1772-85:- वरेन हेस्टिंग्ज-बंगाल का गर्वनर (1772) और गर्वनर जनरल (1773-85) के रूप में। बंगाल में द्वैध प्रशासन व्यवस्था का अंत और बंगाल,बिहार व उड़ीसा को कम्पनी के सीधे प्रशासन के अंतर्गत लाया गया, जिसके परिणामस्वरूप ईस्ट इण्डिया कम्पनी का एक राजनीतिक शक्ति के रूप मे भारत में उदय।
राजस्व संबंधी सुधार:- भू-राजस्व का पंचवर्षीय बन्दोबस्त, जिसके अंतर्गत लगान की नीलामी की जाने लगी और सबसे ऊॅची बोली बोलने को लगान वसूलने का ठेका दिया जानेलगा। इस पंचवर्षीय बन्दोबस्त को बाद में वार्षिक कर दिया गया। प्रशासनिक इकाई के रूप में जिलों का गठन 1777 में जिला कलेक्टरों और अन्य राजस्व अधिकारियों की नियुक्ति न्यायिक सुधार भारतीय न्यायिक व्यवस्था में द्वैधवाद का प्रचलन। जिला स्तर पर दीवानी और फौजदारी अदालतों एवं कलत्ता में अपीलीय सदर दीवानी और निजामत अदालतों की स्थापना।हिन्दू और मुसलमान कानूनों का संहिताकरण। नन्द कुमार पर मुकदमा और उनकी न्यायिक हत्या, (1775)। हेस्टिंग्ज द्वारा रूहेला युद्ध 1774, प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध 1776-82, द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध 1780-84।
1786-93:- गर्वनर जनरल लाॅर्ड कार्नवालिस-प्रशासनिक सुधार सुधार-भारतीय न्यायधीशों की अध्यक्षता वाली जिला फौजदारी अदालतों कोसमाप्त कर दिया गया और स्थान पर यूरोपियन न्यायधीशों की अध्यक्षता वाली दौर अदालतो की स्थापना की गई। 1793 में शक्तियों के विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित कार्नवासि कोड का प्रचलन किया गया। इस कोड के द्वारा जिला कलेक्टरों को न्यायिक और न्यायधिकारियों के अधिकारों से वंचित कर दिया जिला दीवानी अदालतों की अध्यक्षता के लिए जिला न्यायधीशों के नये पद का सृजन किया गया। न्यायालयों की श्रेणीबद्ध रूप से स्थापना की गई, जिनमें मुशिफ सबसे छोटे न्यायाधिकारी होते थे। मामूली प्रकरणों का निर्णय जिला न्यायाधीश करता था, जबकि गंभीर प्रकरणों को अदालतों को सौंप दिया जाता था। गवर्नर जनरल को सजा माफी और सजाओं को कम करने का अधिकार प्रदान किया गया।
पुलिस सुधार:- जमींदारों को समस्त पुलिस अधिकारों से वंचित कर दिया गया। प्रत्येक 1,000 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र पर एक पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) को नियुक्त किया गया। 1791 के अधिनियम के द्वारा पुलिस अधीक्षक के अधिकारों का निर्धारण किया गया।
भू-राजस्व या लगान व्यवस्था संबंधी सुधार:- बांगाल के प्रात को कलेक्टरों के अधीन के अधीन वित्तीय खण्डों में विभाजित किया गय। 1790 में वास्तविक कृषक भू-स्वामियों के स्थान पर कम्पनी द्वारा जमीदारों को इस पर जमींदारी क्षेत्र का भू-स्वामी स्वीकार किया गया कि वे कंपनी को भू-राजस्व की अदायगी करते रहेगें। 1790 में जमींदारों के साथ किए गए द वर्षीय बन्दोबस्त को1793 में स्थायी बना दिया गया। 1793 का बंगाल का स्थायी बन्दोबस्त या जमींदारी व्यवस्था।
सम्राज्य विस्तार:- तृतीय आंगल मसूर युद्ध (1790-92) में अंग्रेजों ने मराठों और निजाम के साथ सैनिक समझौता करके टीपू सुल्तान को हराया और उससे श्रीरगपत्तनम की संधि (1792) कार्नवालिस ने उच्च प्राशासकीय पदों पर भारतीयों की नियुक्ति को बंद कर दिया।
1793-98 गवर्नर जनरल सर जाॅन शोर-1793 में ब्रिटिश संसद द्वारा चार्टर एक्ट पारित किया गया। मराठों एवं निजाम के मध्य खर्दा के युद्ध में निजाम की पराजय 1795। अहमद शाह अब्दाली के पौत्र जमान शाह द्वारा भारत पर आक्रमण
1798-1805 गवर्नर जनरल लाॅर्ड वेलेजली:- उसकी नीतियों का लक्ष्य भारत में ब्रिटिश प्रभुसत्ता की स्थापना करना था। उसने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सहायक संधि (Subsidiary Alliance) व्यव्स्था को भारतीय राज्यों पर बलात आरोपित किया। इस भारतीय संधि व्यवस्था मंे शामिल होेने भारतीय राज्य अंग्रेजोंकी प्रभुसत्ता स्वीकार करता था और उनका अधीनस्थ मित्र राज्य हो जाता था एवं अपनी सैन्य सुरक्षा एवं वैदेशिक संबंध कम्पनी को समर्पित कर देता था। तदनुसार सहायक संधि में शामिल होने वाले राज्य में कंपनी एक सहायक सेना रखती थी एवं संबंधित राज्य मे एक ब्रिटिश रेजीडेन्ट को नियुक्त करती थी। उक्त सहायक सेना के रखरखाव था व्यय संबंधित राज्य कोे वहन करना पड़ता का व्यय संबधित राज्य को वहन करना पड़ता था। जिसके लिए संबंधित राज्य को अपने कुछ प्रदेश कम्पनी को सौंपने पड़ते थे। कुछ राज्य जो सहायक संधि व्यवस्था में शामिल हुए थे- हैदराबाद का निजाम, मैसूर का राजा तंजौर, अवध, जोधपुर,जैतपुर, मछेरी,बूंदी, भरतपुर बरार के शासक और पेशवा। चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध (1799) टीपू सुल्तान की पराजय और मृत्यु। द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध 1803-06 में सिन्धिया भोसले और होल्कर की पराजय। यह पराजय मराठा शक्ति के लिए भयंकर क्षति थी।
1805-7 गवर्नर जनरल जार्ज बार्लों – उसने अहस्तक्षेप की नीति का अनुसरण किया और सिन्धिया भोसले एवं होल्कर मराठा नरेशों के साथ शान्तिपूर्ण संबंधों की पुनस्र्थापना की, क्योंकि अंाग्ल-मराठा युद्ध के कारण वे अंग्रेजों से बहुत क्रुद्ध थे। वेल्लोर में अंग्रेज सैनिकों द्वारा सैनिक विद्रोह ।
1807-13 गवर्नर जनरल लार्ड-मिंटो प्रथम- कार्यकाल में एक पठान सरदार अमीर खां ने बरार पर आक्रमण कर दिया, पर 1809में उसे पराजित करके बरार से खदेड़ दिया गया। उसके कार्यकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना पंजाब के सिख राजा रणजीत सिंह के साथ अमृतसर की संधि थी, (1809 ई0) जिसके द्वारा अंाग्ल-सिख संबंधों के इतिहास में एक नवीन अध्याय का सूत्रपात हुआ।
1813-23 गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिंगज:- उसने बार्लों की हस्ताक्षेप की निजी का परित्याग कर दिया और उसके स्थान पर हस्ताक्षेप एवं युद्ध की नीति का अनुसरण किया। आंग्ल-नेपाल युद्ध (1813-23) के द्वारा गोरखा शासक अमरसिंह को पराजित किया गया। इस युद्ध का अंत सगौल की संधि के द्वारा हुआ। गोरखों ने गढ़वाल और कुमायू के प्रदेश तथा आधुनिक शिमला कंपनी को समर्पित कर दिए। तृतीय-अंग्ल-मराठा युद्ध (1817-18) हेस्टिग ने बड़ी सुनियोजित योजना के द्वारा नागपुर के मराठा राजा पेशवा और सिंधिया को अपमान जनक संधियां स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। पुणे के पेशवाई प्रदेशों का बम्बई प्रेसीडेंसी में विलय कर लिया गया। इस प्रकार ब्रिटिश प्रभुत्ता की स्थापना की दिशा अंतिम अवरोध भी समीप्त हो गया और मराठा शक्ति को पूरी तरह से कुचल दिया गया।
आंतरिक सुधार:- अदालतों में लम्बे समय से पडे़ अनिर्णीत मुकदमों के निपटारने के लिए मुंशिफों को नियुक्त किया गया और अनिर्णीत प्रकरणों की संख्या करने के लिए कुछ मामलों मे अपील के अधिकार को समाप्त कर दिया गया। भारत में पश्चिमी शिक्षा के प्रसार के भी प्रयास किए गए।
गवर्नर जनरल लार्ड एमहस्र्ट:- उसके कार्यकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना आंग्ल-बर्मी युद्ध (1824-26) था। अन्य प्रमुख घटनाओं में बैरकपुर में सैनिकों का विद्रोह भरतपुर में विद्रोह, नागपुर के साथ संधि, मलय प्रायद्वीप में कुछ प्रदेशों पर अधिकार और स्याम के साथ संधि था।
1828-35 गर्वनर जनरल लाॅर्ड विलियम बैंटिग:- उनके संबंध परस्पर-विरोधी विचार व्यक्त किए गए हैं। उनके प्रशानिक कार्याें का भी विभिन्न प्रकार से मूल्यांकन किया गया है। मैकले ने बैटिंक की अतिशय करते हुए लिखा हैकि ’’उन्होेंने पूर्वी निरंकुशता’’ में ब्रिटिश स्वतंत्रता की भावना का संचार किया और वे (बैटिंक) यह कभी नहीं भूले कि सरकार का लक्ष्य शासित लोगों का कल्याण हैं। निस्सदेह रूप से बैटिंक ने सती प्रथा का अतं, बाल-हत्या पर प्रतिबंध आदि जैसे अनेक सामाजिक सुधार परंतु उन्होंने प्रशासन के उदारीकरण एवं भारत में राजनीतिक स्वंतत्रता के वरदहस्त को प्रदान करने की दिशा में कुछ भी नहीं किया। इस दृष्टि से मैकाले द्वारा उन पर प्रशंसा की आविृष्टि अर्थहीन लगती है। तथापि बैंटिग को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि उन्होंने सामाजिक समस्याओं का बहुुुुत साहस के साथ निदान किया।
सामाजिक सुधार:- राजा राम मोहन राय जैसे भारतीय सामाजिक सुधारकों ने विलियम बेंटिक से सती प्रथा को अवैध घोषित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए निवेदन किया। दिसम्बर 1829 में एक अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा सती प्रथा या हिन्दू विधवाओं को जीवित जलाने को अवैध घोषित कर दिया गया और इसे फौजदारी अदालत द्वारा दण्डनीय अपराध माना गया। ठगों (जो अनुवांशिक) लुटेरों का गिरोह थे का 1830 मे दमन किया गया। ठगों के विरूद्ध अभियान का उत्तरदायित्व कार्नल विलियम स्लीमैन को सौंपा गया।
प्रशासनिक सुधार:-बैंटिक ने कंपनी की सेवा में भारतीयों की नियुक्त से संबंधित कार्नवालिस की नीति को उलट दिया। 1833 के चार्टर अधिनियम मे यह व्यवस्था थी कि ’’कम्पनी में किसी भी भारतीय व्यक्ति को उसके धर्म जन्मस्थान, जाति और रंग के आधार पर कम्पनी के अधीन किसी पर नियुक्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
न्याययिक सुधार:- कार्नवालिस द्वारा स्थापित अपीलीय प्रान्तीय न्यायालयों तथा दौरा न्यायालयों को समाप्त कर दिया गया। और उनके स्थान पर राजस्व और दौर अदालतों के संभागीय आयुक्त नियुक्त किए गए। ऊपरी प्रान्तों की जनता की सुविधा के लिए इलाहाबाद में सदर दीवानी और निजाम अदालतें स्थापित की गई। मुकदमें दायर करने के लिए देशी भाषाओं के प्रयोग करने का विकल्प दिया गया। शहरी और जिला-न्यायालयों में भारतीय न्यायाधीशों को मुशिफों के रूप में जाना जाता है।
शैक्षिक सुधार:-बैंटिक की सरकार का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारत में ब्रिटिश सरकार की शैक्षिक नीति के उद्देश्यों और लक्ष्यों को परिभाषित करना था। मैकाले सार्वजनिक शिक्षा समिति (ब्वउउपजजमक व िच्नइसपब प्देजतनबजपवदे) का अध्यक्ष नियुक्ति किया गया, जिसमें भारत में बिंटिश शिक्षा नीति के प्रचलन को भारत में ब्रिटिश शैक्षिक नीतियों का लक्ष्य घोषित किया गया। मार्च 1835 मैंकाले के सुझावों को स्वीकृति प्रदान की गई और उनका क्रियान्वयन किया गया।
वित्तीय सुधार:- कंपनी की वित्तीय व्यवस्था, जो आंग्ल-बर्मी युद्धों में भयंकर व्ययों के कारण दयनीय स्थिति में पहुॅच गई थी। में सुधार लाने के प्रयास किए गए। अनेक निरर्थक पदों को समाप्त कर दिया गया और कंपनी के कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कटौती की गई।
देशी रियासतो के सम्बन्ध में नीति:- जहां तक सम्भव हो सका देशी रियासतों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति का अनुसरण किया। परन्तु मैसूर 1831 कुर्ग 1834 आदि के आदिके सम्बन्ध में उसने इस नीति का अनुसरण नहीं किया और कुप्रशासन के आधार पर इन राज्यों को ब्रिटिश सम्राज्य में विलय कर लिया गया।
1835-36 गर्वनर जनरल सर चाल्र्स मैटकाफ:- उसका एक वर्ष का संक्षिप्त कार्याकाल नवीन प्रेस कानून के कारण स्मरणीय है। उसने भारतीय समाचार-पत्रों पर या प्रेस पर आरोपित नियंत्रणो को समाप्त कर दिया।
1836-42 गवर्नर जनरल लाॅर्ड आॅकलैंड:- उसका कार्यकाल भारत में ब्रिटिश शासन के सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण और अपमानजनक प्रथम अफगान युद्ध के लिए स्मरणीय है। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना का विनाश मैटकाफ की सेवा निवृत्ति के समय हुआ।
1842-44 गर्वनर जनरल लाॅर्ड एलेनबरो:-उसने अफगान युद्ध को बन्द किया और काबुल के विरूद्ध सफल सैनिक अभियान के द्वारा ब्रिटिश सम्मान और शक्ति को पुनस्र्थापित किया। उसके कार्याकाल मे दो भयंकर अन्यायपूर्ण कार्य हुए अर्थात सिंध का ब्रिटिश साम्राज्य मे विलय और सिंधिया को एक अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया। ईस्ट इण्डिया कंपनी के कोर्ट आॅफ डायरेक्टर्स (निदशक मण्डल) के आदेशों की अवहेलना करने के कारण एलेनबरों को 1844 में पदमुक्त करके इंग्लैण्ड वापस बुला लिया गया।
1844-48 गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिग:- भारत में इसका कार्यकाल मुख्यतः प्रथम सिखयुद्ध (1845) के लिए स्मरणीय है। अंगे्रजी सेना ने लाहौर पर अधिकार कर लिया और सिखों पर (1848 की लाहौर की संधि) अपनी शर्तों पर आधारित एक संधि को थोपा। हर्डिग ने प्रशानिक पदों पर नियुक्ति के मामले में पश्चिमी अंगे्रजी शिक्षा प्राप्त लोगों को वरीयता प्रदान की। इस नीति के परिणामस्वरूप भारत में अंग्रेजी शिक्षा को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला पर इसके कारण शिक्षा का स्वरूप बदल गया आर्थात् सरकारी नौकरी के हेतु अंग्रेजी शिक्षा ग्रहण की जाने लगी। हंर्डिग द्वारा खोंड जनजाति द्वारा नरबलि देने की कुप्रथा का दमन किया जो उनकी एक अन्य उपलब्धि थी।