निगमित खेती (Corporate Farming) :
राष्ट्रीय किसान आयोग ने इस प्रकार की खेती की संस्तुति अपनी रिपोर्ट में की है। निगमित खेती में खेती की व्यवस्था निगम द्वारा की जाती है। भारतीय राज्य फार्स निगम लिमिटेड कुछ राज्यों में निगमित खेती का प्रबंधन करता है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि राज्यों के कुछ क्षेत्रों में इस प्रकार की खेती की जा रही है।
कार्बनिक खेती (Organic Farming) :
कार्बनिक खेती में रासायनिक उर्वरकों, वृद्धि नियंत्रकों, कीटनाशकों, कवकनाशकों एवं शाक नाशकों आदि का बिलकुल इस्तेमाल नहीं होता। राष्ट्रीय कार्बनिक खेती परियोजना की शुरुआत 10वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत की गई। कार्बनिक खेती, सुसंगत कृषि (Precision Farming) भी कहलाती है। इसे पारिस्थितिकी कृषि के नाम से भी जाना जाता है।
दियारा खेती (Recession Farming) :
मानसून काल में बाढ़ से ग्रसित रहने वाले क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के बाद बाढ़ का पानी उतर जाने पर की जाने वाली फसलों की बुआई को दियारा कृषि कहते हैं।
शुष्क खेती (Dry Land Farming) :
20 इंच अथवा इससे कम की वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में किसानों द्वारा युक्तिपूर्ण ढंग से की जाने वाली खेती को शष्क खेती कहते हैं। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 12% भाग शुष्क जलवायु के अंतर्गत आता है भारत में शुष्क क्षेत्र मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र,कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में फर
अधिकतर ज्वार, बाजरा, या आंध्र प्रदेश में फैला है। शष्क खेती के अंतर्गत किसान पार, बाजरा, जौ, काकरागी जैसी फसलों की खेती करते समय कम पानी की आवश्यकता होती है।
जीरो टीलेज खेती (Zero Tillage Farming) :
जीरो टीलेज प्रणाली में फसल की जड को तथा अन्य अवशेष को खेत में छोड़ दिया जाता है तथा खेत की जुताई न करके जीरो टिलेज मशीन द्वारा अगले फसल की बुवाई की जाती है। धान के बाद गेहूं की, यह प्रणाली काफी लाभकारी है। इससे फसल के अवशेष रकम परिवर्तित हो जाते हैं तथा गेहूं की बुवाई कम खर्च में हो जाती है। इस प्रणाली का आविष्कार 1947 में कृषिवैज्ञानिक एडवर्ड फाकनर (अमेरिका) ने किया था।
बारानी कृषि :
बारानी कृषि से आशय वर्षाधीन कृषि से है। देश के कुल फसल क्षेत्र का लगभग 65 प्रतिशत क्षेत्र बारानी कृषि के अंतर्गत आता है। इन क्षेत्रों में ऐसी फसल पद्धति अपनाई जाती है जो पूरी तरह से बर्षा पर निर्भर करती है। इसके अंतर्गत मुख्यतः धान, ज्वार, बाजरा, दालें, तिलहन तथा कपास जैसी फसलें उगाई जाती हैं।
हरित गृह कृषि (Green House Agriculture) :
इस तकनीक के अंतर्गत नियंत्रित पर्यावरणीय परिस्थितियों के अंतर्गत कषि कार्य किया जाता है हरित गृह के लिए हरित गृह का निर्माण किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए यह महंगी प्रणाली है। विश्व में सर्वाधिक हरित गृह कृषि जापान में (42,000 हेक्टेयर) की जाती है। उसके बाद स्पेन (24,000 हेक्टेयर) और फिर अमेरिका में (4000 हेक्टेयर) की जाती है।
समोच्च खेती (Contour Farming) :
समोच्च खेती से तात्पर्य उस खेती से है, जो कि ढाल के विपरीत कण्टूर रेखा पर कर्षण क्रिया द्वारा की जाती है। समोच्च खेती प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। कृषि की इस विधि द्वारा जहां कम वर्षा वाले क्षेत्रों में नमी को सुरक्षित रखा जा सकता है, वहीं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिट्टी के क्षरण को भी कम किया जा सकता है।
स्थानान्तरण शील कृषि (Shifting Cultivation):
यह कृषि की अति प्राचीन विधि है, जिसका अस्तित्व मानव सभ्यता के शुरुआती काल से जुड़ा हुआ है। जैसा कि नाम से ही विदित होता है, कृषि की इस विधि में पहले किसी वन-खण्ड को साफ किया जाता है। फिर वहां की झाड़ियों-वृक्षों आदि को जला दिया जाता है। इस प्रकार वह खण्ड एक छोटे आकार के खेत में बदल जाता है। साफ की गई भूमि पर तब तक खेती की जाती है, जब तक कि वहां की उर्वरा-शक्ति समाप्त नहीं हो जाती है। इस प्रकार की खेती के लिए उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय वन क्षेत्र अनुकूल माने जाते हैं। भारत के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि का चलन अधिक है स्थानान्तरणशील कृषि को ‘झूमिंग कृषि’, ‘बुश फेलो कृषि’ एवं ‘काटना-जलाना कृषि’ नाम से भी जाना जाता है।