रासायनिक विधि से कारखानों में तैयार किए गए पादप पोषक तत्वों को उर्वरक कहा जाता है। मदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटैशियम को प्राथमिक तत्व माना जाता है। इन्हीं तत्वों की पूर्ति के लिए कृत्रिम खाद (Artificial Manures) का निर्माण किया जाता है जिसे उर्वरक कहा जाता है।
भूमि सुधारक (Soil amendment) :
भूमि सुधारकों से तात्पर्य उन सभी पदार्थों से है, जो मिट्टी की दशा में सुधार लाकर उसे न सिर्फ संवर्धित करते हैं, बल्कि पैदावार की क्षमता को भी बढ़ाते हैं। जैसे- क्षारीय एवं लवणीय ऊसर भूमि में सुधार लाने के लिए ‘जिप्सम’ अथवा ‘पाईराइट’ का प्रयोग किया जाता है। उसी प्रकार अम्लीय भूमि में सुधार लाने के लिए कैल्सिक चूना पत्थर (CaCo) या बिना बुझा चूना (Cao) प्रयुक्त होता है।
द्रव उर्वरक :
कुछ उर्वरक द्रव रूप में मिलते हैं जिन्हें सिंचाई के समय जल में मिला दिया जाता है। कुछ द्रव उर्वरकों का विशेष यंत्रों द्वारा छिड़काव भी होता है| ‘अमोनिया एनाहाइड्स नाइट्रोजन’ प्रायः द्रव के रूप में बाजार में मिलता है।
काइनाइट :
यह पोटैशियम क्लोराइड एवं मैग्नीशियम सल्फेट का मिश्रण है। इसमें 12 प्रतिशत तक पोटैशियम क्लोराइड होता है।
कैल्शियम अमोनिया नाइट्रेट :
कैल्शियम अमोनिया नाइट्रेट का मृदा पर क्षारीय प्रभाव होता है। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा 25 प्रतिशत होती है।
बाइयूरेट (Biuret) :
बाइयूरेट यूरिया खाद में पाया जाने वाला एक रसायन है जो अतिअल्प मात्रा में ही पौधों के लिए लाभकारी है। यूरिया में इसकी मात्रा 0.2 प्रतिशत तक होनी चाहिए, किन्तु 0.8 प्रतिशत तक की मात्रा हानिकारक नहीं है।
अमोनिया क्लोराइड :
मृदा में सर्वाधिक अम्लीय प्रभाव छोड़ने वाला अमोनिया क्लोराइड की मात्रा 25 प्रतिशत तक होनी चाहिए।
एन. पी. के. अनुपात:
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार कृषि में प्राथमिक उर्वरकों नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटैशियम (NPK) का उपयोग एक संतुलित अनुपात में किया जाना ही लाभकारी है। भारत के लिए यह अनुपात 4 : 2:1 है किन्तु समग्र रूप में यह अनुपात लगातार विवाद में रहा है।
जैव उर्वरक (Bio Fertilizers):
जैव उर्वरकों को कृषि क्षेत्र में विशेष महत्त्व है, क्योंकि कृषि के विकास एवं पर्यावरण संरक्षण में इनकी विशेष उपयोगिता है। ये उर्वरक वातावरण में पाई जाने वाली नाइट्रोजन एवं भूमि में पाई जाने वाली फास्फोरस को पौधों तक पहुंचा कर कृषि को संवर्धित करते हैं। जैव उर्वरक वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण (N-Fixation) तथा मिट्टी में पाए जाने वाले फास्फोरस को अधिक घुलनशील बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा ये उर्वरक हार्मोन्स और अम्लों का निर्माण कर पौधों को पोषण प्रदान करते हैं तथा मिट्टी की उत्पादकता में वृद्धि करते हैं। जैव-उर्वरकों के प्रयोग से 25 से 30 किग्रा. नाइट्रोजन की बचत प्रति हेक्टेयर की जा सकती है। जैव उर्वरकों के मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनों बैक्टीरिया होते हैं। इन जीवाणुओं को कार्बनिक पदार्थों की भरपूर मात्रा में आवश्यकता होती है, ताकि ये नाइट्रोजन के स्थरीकरण का कार्य बखूबी कर सकें। कुछ जैव उर्वरकों का विवरण आगे दिया गया है।।
नील हरित शैवाल (Blue-Green Algae) :
नील-हरित शैवाल को साइनोबैक्टीरिया भी कहा जाता है। ये निम्न श्रेणी के पादप होते हैं। ये एक कोशकीय तंतु के आकार के जीवाणु होते हैं। धान के लिए अत्यधिक लाभदायक यह शैवाल प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऊर्जा ग्रहण कर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करता है।
हरी खाद (Green Manure)
हरी खाद के उपयोग से मृदा में अनेक लाभकारी तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है। हरी । खाद के लिए टैंचा (Sesbania aculeata) तथा सनई की फसल सर्वाधिक उपयोगी है। धान के लिए कुशल किसान इसका उपयोग