गांधी-दास पैक्ट: नवम्बर 1924
फरवरी 1924 में स्वास्थ्य कारणों से जेल से रिहा होने के पश्चात् नवम्बर 1924 में गांधीजी, सी.आर. दास एवं मोतीलाल नेहरू ने मिलकर एक संयुक्त वक्तव्य प्रस्तुत किया। इसे गांधी-दास पैक्ट के नाम से जाना जाता है। इसकी मुख्य बातों में विधानसभाओं के भीतर स्वराज पार्टी को कांग्रेस के नाम तथा इसके अभिन्न अंग के रूप में कार्य करने का अधिकार प्रदान किय गया। इस पैक्ट की दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता यह भी थी कि इसमें यह कहा गया था कि असहयोग अब राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं रहेगा। इसके अतिरिक्त ’आॅल इंडिया स्पिनर्स एसोसिएशन’ को संगठित करने तथा चरखे व करघे का प्रचार-प्रसार करने की जिम्मेदारी गांधीजी को सौंपी गयी। सन् 1924 ई0 के बेलगाँव अधिवेशन, जिसकी अध्यक्षता गांधीजी द्वारा की गई थी, में इस पैक्ट की प्रमुख बातों की पुष्टि की गई।
अन्य राजनीति दल एवं आंदोलन, 1922-27
स्वराज पार्टी के अतिरिक्त 1922-27 की अवधि के मध्य कई अन्य राजनीतिक दलों का उदय हुआ, जिनका विवरण निम्नवत् है-
अखिल-भारतीय मुस्लिम लीग
सन् 1924 में तुर्की में मुस्तफा कमालपाशा के नेतृत्व में खलीफा के पद या खिलाफत को समाप्त कर दिए जाने के उपरांत ’भारतीय खिलाफत समिति’ ने कार्य करना बंद कर दिया। परिणामस्वरूप, 1924 ई0 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का पुनरूत्थान हुआ और मुहम्मद अली जिन्ना इसके नेता के रूप में उभरे।
हिन्दू महासभा
पंडित मदनमोहन मालवीय ने 1915 ई0 में हरिद्वार में ’हिनदू महासभा’ की स्थापना की। कासिम बाजार के महाराजा की अध्यक्षता में इसका प्रथम सम्मेलन आयोजित किया गया। दिसम्बर 1924 में पंडित मदनमोहन मालवीय के अध्यक्ष बनने के उपरांत यह दल बहुत अधिक प्रभावशाली हो गया।
राष्ट्रीय उदारवादी लीग
तेज बहादुर सप्रू, विपिनचंद्र पाल तथा श्रीनिवास शास्त्री इत्यादि उदारवादी नेताओं द्वारा 1918 ई0 में कांग्रेस से अलग होने के पश्चात् राष्ट्रीय उदारवादी लीग का गइन किया गया, जो कालांतर में ’अखिल भारतीय संघ’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इन्होंने सरकार के साथ सहयोग की नीति का अनुसरण किया। 1923 ई0 के चुनावों के उपरांत इस पार्टी का पूर्णतः सफाया हो गया।
यूनियनिस्ट पार्टी
इस पार्टी का गइन पंजाब में भू-स्वामी वर्गों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था। 1937 ई0 के चुनावों में मुस्लिम लीग तथा यूनियनिस्ट पार्टी ने पंजाब में मिली-जुली सरकार की स्थापना की।
अकाली आंदोलन
यह 1922-27 ई0 के मध्य हुए आंदोलनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। इस आंदोलन का उद्देश्य सिख गुरुद्वारों को अंग्रेज समर्थक एवं भ्रष्ट आनुवंशिक महन्तों के चंगुल से मुक्त करना था। इस आंदोलन के उग्र स्वरूप को देखते हुए ब्रिटिश सरकार को यह भव्य उत्पन्न हो गया कि यह आंदोलन ब्रिटिश सेना में कार्यरत सिख सैनिकों तथा कृषकों में असंतोष उत्पन्न कर सकता है। परिणामस्वरूप जुलाई 1925 में एक विधेयक पारित किया गया जिसके अंतर्गत ’शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति’ की स्थापना की गयी। इस विधेयक के प्रावधानों के अंतर्गत गुरुद्वारा के प्रबंधन तथा पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं के चुनाव का अधिकार सिख समुदाय के व्यक्तियों को सौंप दिया गया।
बोरसाद आंदोलन
यह आंदोलन गुजरात के खेड़ा जिले के बोरसाद नगर में डकैती से रक्षा के बदले पुलिस द्वारा वयस्क व्यक्तियों पर लगाए गए ’व्यक्ति कर’ के भुगतान के विरूद्ध किया गया। अपने स्वरूप में गांधीवादी प्रतीत होने वाला यह आंदोलन सफल रहा। अत्यधिक सामाजिक दबाव के परिणामस्वरूप सरकार द्वारा 1923 ई0 में यह कर समाप्त कर दिया गया।
वायकूम सत्याग्रह
टी0 के0 माधवन, के.के. केलप्पन तथा के.पी. केशव मेनन के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन का उद्देश्य श्रमिक निम्न जातियों (एझवाओं) एवं अछूतों द्वारा गाँधीवादी तरीके से त्रावणकोर के एक मंदिर के निकट की सड़कों के उपयोग के बारे अपने अधिकारों को प्राप्त करना था। गांधीजी द्वारा मार्च 1925 में वायकूम का दौरा किया गया। यह आंदोलन सरकार द्वारा (20 माह पश्चात्) अलग से सड़क बनाने के उपरांत समाप्त हो गया। यह मंदिर-प्रवेश संबंधी पहला आंदोलन था।
नागपुर झंडा सत्याग्रह
1923 ई0 में सरकार द्वारा नागपुर में कांग्रेस द्वारा अपने ध्वज के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाए जाने वाले एक स्थानीय आदेश के विरोध में यह सत्याग्रह शुरू हुआ। गुजरात से आंदोलनकारियों के दस्ते नागपुर भेजे गए ताकि सरकार समझौते के लिए बाध्य हो सके।