इसको तीन भागों में बांट सकते हैं-
1. भारी एवं आघारभूत उद्योग
2. मध्यम आकार के उद्योग
3. लघु एवं कुटीर उद्योग (सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम)
वर्ष 2006 के बाद लघु एवं कुटीर उद्योगों को सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम के नाम से जाना जाता है।
उद्योग किसी अर्थव्यवस्था को कई प्रकार से प्रभावित करते हैं-
1. इनके द्वारा व्यापक मात्रा में व्यापार का सृजन होता है।
2. इनके द्वारा मूल्य वर्धन के माध्यम से राष्ट्रीय आय में वृद्धि लायी जाती है। यह निर्यातों में वृद्धि लाने में सहायक होते हैं।
3. यह कृषि विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
1991-92 तथा 2011-12 के बीच भारत के राष्ट्रीय आय में उद्योगों का योगदान 28 प्रतिशत रहा है जिसमें निर्माण क्षेत्र शामिल था जबकि विनिर्माण का योगदान 15-16 प्रतिशत के बीच पाया गया।
औद्योगिक नीति :- प्रथम औद्योगिक नीति अप्रैल 1948 में घोषित की गयी थी। तत्कालीन उद्योग मंत्री ने इसे प्रस्तुत किया था। इस नीति में उद्योगों को चार भागों में वर्गीकृत किया गया था।
द्वितीय औद्योगिक नीति 30 अप्रैल 1956 को घोषित की गयी। जिसमें उद्योगों का वर्गीकरण तीन भागों में वर्गीकरण किया था। वास्तव में यही नीति कांग्रेंस सरकार के शासन अवधि में प्रचलित रही। 1997 ई0 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान विकेन्द्रीकरण को महत्व दिया गया और यह माना गया कि लघु एवं कुटिर उद्योगों में रोजगार देने की असीमित क्षमता होती है। अतः उन्हें विकसित किया जाये।
1980 ई0 में औद्योगिक नीति में उदारीकरण का प्रारम्भ हुआ और अर्थव्यवस्था में औद्योगिक पुनरूद्धार प्रारम्भ हुआ। 1984-85 में औद्योगिक क्षेत्रों में तकनीकी पक्ष में सुधार और भारतीय उत्पादों को वैश्विक स्तर का बनाने का प्रयास किया गया।
नयी औद्योगिक नीति 24 जुलाई 1991 को घोषित हुई जो पिछली सभी नीतियों से भिन्न थी यह नीति उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण पर आधारित थी। इस नीति में निम्नलिखित परिवर्तन किये गये
1. औद्योगिक लाइसेन्सिंग प्रणाली को समाप्त किया गया जिससे अर्थव्यवस्था को आवश्यक नौकरशाही व्यवस्था से मुक्त किया गया।
2. नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की संख्या को कम किया गया। वर्तमान समय में रेलवे परमाणु ऊर्जा तथा परमाणु ऊर्जा सम्बन्धित खनिज केवल यही तीन क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित थे।
3 नई औद्योगिक नीति में विदेशी पूंजी एवं तकनीक के लिए अलग से नीति बनायी गयी और उन्हें आकर्षित करने का प्रयास किया गया।
4. नई औद्योगिक नीति में डत्ज्च् एक्ट को समाप्त कर दिया गया।
5. नई औद्योगिक नीति में यह लक्ष्य रखा गया कि यदि शहर की आबादी 10 लाख से अधिक तो उद्योगों का शहरी सीमा से 25 किमी0 से दूर खोला जाय।
6. 1965 से 91 के बीच भारत में मजबूत औद्योगिक आधार निर्मित हुआ। जिसके माध्यम से भविष्य में औद्योगिक विकास किया जा सके। जबकि 1965-80 के बीच औद्योगिक विकास की गति बहुत धीमी थी। वर्ष 2009-10 में औद्योगिक विकास 9.1 प्रतिशत, 2011-12 में 3.4 प्रतिशत और 2012-13 में 3.1 प्रतिशत पाया गया
लघु एवं कुटीर उद्योग :- इस उद्योग को अब सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम के नाम से जाना जाता है। रोजगार देने नियांतों में अंशदान करने तथा कुल औद्योगिक उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
1991 ई0 में कुटीर उद्योगों में निवेश की सीमा को दो लाख रूपये से बढ़ाकर 5 लाख रूपये किया गया जबकि 1997 ई0 में आबिद हुसैन समिति के सुझाव के बाद कुटीर उद्योगों में निवेश की सीमा 25 लाख रूपये की गयी।
लघु उद्योगों के लिए वर्ष 1991 ई0 में 60 लाख रूपये निवेश की सीमा निर्धारित की गयी थी जबकि अनुषर्गी उद्योगों के लिए निवेश की सीमा 75 लाख रूपये निर्धारित की गयी थी। 1997 ई0 में आबिद हुसैन समिति की सुझाव के बाद लघु उद्योग में निवेश की सीमा को बढ़ाकर 3 करोड़ रूपये कर दिया गया। बाद में वर्ष 2000 ई0 में इस सीमा को घटाकर 1 करोड़ रूपये किया गया।
लघु एवं कुटीर उद्योगों को वर्ष 2006 ई0 में सूक्ष्म लघु एंव मध्यम उद्यम के रूप में परिभाषित किया गया और इसके सम्बन्ध में MSME अधिनियम पारित किया गया।
MSMEअधिनियम के अन्तर्गत उद्योगों का वर्गीकरण दो भागों में किया गया।
1. विनिर्माण उद्यम 2. सेवा उद्यम
विनिर्माण उद्यम सेवा क्षेत्र
1. सूक्ष्म-25 लाख तक 1. सूक्ष्म-10 लाख तक
2. लघु-25 लाख-5 करोड़ 2. लघु-10 लाख-2 करोड़
3. मध्यम-5 करोड़-10 करोड़ 3. मध्यम-2 शोरा-5 करोड़
MSME अधिनियम में न केवल विनिर्माण और सेवा क्षेत्र को अलग-अलग वर्गीकृत किया गया अपितु इनके अलग-अलग वर्गों के लिए निवेश की अलग-अलग सीमाएं भी निर्धारित की गयी।
औद्योगिक गणना (Industrial Census) :- भारत में स्वतंत्रता के बाद अबतक छः बार औद्योगिक गणना की जा चुकी है। पहली औद्योगिक गणना 1997 ई0 में की गयी जबकि दूसरी 1980 ई0 में की गयी। तीसरी गणना 1990 ई0 में की गयी। चैथी 1998 पांचवी 2005 और छठी वर्ष 2011 में संपादित की गयी।
वर्ष 2000 में राष्ट्रीय कपड़ा नीति (National Taxtile Police) घोषित की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र में रही चुनौतियों का सामना करना और वैश्विक स्तर पर स्वयं को स्थापित करना था इस नीति में हैण्डलूम, हैण्डीक्राफ्ट एवं पावर लूम तीनों के अलग-अलग वृहद केन्द्र स्थापित किए गये हैं।
भारत के चार बड़े हैण्डलूम केन्द्र-
1. वाराणसी (उ0प्र0)
2. शिव सागर (असम)
3. मुर्शिदाबाद (पं0 बंगाल)
4. सिन्धु नगर (तमिलनाडु)
हैण्डी क्राफ्ट के सम्बन्ध में :-
1. मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 4. भदोही (उत्तर प्रदेश)
2. नरसापुर (आन्ध्र प्रदेश) 5. श्रीनगर (जम्मू कश्मीर)
3. जोधपुर (राजस्थान)
पावर लूम के क्षेत्र में तीन महत्वपूर्ण केन्द्र:-
1. भिवण्डी (महाराष्ट्र) 2. इराड (तमिलनाडु)
3. भीलवाडा (राजस्थान)
कुछ महत्वपूर्ण उद्योगों की स्थापना :- भारत में पहली बार की गयी-
1. सूती वस्त्र उद्योग :- 1818 ई0 में कलकत्ता में स्थापित किया गया जबकि जूट उद्योग 1855 ई0 में रिस्रा पं0 बंगाल में स्थापित किया गया। लोहा एवं इस्पात उद्योग 1997 में जमशेद में स्थापित किया गया। चीनी उद्योग वर्ष 1900 ई0 में बिहार मे स्थापित हुआ। सीमेन्ट उद्योग 1904 मद्रास में स्थापित, साइबिया उद्योग 1938 ई0 में कोलकाता में पेपर उद्योग 1812 ई0 (सरांयपुर पं0 बंगाल)।
भारत में उद्यमों के उनके प्रदर्शन के अनुसार तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता रहा है।
एकाधिकार प्रतिबंधात्मक व्यापार अधिनियम वर्ष 1970 में प्रस्तुत किया गया जिसे वर्ष 1991 ई0 में औद्यौगिक नीति में हटा लिया गया। वर्ष 2002 ई0 में प्रतियोगिता अधिनियम प्रस्तुत किया गया जिसने MRTP अधिनियम का स्थान ग्रहण किया।
10 सितम्बर 2007 को प्रतियोगिता बिल (संशोधित)रूप पास हुआ और इसकी स्थापना के बाद MRTPअधिनियम के सारे प्रावधान इसके अन्तर्गत शामिल किये गये।
भारत में 20 मई 2009 के प्रतियोगिता आयोग की स्थापना की गयी। यह एक गैर एकाधिकारी अधिभारी संख्या जिसमें पांच सदस्यों को रखा गया। वर्तमान समय में विभिन्न कम्पनियों के विलय अथवा समझौतों के पूर्व प्रतियोगिता आयोग से अनुमति लेना अनिवार्य है इसके अतिरिक्त यह विभिन्न उद्यमों में निरीक्षण से भी सम्बन्धित है।
महत्वपूर्ण उद्योग :-
हथकरघा (Hand loom)
ऊन और ऊनी कपड़े (Wool and Woolen Taxtlie)
हस्तशिल्प (Handicraft)
हथकरघा उद्यम भारत में सांस्कृतिक विरासत के रूप में जाने जाते हैं और इसके द्वारा व्यापक मात्रा में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जाते हैं। 2009-10 की हथकरघा गणना के आंकड़ों के अनुसार लगभग 43.3 लाख लोग इस क्षेत्र में रोजगार के लिए आरक्षित थे।
ऊन एवं ऊनी कपड़े :- ग्रामीण क्षेत्र पर आधारित निर्यात करने वाला संगठित उद्यम है। इस क्षेत्र में भी लगभग 27 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त हैं और यहाँ विश्व के कुल उत्पादन का 3% ऊन निर्यात किया जाता है।
हस्त शिल्प उद्यम :- रोजगार देने में हस्तशिल्प क्षेत्र का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्ष 2011-12 ई0 में इस क्षेत्र द्वारा 68.86 लाख लोगों के रोजगार प्रदान किया गया जिसमें रू0 56% महिलाएं थी। रोजगार के अवसरों में 20.8% SC वर्ग 7.5%ST वर्ग और 23.3% अल्प संख्यक वर्ग को प्राप्त हुआ।
रत्न एवं आभूषण उद्योग :– निर्यातों के सम्बन्ध में न केवल परम्परागत उद्योग के रूप में जाने जाते हैं अपितु विनिर्मित वस्तुओं के निर्यातों में इसका हिस्सा महत्वपूर्ण रहा है। जो लगभग 12% U.S.A हांगकांग UAE वेल्जियम इजराइल, जापान, थाइलैण्ड और ब्रिटेन रत्न एवं आभूषणों में सबसे बड़े आयातक देश है।
पेट्रोलियम उद्योग :- यह उद्योग भारत में सर्वाधिक तेजी से विकसित होने वाले उद्योगों में से एक है। 1956 ई0 में केवल एक तेल शोधक कारखाना असम के डिग्बोई में था। जबकि वर्तमान समय में 22 तेल शोधक कारखाने हैं। जिसमें 17 सार्वजनकि क्षेत्र तथा 3 निजी क्षेत्र और 2 ज्वाइंट 9 पद क्षेत्र के हैं। सर्वाधिक तेल शोधक क्षमता मैनलो और पानीपत में तेल शोधक कारखाने हैं। जहां यह 15 मिलियन टन पायी गयी। जबकि निजी क्षेत्र के रिफाइनरी में सर्वाधिक शोधन क्षमता रिलायन्स इंडस्ट्रीज में है। जहां 33 मिलियन टन प्रतिवर्ष इसका शोधन किया जाता है। वर्ष 2013 ई0 में उद्योगों के प्रदर्शन के अनुसार महारत्न एवं नौ रत्न कम्पनियों की सूची में परिवर्तन किया गया और भारत हैवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड BHEL & GAIL नवरत्न से महारत्न की श्रेणी में रखी गयी। इस प्रकार महारत्न कम्पनियों में कुल सात कम्पनियां शामिल थी। तीन कम्पनियों को मिनी रत्न से नवरत्न में शामिल किया गया जिसमें इंजीनियर्स इंण्डिया लिमिटेड, नेशनल बिल्डिंग कन्स्ट्रक्शन कार्पोरेशन लिमिटेड, कन्टेनर कार्पोरेशन आॅफ इण्डिया लिमिटेड। इस प्रकार नवरत्न कम्पनियों की श्रेणी में कुल 17 उद्यम हैं। मिनी रत्न उद्यमों की श्रेणी में कुल 61 कम्पनियां हैं जिसमें पहली श्रेणी में 47 उद्योग, दूसरी श्रेणी में 14 उद्योग।
किसी भी फर्म को महारत्न बनने के लिए कुश शर्तों का पालन करना अनिवार्य होता है जैसे वह कम्पनी पहले नवरत्न के रूप में रही हो, सेबी के नियमानुसार स्टाॅक एक्सचेन्ज के बाजार में पंजीकृत हो, कम से कम तीन साल लगातार 25 हजार करोड़ से अधिक का उत्पादन किया हो, कम से कम 5 हजार करोड़ रू0 का लाभ 3 सालों तक टैक्स चुकाने के बाद अर्जित किया हो और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण होते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रियाशील हो।
किसी कम्पनी को नवरत्न होने के लिए यह आवश्यक है कि वह मिनी रत्न कम्पनी की श्रेणी प्रथम में रही हो। इसे सर्वोत्तम अथवा बहुत अच्छी कम्पनी का दर्जा कम से कम 5 सालों से प्राप्त हो और प्रदर्शन सूचकांक में 100 में कम से कम 60 अंक से प्राप्त हों।
भारत के उद्योगों के सम्बन्ध में तीन नीतियां बनायी गयी हैं-
1. ऐसे उद्योग जिनका प्रदर्शन अच्छा था उन्हें सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया गया।
2. ऐसे उद्योग जो बीमार थे उन्हें औद्योगिक वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड से सम्बद्ध किया गया। 3% ऐसे उद्योग जिनमें सुधार लाना सम्भव न था उनमें विनिवेश किया गया। विनिवेश का तात्पर्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का निजीकरण करना होता है।
भारत सरकार द्वारा कोल इण्डिया लिमिटेड ONGC तथा NHPL में भी विनिवेश की प्रक्रिया अपनाई गयी। औद्योगिक क्षेत्र को वित्त की आवश्यकता कई आधार पर प्राप्त होती है जिसे दीर्घ कालीन, मध्य कालीन एवं अल्प कालीन वित्तीय आवश्यकताओं के बीच वर्गीकृत किया जा सकता है। इन्हें पूरा करने के लिए निम्नलिखित संस्थाएं क्रियाशील हैं-
- IDBI
- IFCI
- ICICI
- SIDBI
- UTI
- एक्जिम बैंक
- LIC
- GIC इत्यादि।
यदि भारत में विनिवेश स्तर का मूल्यांकन करें तो वर्ष 2012-13 में 30 हजार करोड़ रू0 का लक्ष्य विनिमेश द्वारा प्राप्त करने के लिए निर्धारित किया गया था। जबकि वास्तव में 25,879 करोड़ रू0 ही प्राप्त हुये। जबकि 2013-14 ई0 में 16 हजार करोड़ रू0 विनिवेश से प्राप्त होने का लक्ष्य था। जबकि वास्तव में 18,295 करोड़ रू0 प्राप्त हुये।
भारत में मजदूर यूनियन का यदि मूल्यांकन करें तो सबसे बड़ा मजदूर यूनियन इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस है। INTUC जो 3 मई 1947 ई0 में स्थापित हुआ और इसके सदस्य 3.33 करोड़ लोग हैं। भारतीय मजदूर संघ दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड है जो 27 जुलाई 1955 को स्थापित हुआ। इसमें 1.71 करोड़ सदस्य हो, तीसरा बड़ा संगठन आॅल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस जिसकी स्थापना 1920 ई0 में हुई। इसके सदस्यों की संख्या 1 करोड़ 42 लाख है।
संसद में वर्ष 2013 ई0 में नया कम्पनी अधिनियम पारित हुआ। इसका उद्देश्य अंशधारियों के अधिकारों को सुरक्षित करना, कम्पनी के बाजार पूंजीकरण को बढ़ावा देना और देशी कम्पनियां जिनका पूंजीकरण 500 करोड़ रू0 से अधिक है वे 2 प्रतिशत तक सामाजिक सुरक्षा पर व्यय कर सकते हैं। इस अधिनिमय में निजी क्षेत्र का अधिक से अधिक सामाजिक जिम्मेदारी देने का प्रयास किया गया।