प्रकाश ऊर्जा (Light Energy)
किसी स्रोत का ताप बढ़ाने पर उसमें निहित प्रकाश ऊर्जा के भाग में वृद्धि होती है तथा स्रोत के ताप घटाने पर ऊष्मीय ऊर्जा के भाग में वृद्धि होती है।
ब्रम्हाण्ड में प्रकाश एवं ऊष्मा के अनेक स्रोत हैं। पृथ्वी के सबसे नजदीक ऊष्मा एवं प्रकाश का स्रोत सूर्य है। सूर्य से अपार मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होने का मूल कारण उसमें हाइड्रोजन नाभिकों का आपस में संलयन होना है। इस क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न अपार ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में पृथ्वी तक आती है। ऊष्मीय विकिरण का तरंग दैध्र्य परास 8000Aº से 3 किमी0 तक जबकि प्रकाश की तरंग दैध्र्य 4000Aº से 8000Aº तक होती हैं।
ऊष्मीय विकिरण का उत्सर्जन :- इस क्रिया के कारण ही जलते हुए बल्व पर हाथ रखने से थोड़े समय में गर्माहट का अनुभव होने लगता है। इसी तरह वस्तुएं भी सभी तापों पर ऊष्मीय ऊर्जा का उत्सर्जन करती हैं।
किसी तप्त वस्तु के प्रति एकांक क्षेफल द्वारा प्रति सेकेण्ड उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की मात्रा को उस वस्तु की उत्सर्जन क्षमता कहतें हैं।
किसी पिण्ड के पृष्ठ द्वारा अवशोषित विकिरण की मात्रा तथा उस पर आपतित कुल विकिरण ऊर्जा की मात्रा के अनुपात को उस पिण्ड की अवशोषण क्षमता’ कहतें हैं।
ऊष्मा के तीन मात्रक हैं :- (1) जूल (2) कैलोरी (3) किलो कैलोरी।
1 ग्राम शुद्ध जल का ताप 1ºC (14.5ºC से 15.5ºC ) तक बढ़ाने के लिए जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे 1 कैलोरी कहतें हैं। 1 किग्रा0 शुद्ध जल का ताप 1ºC (14.5ºC से 15.5ºC) तक बढ़ाने में जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे 1 किलो कैलोरी=1000 कैलोरी = 1000×4.18 जूल=4.18×103जूल
किसी पदार्थ के 1 ग्राम द्रव्यमान का ताप 1ºC बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा कहतें हैं। अधिक विशिष्ट ऊष्मा वाले पदार्थों को गर्म करने के लिए अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होती है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा सर्वाधिक होने के कारण पानी को गर्म करने के लिए अधिक ऊष्मा देनी पड़ती है। विशिष्ट ऊष्मा का मात्रक कैलोरी/ग्राम 0ºC है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा 4.2 ×103 जूल/किग्रा 0ºC है।
ऊष्मा धारिता (Thermal Capcity) किसी वस्तु के कुल द्रव्यमान का ताप 1ºC बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा है। ऊष्मा धारिता का मात्रक कैलोरी/ºC हैं
किसी एक वस्तु से दूसरी वस्तु को स्थानांतरित ऊष्मा के मापन को कैलोरी मिति अथवा ऊष्मा मापन कहतें हैं। जब भिन्न-भिन्न ताप पर दो वस्तुएं एक दूसरे के सम्पर्क में लाई जाती है, तो ऊष्मा गर्म वस्तु से ठण्डी वस्तु की ओर प्रवाहित होती है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक दोनो का ताप समान न हो जाय।
अवस्था परिवर्तन :- वह भौतिक परिवर्तन है जिसमें पदार्थ की भौतिक अवस्था बदल जाती है। जिन पदार्थों के द्रवीकरण पर उनका आयतन बढ़ता है, एसे पदार्थों के गलनांक दाब बढ़ाने पर बढ़ते हैं, जैसे मोम, गन्धक नैफ्थलीन आदि। इसके विपरीत जिन पदार्थों के द्रवीकरण पर उनका आयतन कम होता है, ऐसे पदार्थों का गलनांक दाब बढ़ाने पर कम होता है, जैसे गैलियम तथा विस्मथ। साधरणतः दाब बढाने पर सभी पदार्थों के क्वथनांक बढ़ जाते हैं। किसी द्रव में यदि कोई धुलनशील पदार्थ मिला दिया जाय तो उसका हिमांक कम हो जाता है। बर्फ में नमक मिला दने से उसका गलनांक 0ºC से घटकर -21.2ºC हो जाता है। साधारण नमक के स्थान पर बर्फ में CaCl2 मिलाया जाए, तो जल का हिमांक 55ºC गिर जाता है।
जिस नियत ताप पर कोई ठोस द्रव में बदलता है तो उसे ठोस का गलनांक कहतें हैं। गलनांक पर किसी पदार्थ के एकांक द्रव्यमान को बिना ताप बदले, ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में बदलने के लिए जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है उसे उस पदार्थ की गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।
किसी द्रव को ठण्डा करने पर जब वह एक विशेष ताप पर ठोस में बदल जाता है, तो इस क्रिया को हिमीकरण कहतें हैं। गलन तथा हिमीकरण एक ही ताप पर होता है। इसमें अन्तर केवल इतना है कि गलन में ऊष्मा देनी पड़ती है, जबकि हिमीकरण में ऊष्मा मुक्त होती है।
प्रत्येक ताप पर बाहर से बिना ऊष्मा के लिए किसी द्रव के धीरे-धीरे ठोस अवस्था में परिवर्तन होना ही वाष्पीकरण है। क्वथनांक वह निश्चित ताप है जिस पर सम्पूर्ण द्रव वाष्पित होता है जाता है। क्वथनांक पर किसी द्रव का वाष्प वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो जाता है।
वाष्पीकरण एवं क्वथनांक में अन्तर
(1) वाष्पीकरण की क्रिया द्रव के ऊपरी तल पर तथा क्वथनांक की क्रिया पूरे द्रव में होती है।
(2) वाष्पीकरण की क्रिया प्रत्येक ताप पर बाहर से बिना ऊष्मा लिए होती है, जबकि क्वथनांक की क्रिया में एक निश्चित ताप पर बाहर से ऊष्मा देनी पड़ती है।
(3) वाष्पीकरण की क्रिया आॅख से दिखायी नहीं देती है, जबकि क्वथनांक की क्रिया बुलबुलों के रूप में दिखायी देती है।
(4) वाष्पीकरण की क्रिया धीरे-धीरे होती है जबकि क्वथनांक की क्रिया तेजी से होती है।
वाष्प अथवा गैसों के ताप कम करने तथा एक नियत ताप पर उनके द्रव में परिवर्तित होने की क्रिया को संघनन कहतें हैं। इस नियत ताप को संघनन बिन्दु कहतें हैं। संघनन की क्रिया वाष्पीकरण के विपरीत क्रिया है।
संघनन की गुप्त ऊष्मा :- किसी पदार्थ के एक इकाई द्रवमान को बिना ताप बदले, द्रव अवस्था से वाष्प अवस्था में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्र को ही वाष्पन की ऊष्मा कहतें हैं। किसी पदार्थ की एक इकाई द्रव्यमान वाष्प को उसके क्वथनांक पर पूर्ण रूप से द्रव में बदलने पर प्राप्त ऊष्मा की मात्रा को उस पदार्थ की संघनन की गुप्त ऊष्मा कहतें हैं।
वाष्पन की गुप्त ऊष्मा तथा संघनन की गुप्त ऊष्मा बराबर होती है। इसका मात्रक कैलोरी/ग्राम अथवा किलो कैलोरी किग्रा अथवा जूल/किग्रा है।
वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा को मिले होने की परिघटना ही आर्द्रता है। किसी ताप पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प के द्रव्यमान (उ) तथा उसी ताप पर वायु के उसी आयतन को संतृप्त करने के लिए आवश्यक वाष्प के द्रव्यमान (ड) के अनुपात को वायु की आपेक्षिक आर्द्रता कहतें है। इसे प्रतिशत में व्यक्त करते है।
0ºC से भी कम ताप वाले क्षेत्रों से बादलों के गुजरने पर उसमें उपस्थित पानी की छोटी-छोटी बूंदे जम जाती हैं जिनसे छोटे-छोटे बर्फ के कण बनकर हिम के रूप में गिरते हैं। ओले वायुमण्डल में वर्षा की बूंदो के जमने से बनते हैं।
’वातानुकूलन’ किसी सीमित स्थान पर या बन्द कमरे में वायुमण्डल के ताप पर उस स्थान में उपस्थित जलवाष की मात्रा को मनुष्य के लिए अधिक आरामदेय परिस्थितियाॅं पैदा करने के लिए परिवर्तित एवं नियंत्रित करना है। वातानुकूलन के लिए निम्न बातें होना आवश्यक है।
1. आपेक्षिक आर्द्रता 60% से 65% के बीच होनी चाहिए।
2. कमरे का तापमान 23ºC से 25ºC होना चाहिए।
3. वायु में लगभग 25% भाग शुद्ध वायु में बदलते रहना चाहिए।
4. वायु की गति 0.75 से 2.5 मीटर प्रति मिनट होनी चाहिए।
ब्राउनीयन गति :- जल में परागकणों की अनियमित गति ब्राउनियन गति कहलाती है। इसकी खोज वैज्ञानिक राबर्ट ब्राउन ने 1827 में की थी।
आदर्श कृश्णिका :- वह वस्तु है जो अपने ऊपर आपतित होने वाले सम्पूर्ण विकिरण का अवशोषण कर ले। इसकी अवशोषण क्षमता 1 होती है।