चुम्बकत्व (Magnets)
चुम्बकत्व (Magnets) :- लोहे का एक अयस्क मैग्नेटाइट (Fe3O4) प्रकृति में मुक्त रूप से पाया जाता है इसे प्राकृतिक चुम्बक कहते हैं। प्राकृतिक चुम्बकों में आकर्षण बल बहुत कम होता है तथा इनकी कोई निश्चित आकृति नहीं होती है अतः ये कम उपयोगी होती हैं। आजकल लोहे, निकिल व फौलाद से कृत्रिम चुम्बक बनाये जाते हैं जो काफी शक्तिशाली होतें हैं तथा इन्हें कोई भी आकार दिया जा सकता है। स्वतंत्रतापूर्वक लटका हुआ चुम्बक सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरता है। चुम्बक का जो सिरा सदैव उत्तर की ओर रहता है उसे उत्तर खोजी ध्रुव या उत्तरी ध्रुव कहतें हैं तथा दक्षिण में रहने वाले सिरे को दक्षिणी ध्रुव कहतें हैं। चुम्बक के इन्हीं ध्रुवों पर चुम्बकत्व सबसे अधिक होता है। यदि दो चुम्बकों को पास लाया जाये तो उनके समान ध्रुवों के बीच प्रतिकर्षण होता है तथा असमान ध्रुवों के बीच आकर्षण होता है। किसी शक्तिशाली चुम्बक को नर्म लोहे के समीप ले जाने पर नर्म लोहा एक चुम्बक की तरह व्यवहार करने लगता है। इस घटना को चुम्बकीय प्रेरण (Magnets Induction) कहतें हैं। चुम्बक में हमेशा दो ध्रुव उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव पाये जाते हैं। एक विलग चुम्बकीय ध्रुव का कोई अस्तित्व नहीं होता है। जैसे यदि हम किसी दण्ड चुम्बक को बीच से तोड़ दे तो उसके उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव अलग-अलग नहीं जायेगें बल्कि प्रत्येक भाग एक पूर्ण चुम्बक होगा जिसमें दोनों ध्रुव होगें।
विघुत चुम्बक (Electro magnate) :- विघुत चुम्बक एक कार्ड-बोर्ड अथवा मोटे कागज की नलिका के ऊपर ताॅबें के विघुत-रूद्ध (धागा लिपटा अथवा प्लास्टिक चढ़ा) तार के बहुत से फेेरे लपेट कर बनाया जाता है। जब इस कुण्डलनी पर किसी सेल के द्वारा धारा प्रवाहित की जाती है तो यह एक दण्ड चुम्बक की भाॅति व्यवहार करने लगती है।
चुम्बकीय क्षेत्र एवं चुम्बकीय बल रेखायें (Magnetic field & Magnetic Lines of force) :- किसी चुम्बक के चाारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें किसी चुम्बकीय सुई पर एक बल आघूर्ण आरोपित होता है जिसके कारण वह घूमकर एक निश्चित दिशा में ठहरता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक न्यटन प्रति एम्पियर प्रति या गाॅस होता है। चुम्बकीय बल रेखायें चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता तथा दिशा को प्रदर्शित करती हैं। ये सदैव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकल कर वक्र बनाती हुई दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं और चुम्बक के अन्दर से होती हुई पुनः उत्तरी ध्रुव से निकल जाती हैं। चुम्बक के ध्रुव के समीप जहाॅ चुम्बकीय क्षेत्र तीव्र होता है ये पास-पास होती हैं तथा ध्रुवों से दूर जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता घटने के कारण ये दूर हो जाती हैं। इन रेखाओं की एक अन्य विशेषता है कि ये दूसरे को कभी काटती नहीं हैं।
चुम्बकीय क्षेत्र में आवेशित कण की गति एवं उस पर लगने वाला बल चुम्बकीय क्षेत्र में कोई आवेशित कण वृत्ताकार कक्षा में गति करता है और उस पर एक बल F कार्य करता है जिसे लारेंज बल भी कहते हैं। लगने वाले बल का परिमाण निम्न सूत्र से ज्ञात करते हैं-
F = q v B Sinθ
v – कण का वेग
q – कण पर आवेश
B – चुम्बकीय क्षेत्र
Sinθ वेग तथा चुम्बकीय क्षेत्र के बीच बनने वाला कोण
चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल चुम्बकीय क्षेत्र में यदि कोई धारावाही चालक जिसकी लम्बाई L है तथा उसमें I धारा प्रवाहित हो रही है तो उस पर लगने वाला बल होगा।
F = I B L Sinθ
चुम्बकीय पदार्थ :- फैराडे ने विभिन्न पदार्थों के चुम्बकीय गुणों का अध्ययन कर उन्हें तीन वर्गोंं में विभाजित किया है। ये चुम्बकीय पदार्थ निम्नलिखित हैं-
प्रति चुम्बकीय पदार्थ (Dia Magnetic material ) :- वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की विपरीत दिशा में थोड़ा सा चुम्बकित होते हैं तथा किसी शक्तिशाली चुम्बक के समीप लाने पर थोड़ा सा प्रतिकर्षित होते हैं। प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे जस्ता, ताॅबा चाॅदी, हीरा, सोना, नमक, जल पारा, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, विस्मथ आदि।
अनुचुम्बकीय पदार्थ (Para Magnetic material) :- वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में ही थोड़ा सा चुम्बकित हो जाते हैं तथा किसी शक्तिशाली चुम्बक के समीप लाने पर सिरे की ओर आकर्षित होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे सोडियम, एल्युमीनियम, आक्सीजन, प्लैटिनम, मैंगनीज, काॅपर क्लोराइड आदि।
लौह चुम्बकीय पदार्थ (Eerro Magnetic material) :- वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में प्रबल रूप से चुम्बकित हो जाते हैं तथा किसी चुम्बक के समीप लाने पर सिरे की ओर तेजी से आकर्षित होते हैं लौह चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे लोहा कोबाल्ट, निकिल, मैग्नेटाइट (Fe3O4) आदि। लौह चुम्बकत्व का कारण लौह चुम्बकीय पदार्थों के परमाणुओं में होने वाली कुछ ऐसी जटिल क्रियायें हैं जिनके कारण पदार्थ के परमाणुओं के असंख्य अति सूक्ष्म आकार के प्रभावी क्षेत्र बन जाते हैं जिन्हें डोमेन कहतें (Domains) हैं। प्रत्येक डोमेन में 1017 से 10²¹ तक परमाणु होते हैं। लौह चुम्बकीय पदार्थों का चुम्बकीय गुण इन्हीं डोमेनों के परस्पर प्रतिस्थापन व घूर्णन से होता है।
क्यूरी ताप (Curie temperature) :- वह ताप जिस पर किसी लौह चुम्बकीय पदार्थ को गरम करने पर उसका लौह चुम्बकीय गुण एकाएक लुप्त हो जाता है तथा पदार्थ अनुचुम्बकीय हो जाता है और ठंडा करने पर पुनः लौह चुम्बकीय हो जाता है, क्यूरी ताप कहलाता है। लोहे का क्यूरी ताप 770ºC तथा निकिल 360ºC होता है।
नर्म लोहा एवं फौलाद का चुम्बकीय गुण :- यदि हम दो समान आकार की नर्म लोहे एवं फौलाद की छडें लेकर उन्हें बारी-बारी से एक परिनलिका में रख कर चुम्बकित करें तो देखते हैं कि नर्म लोहे की छड़ आसानी से चुम्बकित हो जाती है परन्तु फौलाद की छड़ कम चुम्बकित हो जाती है लेकिन परिनलिका में धारा प्रवाह बन्द करने पर नर्म लोहे की छड़ तुरन्त विचुम्बकित हो जाती है लेकिन फौलाद की छड़ में चुम्बकीय गुण बना रहता है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि नर्म लोहे के डोमेन चुम्बकीय क्षेत्र में आसानी से संरेखित हो जाते हैं तथा चुम्बकीय क्षेत्र हटाने पर तुरन्त डोमेन अपने पुराने क्रम में व्यवस्थित हो जाते हैं लेकिन फौलाद में डोमेन जल्दी संरेखित नहीं होते हैं और एक बार संरेखित हो जाने के बाद वे आसानी से (चुम्बकीय क्षेत्र हटाने के बाद) अपने पुराने क्रम में व्यवस्थित नहीं होते हैं। नर्म लोहे से अस्थायी चुम्बकों का निर्माण किया जाता है जिनका उपयोग बिली की घंटी में, टेलीफोन अभिग्राही व रिले में तथा ट्रांसफार्मर व डायनमो के क्रोड में किया जाता है। फौलाद से स्थायी चुम्बकों का निर्माण किया जाता है जिनका उपयोग दिक्सूचक, लाउडस्पीकर तथा विद्युत मापक यंत्रों के स्थायी चुम्बक बनाने में किया जाता है।
भू-चुम्बकत्व (Earth’s Magnetism) :- हमारी पृथ्वी इस प्रकार व्यवहार करती है जैसे उसके अन्दर कोई बहुत बड़ा चुम्बक रखा हो इसकी पुष्टि करने वाले तथ्य हैं जैसे चुम्बकीय सुई का सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरना, पृथ्वी में गड़े लोहे के टुकड़े का चुम्बक बन जाना आदि। पृथ्वी के चुम्बकत्व के बारे में अभी तक कई विचार प्रतिपादित किये गये हैं परन्तु वैज्ञानिक अभी तक इसका कोई निश्चित कारण नहीं बता पाये हैं। पृथ्वी के चुम्बकत्व के निम्नलिखित तीन अवयव होतें हैं-
(1) दिक्पात का कोण (Angle of Declination) :- यह किसी स्थान पर चुम्बकीय यामोत्तर तथा भौगोलिक यामोत्तर के बीच का कोण है।
(2) नति या नमन कोण (Angle of Declination) :-पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा तथा क्षैतिज दिशा के बीच बनने वाले कोण को कहतें हैं।
(3) पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक :- किसी स्थान पर चुम्बकीय यामोत्तर में कार्य करने वाले पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक H =Be Cos θ होता है।
विघुत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) :- जब किसी कुण्डली तथा चुम्बक के बीच सापेक्ष गति होती है कुण्डली में एक विघुत वाहक बल उत्पन्न होता है जिसे प्रेरित विघुत वाहक बल कहतें हैं तथा इस घटना को विघुत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं। यदि कुण्डली एक बन्द परिपथ में है तो इस प्रेरित विघुत वाहक बल के कारण कुण्डली में धारा प्रवाहित होने लगती है जिसे प्रेरित धारा कहते हैं।
भंवर धारायें (Eddy current) :- जब कोई धातु का टुकड़ा किसी परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित होता है तो धातु के सम्पूर्ण आयतन में प्रेरित धारायें उत्पन्न हो जाती हैं जो कि धातु के टुकड़े की गति का विरोध करती हैं। इन धाराओं को भॅवर धारा कहा जाता है। ये धारायें इतनी प्रबल हो सकती है कि धातु के टुकड़े को पिघला सकती हैं।