवंटन अनुमोदित किया गया है।

कृषि विस्तार एवं प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय मिशन (NMAET)

5 फरवरी, 2014 को आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा NMAET को 12वीं योजनावधि के दौरान 13,073.08 करोड़ रु. (केंद्र का हिस्सा-11,390.68 करोड़ रु. तथा राज्यों का हिस्सा-1,682.40 करोड़ रु.) के आवंटन के साथ क्रियान्वित किए जाने को स्वीकृति प्रदान की गई।

समन्वित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम .

  • वर्ष 2009-10 में शुरू किये गये ‘ समन्वित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम’ (Integrated Watershed Management Programme) को कैबिनेट द्वारा गत दिनों सरकार का फ्लैगशिप कार्यक्रम घोषित किया गया।
  • 12 पंचवर्षीय योजना (2012-17) के तहत इस कार्यक्रम के लिए 29,296 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया है।
  • इस कार्यक्रम के दायरे में देश के 60% उस वर्षा सिंचित क्षेत्र को लाया गया है, जहां भूमि अपक्षय प्रवण, कुपोषण, जल संकट, गरीबी और निम्न उत्पादकता जैसी समस्याएं अधिक हैं। कार्यक्रम में जहां केंद्रीय भागीदारी 90% होगी, वहीं राज्यों का योगदान 10% होगा।

औषधीय पौधे :

भारत में प्राचीनकाल से ही प्रयोग होने वाले औषधीय पौधों में से कुछ का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

नीम-

नीम को वनस्पति विज्ञान में अजेडिरक्टा इंडिका कहा जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में पाये जाने वाले इस वृक्ष का प्रत्येक अवयव औषधीय महत्व का होता है।

हल्दी-

घावों को शीघ्र भरने में सहायता देने वाली हल्दी में पीड़ाहारी गुण भी है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशियन द्वारा हल्दी पर किए गए शोध में कहा गया है कि इसकी एंटीआक्सीडेंट विशेषता कोषाणुओं और ऊतकों को क्षीण होने से बचाती है।

अश्वगंधा-

यह सोलेनेसी कुल का पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम विथानिया सोमनीफेरा है। अश्वगंधा में कई प्रकार के अल्केलायड पाये जाते हैं। अश्वगंधा की जड़, कौंच के बीज तथा सतावर की जड़ का पाउडर बना कर लेने से पुरुषोचित गुणों का विकास होता है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा ‘जेरीफोर्ट’ तथा ‘वन बी नामक औषधि का निर्माण किया गया है, जो ठंडे रणक्षेत्र में तैनात सैनिकों के लिए काफी लाभप्रद होता है।

सतावर-

एस्पेरागस रेसीमोसस नामक यह वनस्पति किशोरावस्था की समस्याओं की अचूक औषधि है। मासिक रक्तस्राव, दुर्बलता, दुर्गंध वृद्धि में यह लाभकारी प्रभाव छोड़ती है।

जेट्रोफा–

वानस्पतिक भाषा में जेट्रोफा को जेट्रोफा कर्कस तथा सामान्यतया रतनजोत कहते हैं। दक्षिण अमेरिका, म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देशों में पाया जाने वाला जेट्रोफा भारत में राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, झारखण्ड आदि राज्या में पाया जाता है। दाद, खाज, खुजली, गठिया, लकवा, सर्पदश, मसूड़ों के जख्म इत्यादि में जेटोफा के तेल का उपयोग किया जाता है

गिलोय-

रिनोस्फोरा कार्डिफोरिया नामक यह पौधा संपूर्ण भारत में पाया जाता है। गिलोय में बर्बेटिन एलकेलायड एवं गिलगेईन ग्लाइकोसाइड नामक रसायन पाया जाता है। गिलोय मिदोषनाशक, रक्तशोधक, अग्निदीपक होता है।

खस-खस-

खसखस का वानस्पतिक नाम वेरीवेरिया जिजेनिआयडीज है। यह भारत की मूल वनस्पति है जो प्रायः तालाबों के किनारे पाया जाता है। इसके तेल का उपयोग इत्र, शर्बत तथा साबुन बनाने में किया जाता है। मूत्र कृच्छ तथा कुष्ठ रोग में इसके रसायन का उपयोग किया जाता है।

मुलहटी-

मुलहटी एक महत्वपूर्ण एंटी आक्सीडेन्ट है। कसैले स्वाद वाले इस पादप की जड़ों तथा तनों का प्रयोग मुख्य रूप से खांसी तथा गले से संबंधित विकारों में किया जाता है। पंजाब में मुलहटी की संगठित रूप से खेती होती है। रक्तवमन, हृदयरोग, अपस्वार में मुलहटी का प्रयोग किया जाता है।

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