ज्वालामुखी (Valcano)
ज्वालामुखी का अर्थ है-जिसके मुख से आग निकलती हो। ज्वालामुखी का संबंध उस गोल छिद्र से है, जिसके द्वारा पृथ्वी के भू-गर्भ से तप्त तरल लावा या मैग्मा, गैस, जल तथा चट्टानों के टुकड़े जो गर्म पदार्थ के रूप में धरातल की सतह पर प्रकट होते हैं ज्वालामुखी कहलाते हैं। जबकि ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत पृथ्वी के भू-गर्भ में स्थित लावा एवं गैस की उत्पत्ति से लेकर आन्तरिक एवं वाह्य दोनों क्रियायें सम्मिलित हैं। ज्वालामुखी क्रियाओं का अध्ययन Valcanology के अन्तर्गत होता है।
Magna,Vent से बाहर निकलता है और Magna निकलने के बाद जब vent का विस्तार होता है तब उसे Creater कहते हैं और Creater का विस्तृत रूप कहलाता है।
Creater का आकार कीपाकार होता है जबकि Coldera का आकार कड़ाहानुमा होता है।
ज्वालामुखी छिद्र (Vent) से पृथ्वी के भतीर के पदार्थ बाहर निकलकर धरातल पर जमा होते रहते हैं जिससे शंकु के आकार का ढेर बन जाता है इसे ज्वालामुखी शंकु(Valcariecone) कहते हैं और Volcanic Coneके बृहद रूप से निर्मित स्थलाकृति को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।
ज्वालामुखी उदगार का कारण
- भू-गर्भ में ताप की वृद्धि।
- लावा की उत्पत्ति।
- पृथ्वी के भू-गर्भ में गैसों और जलवाष्प का पाया जाना।
- प्लेट विवर्तनिकी।
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ
- . गैस (CO2, SO2, N2 ,)और जलवाष्प, सर्वाधिक मात्रा जलवाष्प ;60.65% की होती हैं।
- विखण्डित पदार्थ:- बम्म, ब्रेसिया, स्कोरिया, लैपिली, टफ, ट्रैप और झमक। इनके सम्मिलित रूप को पाइरोक्लास्ट कहा जाता है।
- लावा: अम्लीय लावा and क्षारीय लावा
अम्लीय लावा:- ये लावा अधिक ताप पर अपक्षरित (विस्तार) होगें और कम समय में Solid हो जाते हैं। कम समय में Solid होने के कारण इनका विस्तार कम होता है। अम्लीय लावा का रंग पीला होता है। ये मोटा होता है।
क्षारीय लावा:- ये कम ताप पर अपक्षरित होते हैं और ये पतले होते हैं इसलिए इनका फैलाव ज्यादा होता है।
इनका रंग काला होता है। हवाई द्वीप का मोनालोआ शंकु इसका उदाहरण है।
ज्वालामुखी के प्रकार
- उदगार के आधार पर
- केन्द्रीय उद्भेदन
- दरारी उदगार
केन्द्रीय उद्भेदन:– जब केन्द्र से डंहउं किसी छिद्र के माध्यम से बाहर निकलता है तो इससे निर्मित ज्वालामुखी को केन्द्रीय उद्भेदन द्वारा निर्मित ज्वालामुखी कहते हैं।
केन्द्रीय उद्भेदन द्वारा जो ज्वालामुखी का रूप बन वह रहा है तीव्रता के आधार पर इस प्रकार है-
- हवायन तुल्य ज्वालामुखी
- स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी
- बालकैनो तुल्य ज्वालामुखी
- विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी
- पीलियन तुल्य ज्वालामुखी
(1) हवायन तुल्य- ज्वालामुखी सबसे कम तीव्रता का ज्वालामुखी है जबकि पीलियन तुल्य ज्वालामुखी सबसे तीव्र और विनाशकारी तीव्रता का ज्वालामुखी है। हवायन तुल्य ज्वालामुखी का उदाहरण मोनालोवा ज्वालामुखी है जो हवाई द्वीप में हैं।
(2) स्ट्राम्बोली तुल्य- ज्वालामुखी का उदाहरण स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी ही है जो भू-मध्य सागर पर लिपारी द्वीप पर है। बालकैनो तुल्य ज्वालामुखी का उदाहरण बालकैनो ज्वालामुखी है जो भू-मध्य सागर के लिपारी द्वीप पर है।
(3) विसुवियस तुल्य- ज्वालामुखी का उदाहरण क्सिुवियस ज्वालामुखी ही है जो इटली में है।
(4) पीलियन तुल्य- ज्वालामुखी का उदाहरण क्राकाटोआ ज्वालामुखी है जो इण्डोनेशिया में जावा और सुमात्रा को अलग करने वाला सुण्डा जलसंधि में पाया जाता है।
6. दादरी उद्गार द्वारा निर्मित ज्वालामुखी:- जब Magma केन्द्र से न निकल कर कई दरारों से निकलता है तो इससे निर्मित ज्वालामुखी को दरारी उद्गार निर्मित ज्वालामुखी कहते हैं।
दरारी उद्गार द्वारा निर्मित ज्वालामुखी पठार का उदाहरण हैI
- कोलम्बिया का पठार (U.S.A)
- दक्कन का पठार (India)
उद्गार की अवधि के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार
1. जागृत (सक्रिय) ज्वालामुखी:- जागृत ज्वालामुखी हमेशा क्रियाशील रहते हैं। इनसे लावा निकलता रहता है।
उदाहरण:-स्ट्राम्बोली (लिपारी द्वीप) एटना (इटली)
नोट– स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी को भू-मध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ कहा जाता है।
2. सुषुप्त ज्वालामुखी:– ऐसा ज्वालामुखी काफी समय तक शान्त रहने के बाद अचानक लावा उगलने लगता है।
उदाहरण:-देवबन्ध कोह सुल्तान (ईरान), वर्मा (म्याँमार) का पोया तथा U.S.A के ओरेगन राज्य की क्रेटर झील विसुवियस (इटली)।
ज्वालामुखी का वितरण
(A) परिप्रशान्त मेखला (पेटी):- द0 अमेरिका में चिली के पास से एण्डीज, उ0 अमेरिका में राॅकी, अलास्का होते हुए पूर्वी एशिया की तरफ-जापान फिलीपीन्स तक का पूरा क्षेत्र अर्थात प्रशान्त महासागर के चारो तरफ का क्षेत्र में परिप्रशान्त मेखला पायी जाती है।
प्रशान्त महासागर को Ring of Fire (ज्वाला वृत्त) और Pacigic Gridle कहते हैं।
सभी प्रमुख ज्वालामुखी यही पाये जाते हैं।
उदाहरण:- इक्वाडोर में कोटापैक्सी (सबसे प्रसिद्ध और ऊँची) ज्वालामुखी, चिली में चिम्बारजो, अमेरिका में माउन्ट सस्ता और रेनरियर, जापान में फ्यूजीयामा, फिलीपीन्स में माउन्टताल आदि ज्वालामुखी है।
(B) मध्य महाद्वीपीय पेटी:- Ice Land के पर्वत से लेकर स्पेन और फिलीपीन्स के पास उत्तरी प्रशान्त महासागर से मिल जाती है। मध्य महाद्वीपीय पेटी।
(C) अटलांटिक पेटी:-Ice Land से लेकर अन्र्टाकटिक तक
मध्य महासागरीय कटक पर पाये जाने वाले ज्वालामुखी। अर्थात् मध्य महासागरीय कटक के निर्माण के माध्यम से अटलांटिक पेटी पर ज्वालामुखी पाये जाते हैं।
उदाहरण:- हेकला, हेलाफेल ;(Lee Land के ज्वालामुखी द्वीप है)
अजोर्स द्वीप (अ0 महासागर में):-पुर्तगाल के अधिकार में आदि ज्वालामुखी द्वीप हैं।
दरारी उद्गार, द्वारा निकले लावा से निर्मित पठार के अपरदन के पश्चात् उसके छोटी आकृति को ’मेसा’ कहा जाता है और मेसा के अपरदन के पश्चात् मेसा की छोटी आकृति को ’बूंटी’ कहा जाता है।
उदाहरण:-मैहर( M.P) के पास मेसा और बूटी दिखती है।
ज्वालामुखी के द्वारा उत्पन्न स्थलाकृति 2 प्रकार की है-
1. आन्तरिक स्थलकृति 2. बाह्य स्थलाकृति
बाह्य स्थलाकृति 2 प्रकार की है-
- उत्थान द्वारा
- धसाव द्वारा
उत्थान द्वारा:-उत्थान द्वारा विभिन्न प्रकार के ज्वालामुखी शंकु बनते हैं और लावा, मैदान, पठार, गुम्बद पर्वत, मेसा और बूटी आदि स्थलाकृति बनते हैं।
धसवा द्वारा:- धसाँव द्वारा Crea और ब्वसकमतं स्थलाकृति का निर्माण होता है। 2ण् आन्तरिक स्थलाकृति:- बैथोलिथ, फैकोलिथ, लोपोलिथ, लैकोलिथ सिल, शीट, और डाईक आदि स्थलाकृति बनते हैं। धारवाड़ युग में ’डालमा’ की श्रेणी’ में (बिहार) सर्वप्रथम ज्वालामुखी का उद्गार हुआ-भारत में सर्वाधिक लावा का उद्गार दक्कन क्षेत्र में हुआ है। ज्मतजपंतल युग के पहले ब्तमंजेपने काल में दक्कन क्षेत्र में सर्वाधिक लावा का विस्तार हुआ।