तुगलकवंश (1320-25 ई0),सैयद वंश (1414-50)

तुगलकवंश (1320-25 ई0)

गयासुद्दीन तुगलक

यह दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने अपने नाम के पहले गाजी शब्द लगाया, दिल्ली की गद्दी पर बैठते ही इसने बाजार नियंत्रक नीति को समाप्त कर दिया, इसके काल की प्रमुख घटना निम्नलिखित थी।
(1) इसके काल में डाक व्यवस्था को पूर्ण रूप में सुसंगठित किया, हलांकि इसे शुरू करने का श्रेय अलाउद्दीन खिलजी को जाता है।
(2) नहरों का निर्माण करने वाला पहला सुल्तान था, परन्तु नहरों का निर्माणकर्ता फिरोज तुगलक को माना जाता है।
(3) गयासुद्दीन ने अमीरों के फवाजिल (अधिशेष लगान) को 1/10 से 1/5 तक के अन्तर को माॅफ कर दिया।
(4) 1323 में तेलंगाना के शासक प्रताप रूद्र देव को इसके पुत्र जूना खाँ ने पराजित कर दिया तथा वारंगल को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया एवं इसका नाम बदलकर सुल्तानपुर रख दिया गया।
(5) यह संगीत कला का विरोधी था, अपनी बंगाल विजय से लौटते समय इसने दिल्ली के सूफी सन्त औलिया से दिल्ली छोड़ देने के लिये कहा। औलिया ने कहा-’’हनूज दिल्ली दूरान्य’’ अर्थात दिल्ली अभी बहुत दूर है। तुगलकाबाद से 8 कि0मी0 दूर स्थित अफगानपुर में उसके लड़के जूनाखाँ द्वारा स्वागत के निर्माण हेतु निर्मित लकड़ी के महल के गिर जाने से उसकी मृत्यु हो गयी, एक सूफी सन्त रुकुनुद्दीन कुछ समय पहले ही उस दरवाजे से बाहर निकले थे। गयासुद्दीन के मरने पर विद्वानों ने अलग-अलग कारण बताये हैं, बरनी के अनुसार बिजली गिरने से मकान गिर गया, जबकि इब्नबतूता इसे एक षडयन्त्र मानता है, इसकी मृत्यु के बाद इसका पुत्र जूना खाँ मुहम्मद तुगलक के नाम से गद्दी पर बैठा।

मुहम्मद तुगलक (1325-1351ई0)

अन्य नाम -जौना खाँ

मुहम्मद तुगलक दिल्ली के सुल्तानों में सबसे अधिक विद्वान एवं पढ़ा लिखा था, इसामी और बरनी लिखते हैं कि सम्राट के योगियों से सम्बन्ध थे, इसके जैन सन्तों से भी सम्बन्ध थे, एक समय वह जिन प्रभासूरि के साथ आधी रात तक बात करता रहा, उन्हें बहुत सी वस्तुओं के साथ 1000 गाय दान में दिया, यह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था, जो हिन्दुओं के त्योहारों में भी भाग लेता था, यह प्रथम सुल्तान था जिसने सती प्रथा पर रोक लगा दी। इसके समय में सरकारी सेवाओं में योग्यता के आधार पर सभी के लिए दरवाजे खुले थे, हिन्दुओं को भी बड़े-बड़े पद दिये गये

  1. जूनार शिलालेख से पता चलता है कि साईराज जो एक हिन्दू था मुहम्मद तुगलक का मंत्री थी।
  2. बरनी ने तारीखे फिरोजशाही में कई हिन्दू अधिकारियों के नाम वर्णित किये हैं- धारा नामक एक हिन्दू दक्षिण भारत का नायब वजीर था, सेहबन का सूबेदार रतन भी हिन्दू था, गुलबर्गा का सूबेदार मीरन राय भी हिन्दू था।

स्वर्गद्वारी:- यह कन्नौज के निकट गंगा के तट पर स्थित एक नगर था। जिसका निर्माण मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली में अकाल के समय करवाया था, यह 1338 में बनवाया गया था तथा सुल्तान यहाँ 2 1ध्2 वर्ष तक रहा।
खलीफा से खिल्लतः- तुगलक ने मिश्र के खलीफा से खिल्लत प्राप्त की इन्हें अब्बासी खलीफा कहा जाता था। यह खिल्लत 1339-40 में प्राप्त की गई। इस समय अब्बासी खलीफा का नाम मुस्तकफी मिल्लाह था इसी का नाम अपने सिक्कों पर अंकित करवाया परन्तु खिल्लत वास्तविक रूप से इसके बाद के अब्बासी खलीफा अल-हमीम द्वितीय से प्राप्त की गई।
मु0 तुगलक की योजनाएँ:- मु0 तुगलक की पाँच योजनाएँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं जिनका उल्लेख बरनी ने अपनी पुस्तक तारीखे-फिरोजशाही में किया है। उसने इन योजनाओं का कोई क्रम नहीं लिखा है परन्तु जिस क्रम में वे योजनाएँ वर्णित हैं वे निम्नलिखित है-
1. दोआब में भू-राजस्व वृद्धि:- मु0 तुगलक ने दोआब का भू-राजस्व बढ़ाकर 50%कर दिया परन्तु इसी समय अकाल पड़ गया। अतः किसान कर देने में असफल रहे लेकिन जब उनसे जबरदस्ती किया जाने लगा तब उन्होंने अपनी फसलों को जला दिया इस प्रकार उसकी पहली योजना असफल हो गई। मध्य काल में यह पहला कृषक विद्रोह था। मु0 तुगलक को जब बाद में वस्तुस्थिति का पता चला तब उसने कृषि कर्ज के रूप में किसानों को सोढ़र ऋण दिये। मु0 तुगलक ने पहली बार किसानों को तकाबी (आपत्ति के समय) ऋण प्रदान किये। उसने कृषि के विकास के लिए दीवाने-अमीर कोही नामक एक कृषि विभाग की स्थापना भी की लेकिन उपर्युक्त कार्य बहुत देरी से किये गये इसी कारण सफल न रहे। इस प्रकार उसकी प्रथम योजना असफल हो गयी।
2. राजधानी परिवर्तन (1326-27) मु0 तुगलक की दूसरी योजना अपनी राजधानी का दिल्ली से दौलताबाद स्थानान्तरण किया। उसने देवगिरि को दौलताबाद (महाराष्ट्र में स्थित) नाम दिया। इसके पहले मुबारक खिलजी ने देवगिरि का नाम बदल कर कुतुबाबाद रख दिया था। दिल्ली से दौलताबाद की दूरी करीब 700 मील थी। विद्वानों ने इस राजधानी परिवर्तन के निम्नलिखित कारण बताये हैं-

  1. इब्नबतूता:- इसके अनुसार दिल्लीवासी सुल्तान को गाली लिखकर चिठ्ठियां लिखते थे अतः उसने राजधानी का स्थानान्तरण कर दिया।
  2. बरनी:- इसके अनुसार दक्षिण में विस्तार हो जाने के बाद दौलताबाद केन्द्र में स्थित था। अतः वह अपनी राजधानी मध्य में ले जाना चाहता था। उसने यह भी लिखा है कि सुल्तान मध्यम श्रेणी और उच्च श्रेणी का विनाश करना चाहता था।
  3. गार्डनर:- इनके अनुसार मंगोल आक्रमणों के सुरक्षा के लिए ही सुल्तान ने राजधानी का परिवर्तन किया।
  4. मेहदी हसन:- दक्षिण में मुसलमानों की कमी के कारण देवगिरि को दूसरा केन्द्र बनाया।
  5. इसामी:- सुल्तान दिल्ली के लोगों पर क्रुध रहता था। इसलिए वह उन्हें वहाँ से निकालना चाहता था।

उपरोक्त कारणों में बरनी का कारण जिसमें उसने प्रशासनिक कारणों की चर्चा की है, सर्वाधिक मान्य है। राजधानी स्थानान्तरण के 8 वर्ष बाद ही पुनः 1335 ई0 में अपनी राजधानी दिल्ली स्थानान्तरित कर ली।
3. प्रतीक मुद्रा का प्रचलन (1329-30):- 14वीं शताब्दी में संसार में चाँदी की कमी हो गई इसका उल्लेख नेल्सन राइट ने किया है। इस कारण मु0 तुगलक ने चाँदी की मुद्रा के बदले एक प्रतीक मुद्रा जारी की। बरनी के अनुसार यह ताँबे अथवा काँसे की मुद्रा थी। जबकि फरिस्ता के अनुसार यह पीतल की मुद्रा थी। इसके पहले चीन के शासक कुबलाई खाँ ने भी प्रतीक मुद्रा जारी किया था और उसे सफलता भी मिली थी। ईरान के शासक गैखात खाँ ने भी प्रतीक मुद्रा जारी किया था। परन्तु उसे असफलता मिली थी।
प्रतीक मुद्रा का जारी करना एक चतुराई भरा निर्णय था परन्तु वह जनता पर नियंत्रण न रख सका और लोगों ने अपने घरों में ही मुद्रायें छापनी शुरू कर दी। बाद में जब सुल्तान को पता चला तब उसने ताँबे की मुद्रा के बदले चाँदी की मुद्रा ले जाने के लिए आदेश जारी किया फलतः टकसालों के सामने ताँबे की नकली मुद्राओं का ढेर लग गया और इस प्रकार मु0 तुगलक की यह योजना भी असफल रही। इतिहासकार एडवर्ड थामस ने उसे सिक्के ढालने वाला सुल्तान कहा है।
4. खुरासान अभियान की योजना:- मु0 तुगलक ने ट्रांस आक्सियाना के शासक तर्माशरीन एवं मिश्र के सुल्तान के साथ एक मैत्रीय संधि की जिसके द्वारा खुरासान (अफगानिस्तान में) की विजय की योजना बनाई गई। इसके लिए मु0 तुगलक ने 3 लाख 70 हजार की एक विशाल सेना गठित की और उन्हें एक वर्ष का अग्रिम वेतन भी दिया गया लेकिन तभी ट्रांस आक्सियाना के शासक को हटा दिया गया और इस तरह उसकी यह योजना भी असफल रही।
5. कराचिल अभियान:- कराचिल संभवतः हिमांचल प्रदेश में कोई स्थान था ज्यादातर इतिहासकारों ने इसे पहाड़ी क्षेत्र कहकर पुकारा है। खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक सेना भेजी गई जिससे प्रारम्भ में कुछ सफलता भी मिली लेकिन बाद में सेना जंगली रास्ते में भटक गई। इब्नववूता के अनुसार केवल तीन अधिकारी ही जिन्दा वापस आ सके।
प्रमुख विद्रोह:- मु0 तुगलक के समय में ही सर्वाधिक विद्रोह हुए इसके समय में दिल्ली सल्तनत का सर्वाधिक विस्तार भी हुआ। इसके काल में प्रान्तों की संख्या 23 थी। कश्मीर ब्लूचिस्तान और पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर सारा हिन्दुस्तान इसके अधीन था।
मु0 तुगलक ने दक्षिण में एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति की थी जो सौ गांवों के ऊपर शासन करते थे इन्हें अमीर-ए-सदा कहा गया। दक्षिण में इन अधिकारियों ने विद्रोह कर दिया। दक्षिण में विद्रोह के परिणाम स्वरूप ही दो नये राज्यों विजय नगर (1336 ई0 कर्नाटक) एवं बहमनी (1347 महाराष्ट्र) की नींव पड़ी।
दक्षिण में सागर के सूबेदार बहारूद्दीन गुर्शप ने भी विद्रोह किया था। इसे पकड़कर दिल्ली लाया गया तथा उसकी जिन्दा चमड़ी निकाल ली गई। मुल्तान एवं सिन्ध के सूबेदार बहराम एैना ने भी विद्रोह किया था। बंगाल में गयासुद्दीन ने विद्रोह किया इस तरह विद्रोहों की एक श्रृंखला चल पड़ी। इन्हीं परिस्थितियों में सिन्ध के पास थट्टा में ज्वर से 1351 ई0 में इसकी मृत्यु हो गयी। बदाँयुनी ने लिखा है कि सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई। जबकि स्मिथ ने लिखा है कि मु0 तुगलक विरोधी तत्वों का मिश्रण था। एड़वई थामस ने धनवानों का युवराज कहा है। जबकि एल्फिसटन ने इसे पागल कहा है।
सिक्के:- मु0 तुगलक ने कुछ नये सिक्के भी जारी किये। इन सिक्कों पर खलीफा का नाम एवं सुल्तान की उपाधि अल सुल्तान जिलि अल्लाह (सुल्तान ईश्वर की छाया है का अंकन होता था। इसके प्रमुख सिक्के निम्नलिखित हैं।

  1. दीनार:- 200 ग्रेन का सोने का सिक्का।
  2. दो कानी:- सोने का सिक्का।
  3. अदली:- 140 ग्रेन का चाँदी का सिक्का।

धार्मिक नीति:- मु0 तुगलक एक धर्म सहिष्णु शासक था। परन्तु समकालीन इतिहासकारों ने उसकी धार्मिक नीति की कटु आलोचना की है। ख्वाजा अब्दुल-मलिक-इजामी ने अपनी पुस्तक फुतुह ऊस्सलातीन में मु0 तुगलक की कटु आलोचना की है। उसने सुल्तान पर हिन्दुओं का पक्ष लेने तथा जोगियों के साथ मेल को कफिराना कारवाई बतलाया है।

विभाग

  1. दीवाने-अमीर कोही- (कृषि विभाग)
  2. दीवान-ए-सियासत-दण्ड विभाग-सुल्तान अपनी योजनाओं की विरोधियों को दण्ड देने का कार्य करता था।
  3. अमीर-ए-सदा

’’फिरोज तुगलक’’  (1351-1388 ई0)

फिरोज तुगलक दिल्ली के सुल्तानों में धार्मिक दृष्टि से सबसे अधिक कट्टर था यह मु0 तुगलक का चचेरा भाई था। इसकी माँ वीवी जैला राजपूत सरदार रणमल की पुत्री थी। मु0 तुगलक की युद्ध में मृत्यु होने के बाद वहीं पर आम जनता अमीरों आदि के कहने पर इसका राज्याभिषेक हुआ। इसके बाद वह दिल्ली पहुँचा और पुनः इसका राज्याभिषेक दिल्ली में हुआ। सिंहासन पर बैठने के बाद 21 दिन संगीत गोष्ठी का आयोजन किया गया। फिरोज तुगलक की पुस्तक फतहवाले-फिरोजशाही से उसके बारे में जानकारी मिलती है।
फिरोज तुगलक के सैनिक अभियान:- फिरोज ने दक्षिण भारत को जीतने का कोई भी प्रयास नही किया। उसके उत्तर भारत के अभियानों का विवरण निम्नलिखित है।

  1. बंगाल अभियान:- सर्व प्रथम 1353-54 में फिरोज ने बंगाल का अभियान किया इस समय यहाँ का शासक हाजी इलियास था। हाजी इलियास पराजित हुआ लेकिन बाद में फिरोज ने लखनौती किला उसे वापस कर दिया।फिरोज ने 1359-60 ई0 में पुनः बंगाल पर आक्रमण किया। इस समय यहाँ का शासक सिकन्दर खान था परन्तु इस बार बंगाल को न जीत सका अपनी निराश सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए उसने जाज नगर (उड़ीसा) पर आक्रमण किया। यहाँ का शासक गजपति वीर मान देव तृतीय पराजित हुआ और अधीनता स्वीकार की। जाज नागर से वापस आते हुए उसने जौना खाँ की स्मृति में 1359-60 में जौनपुर नगर की नींव रखी।
  2. कंगड़ा अभियान (1365):- कांगड़ा में हिन्दू-राजवंश का राज था। फिरोज तुगलक ने यहाँ के ज्वालामुखी मन्दिर को लूटा यहाँ पर बहुत सी संस्कृत की पुस्तकें रखीं थी जिसे वह दिल्ली ले गया तथा अपने राज कवि आजुद्दीन खालिद खानी द्वारा दलाइले फिरोजशाही नाम से फारसी में अनुवाद करवाया। यह पुस्तक नक्षत्र विज्ञान से सम्बन्धित है।
  3. सिन्ध अभियान (1365-67):- सिन्ध का शासक जाम बविनिया था। इसे पराजित कर सिन्ध को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।

फिरोज तुगलक के प्रशासनिक कार्य:- फिरोज तुगलक के निम्नलिखित प्रशासनिक कार्य उल्लेखनीय हैं-
1. ऋण पंजिकाओं की समाप्ति:- मु0 तुगलक ने जिन लोगों को ऋण दिये फिरोज तुगलक ने समाप्त कर दिया।

2. दंड विधान में परिवर्तन:- फिरोज तुगलक के समय में दंड विधानों ने कमी कर दी गई। मृत्युदंड करीब-करीब समाप्त कर दिये गये।
3. सरकारी सेवाओं के वंशानुगत बनाना:- फिरोज तुगलक के समय में सभी सरकारी सेवाओं को वंशानुगत बना दिया। उसने अपने पुस्तक फतहवाते-फिरोजशाही में लिखा है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके पुत्र को अथवा दामाद को अथवा दास को सरकारी सेवा में रखा जाय।

4. राजस्व व्यवस्था में सुधार:- फिरोज तुगलक ने कुरान के नियमों का पालन करते हुए 24 करों को हटा दिया। केवल चार कर ही मुख्य थे।

  1. जाजिया:- पहली बार फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों से भी जजिया लेना शुरू किया।
  2. जकात:- यह एक धार्मिक कर था जो केवल धनी मुसलमानों से लिया जाता था। इसकी मात्रा 1/40 या ढाई प्रतिशत थी।
  3. खराज:- यह हिन्दुओं से लिया जाने वाला भू-राजस्व था। इसकी माला 1/3 थी।
  4. खम्स:- यह लूट का हिस्सा थ। फिरोज तुगलक ने इसका 80% भाग सैनिकों को दिया जबकि 20% भाग स्वयं लिया।
  5. उस्र:- यह मुसलमानों से लिया जाने वाला भू-राजस्व था। इसकी मात्रा 10%थी।
  6. सिंचाई करः-फिरोज तुगलक ने पहली बार सिंचाई कर लगाया इसे हक-ए-शर्ब कहा जाता है। इसकी मात्रा 1/10 अथवा 10%थी।

फिरोज तुगलक का वजीर खान-ए-जहाँ मकबूल था। फिरोज ने दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों का राजस्व 6 करोड़ 85 लाख टका निश्चित कर दिया था। जबकि दोआब का भू-राजस्व 80 लाख टका निश्चित किया गया। इसके सेना मंत्री वसीर के पास 13 करोड़ टका की संम्पत्ति थी।
नहरों का निर्माण:- फतहवाले फिरोजशाही में पाँच नहरों का निर्माण का उल्लेख मिलता है।

  1. उलूग खनी नहर-यह सर्वाधिक लम्बी नहर थी जो यमुना नदी से हिसार तक जाती थी। इसकी लम्बाई 150 मील थी।
  2. रजबाह नहर:-यह सतलज से घग्घर तक 30 मील लम्बी थी।
  3. सिरमौर की पहाड़ी से लेकर हांसी तक जाती थी।
  4. घग्घर से फिरोजाबाद।
  5. यमुना से फिरोजाबाद।

उपरोक्त नहरों के निर्माण से सर्वाधिक फायदा पंजाब राज्य को हुआ।
बागो से प्रेम:- फिरोज तुगलक ने दिल्ली और उसके आस-पास 1200 फलों के बाग लगवाये। इसमें अंगूर की खेती सर्व प्रमुख थी तथा इन बागों से यहाँ की आय 1 लाख 80 हजार टका प्रतिवर्ष बढ़ गई।
कारखानों का निर्माण:- फिरोज तुगलक के समय में 36 कारखाने स्थापित किये गये। इन कारखानों में राज परिवार से सम्बन्धित वस्तुओं का ही उत्पादन होता था। आम जनता से इसका कोई सम्बन्ध नही था। कारखानों का प्रमुख मुतसर्रिफ नामक अधिकारी था।
दास प्रेम:-फिरोज तुगलक को दासों से अधिक लगाव था। इसके समय में दासों की संख्या सर्वाधिक 1 लाख 80 हजार थी। (अलाउद्दीन के समय 50 हजार) इसने दासों की भलाई के लिए एक नये विभाग दीवाने बन्दगान की स्थापना की। फिरोज तुगलक दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने दासों के व्यापार पर रोक लगा दी।
नगर निर्माण:- फिरोज तुगलक को नये-नये नगरों के निर्माण का शौक था। उसे 800 नये नगरों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है।

  1. जौनपुर:- इसका निर्माण उसने जौना खाँ की स्मृति में किया था।
  2. फिरोजाबाद:- दिल्ली के पास यमुना नदी के किनारे बसाया गया नगर जो सुल्तान को सर्वाधिक प्रिय था।
  3. हिसार     
  4. फतेहाबाद
  5. फिरोजपुर -यह बदाँयू के निकट स्थित था।

फिरोज तुगलक ने अशोक के मेरठ और टोपरा के स्तम्भ लेखों को दिल्ली में स्थापित किया।
लोक कल्याणकारी कार्य:-

  1. रोजगार दफ्तर:– फिरोज तुगलक ने पहली बार एक रोजगार दफ्तर का निर्माण करवाया।
  2. दीवान-ए-खैरात:-मुसलमानी अनाथ स्त्रियों विधवाओं एवं लड़कियों की सहायता हेतु यह विभाग खोला गया था।
  3. निकाह दफ्तर:- इस दफ्तर के द्वारा गरीब मुस्लिम लड़कियों को विनाह के लिए 50, 30 अथवा 35 टके की सहायता की जाती थी।

दारुल शफा की स्थापना:- यहाँ लोगों को निःशुल्क चिकित्सा की सुविधा दी जाती थी एवं गरीबों को मुफ्त दवायें एवं भोज की व्यवस्था थी।
सिक्के:- फिरोज तुगलक ने कुछ नये सिक्के भी जारी किये।

  1. शरागनी:- 6 जीतल का एक विशेष सिक्का।
  2. अद्दधा:- आधा जीतल का ताँबा और चाँदी मिश्रित सिक्का।
  3. विख:- 1/4 जीतल का ताँबा और चाँदी मिश्रित सिक्का।

नोट:- फिरोज तुगलक ने शुक्रवारीय नमाज के खुतबे में दिल्ली सुल्तानों के नामों की सूची जारी की थी। इसमें ऐबक का नाम नही था। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित नाम सम्मिलित थे।
1. मुहम्मद गोरी अथवा-मुइज्जुद्दीन मुहम्मद बिन साम
2. इल्तुतमिश        

3. नासिरूद्दीन महमूद
4. बलबन            

5. जलालुद्दीन खिलजी
6. अलाउद्दीन खिलजी    

7. मुबारक शाह
8. गयासुद्दीन तुगलक    

9. मु0 तुगलक
फिरोज तुगलक की मृत्यु स्वाभाविक हुई। डाॅ0 आर0पी0 त्रिपाठी ने लिखा है ’’इतिहास की विडम्बना उस दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य में प्रकट हुई कि जिन गषों ने फिरोज को लोकप्रिय बनाया वही उसके पतन के लिए जिम्मेदार थे।’’
दिल्ली सल्तनत का पतन फिरोज के बाद ही प्रारम्भ हो जाता है।

तुगलक शाह (1388-89)

यह शासक गयासुद्दीन तुगलक द्वितीय की उपाधि से गद्दी पर बैठा।

अबू बक्र  (1389-90)

नासिरुद्दीन मुहम्मद  (1390-1394)

एक मात्र शासक जिसकी मृत्यु अत्यधिक मद्यपान के कारण हुई।

हुमायूँ (1394)

नासिरुद्दीन महमूद (1394-1412)

यह तुगलक वंश का अन्तिम शासक था जो हुमायूँ का भाई था। इसके समय में मलिक सरबर अथवा ख्वाजा जहाँ को मलिक-उस-शर्क (पूर्व का स्वामी) की उपाधि देकर जौनपुर का प्रमुख बना दिया गया जिसने बाद में जौनपुर को स्वतन्त्र कर लिया।
नासिरुद्दीन महमूद के समय में ही 1398 ई0 में तैमूर लंग ने आक्रमण किया। इसके समय में दिल्ली सल्तनत का एक हिस्सा फिरोज तुगलक के पुत्र नुसरत शाह के अधीन था। अर्थात दिल्ली के दो शासक नुसरत शाह एवं नासिरुद्दीन महमूद थे। इसका राज्य सिकुड़ कर दिल्ली से पालम तक ही रह गया।

इसने एक नये विभाग वकील-ए-सल्तनत की स्थापना की। इसकी मृत्यु के बाद मुल्तान के प्रान्तपति खिज्रखाँ ने एक ने एक नये वंश सैयद वंश की नींव डाली।

सैयद वंश (1414-50)

सैयद भी तुर्क ही थे। इस वंश का संस्थापक मुल्तान का प्रान्तपति खिज्रखाँ था।

खिज्र खाँ (1414-21)

इसने सुल्तान की उपाधि न धारण कर रैयत-ए-आला की उपाधि धारण की। इसने तैमूर के चैथे पुत्र शाहरुन के प्रतिनिधि के रूप में शासन किया। फरिश्ता इसे एक न्यायी एवं परोपकारी राजा कहा है।

मुबारक शाह (1421-34)

इसने यमुना दनी के किनारे 1434 ई0 में मुबारक बा दनामक नगर की स्थापना की इसी के शासन काल में याहियाबिन-अहमद-सरहिन्दी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक तारीखे-मुबारक शाही लिखी। जिससे फिरोज तुगलक के बाद से लेकर मुबारक शाह तक ही घटनाओं का पता चलता है। अपने नये नगर के निरीक्षण के समय में ही इसके वजीर सरवन-उल-मुल्क ने इसकी हत्या कर दी। इसके बाद इसका भतीजा मुहम्मद बिन खरीद खाँ गद्दी पर बैठा।

मुहम्मद शाह (1434-45)

मुहम्मद बिन खरीद खाँ मुहम्मद शाह के नाम से गद्दी पर बैठा। इसने मुल्तान के सुबेदार वहलोल को खान-ए-खाना की उपाधि दी।

अलाउद्दीन आलमशाह (1445-50)

यह मुहम्मदशाह का पुत्र था। इसके समय में यह कहावत चल पड़ी थी कि शाह-ए-आलम का राज्य दिल्ली से पालम तक। इसने स्वेच्छा से अपने पद का त्याग किया था। इसी के बाद बहलोल लोदी ने एक नये वंश लोदी वंश की नींव डाली।

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