भारत में बेरोजगारी की समस्या (Problem of Unemployment In India)
सामान्य रूप से बेरोजगारी का आशय उत्पादन कार्य में न लगा होना है। बेरोजगारी की समस्या एक सामान्य समस्या है जो विकसित या अल्प विकसित सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में पायी जाती है।परम्परावादी अर्थशास्त्रियों का मानना है कि पूर्ण रोजगार एक सामान्य अवस्था है और बेरोजगारी सामान्यतः नहीं पायी जाती है। कीन्स का विचार था कि पूर्ण मांग की कमी के कारण बेरोजगारी की समस्या पायी जाती थी और और इसे दूर करने के लिए समग्र माँग और प्रभाव पूर्ण मांग को बढ़ाना चाहिए। इस संदर्भ में कीन्स ने घाटे की वित व्यवस्था को महत्व दिया था। इसे हीनार्थ प्रबन्ध नाम दिया गया। भारत में बेरोजगारी का स्वरूप पश्चिमी देशों से भिन्न है यहाँ संरचात्मक बेरोजगारी पायी जाती है जिसे बिना संरचात्मक सुधार के कम नहीं किया जा सकता है। किसी भी देश में श्रम-शक्ति का तात्पर्य 15-65 आयु वर्ग की होती है जो रोजगार प्राप्त करना चाहता हैं-
- बेरोजगार लोगों की संख्या
- बेरोजगारी की दर = ×100 श्रम शक्ति
यदि 8 घंटे प्रतिदिन काम करने के साथ किसी व्यक्ति को वर्ष में 273 दिन का रोजगार प्राप्त हो तो उसे पूर्ण रोजगार में कहा जायेगा।
बेरोजगारी का वर्गीकरणः- बेरोजगारी का वर्गीकरण दो रूपों में किया जा सकता हे।
- एच्छिक बेरोजगारी
- अनैच्छिक बेरोजगारी
1. एच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment) :- जब कार्यशील जनसंख्या उत्पादन कार्य करना ही न चाहती हो या उनको रोजगार प्राप्त करने की इच्छा न हो अथवा वे प्रचलित मजदूरी पर काम न चाहते हों तो ऐसे बेरोजगारों को ऐच्छिक बेरोजगार कहा जाता है।
2. अनैच्छिक बेरोजगार (Involuntary Unemployment) :- यदि अर्थव्यवस्था में श्रमिक चालू मजबूरी दर पर कार्य करने के लिए तैयार हो परन्तु उस मजदूरी दर पर उन्हें कार्य न मिले तो ऐसे लोगों को अनैच्छिक बेरोजगार कहा जाता है और इस स्थिति को अनैच्छिक बेरोजगारी।
- बेरोजगारी का वर्गीकरण इस प्रकार भी कर सकते हैं।
(A) शहरी बेरोजगार
- शिक्षित बेरोजगार
- श्रमिक बेरोजगार
(B) ग्रामीण बेरोजगार
- मौसमी बेरोजगार
- चक्रीय बेरोजगार
- प्रच्छन्न बेरोजगार
- खुली बेरोजगारी
प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment) :- . इसे अदृश्य या छिपी हुई बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है। इस अवधारणा का सर्वप्रथम उल्लेख जाॅन राबिन्सन ने 1936 में किया था। इसके अन्तर्गत श्रमिक बाहर से तो काम पर लगे हुए दिखाई देते हैं परन्तु वास्तव में उन श्रमिकों की उस कार्य में आवश्यकता नहीं होती है। अर्थात यदि उस कार्य से श्रमिकों को निकाल दिया जाये तो कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नही पड़ता। इन श्रमिकों की सीमांत उत्पादकता शून्य अथवा नगण्य होती है। इस प्रकार की बेरोजगारी की प्रधानता कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। भारतीय बेरोजगारी की सबसे बड़ी समस्या प्रच्छन्न बेरोजगारी की है। कुल ग्रामीण बेरोजगारी का 70 प्रतिशत से अधिक प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार हैं।
भारत में बेरोजगारी सम्बन्धी नीतियाँ :-
इस समस्या के अध्ययन एवं समाधान के सम्बन्ध में सन 1973 में बी0 भगवती की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसने तीन अवधारणायें प्रस्तुत की।
1. सामान्य स्थिति (Usual Status) :- इसमें वह श्रमशक्ति सम्मिलित है जिसे पूरे वर्ष रोजगार नहीं मिलता। वास्तव में यह दीर्घकालिक बेरोजगारी का सूचक है।
2. चालू साप्ताहिक स्थिति (Current Weekly Status) :- इसमें उन बेरोजगारों को शामिल किया जाता है जिन्हें सर्वेक्षण सप्ताह के अन्तर्गत एक घण्टे भी कार्य नहीं मिलता। यह सप्ताह में औसत बेरोजगारों की संख्या को दर्शाता है।
3. चालू दैनिक स्तर (Current Daily Status) :- जब किसी व्यक्ति के रोजगार का सर्वेक्षण प्रतिदिन के आधार पर किया जाय तो उसे चालू दैनिक स्थिति कहते हैं। दैनिक बेरोजगारी का स्तर बेरोजगारी की समस्या का व्यापक एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण सूचक है।
यदि भारत के सन्दर्भ में देखें तो प्रथम चार पंचवर्षीय योजनाओं तक रोजगार में वृद्धि को केन्द्रीय स्थान नहीं प्राप्त हुआ। यद्यपि एक लक्ष्य के रूप में इसे रखा गया था। छठीं पंचवर्षीय योजना में रोजगार आधारित विकास प्रक्रिया पर बल देते हुए कई रोजगार कार्यक्रम चलाये गये।
भारत में गरीबी एवं बेरोजगारी निवारण कार्यक्रम :- भारत में बेरोजगारी एवं गरीबी निवारण कार्यक्रमों को दो भागों में बांट सकते हैं-
- ग्रामीण बेरोजगारी निवारण कार्यक्रम
- शहरी बेरोजगारी निवारण कार्यक्रम
भारत में गरीबी एवं बेरोजगारी के निवारण के लिए जो कार्यक्रम चालए गये उन्हें ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इन कार्यक्रमों का वर्गीकरण चार अन्य भागों में भी किया जा सकता है-
- . बेरोजगारी निवारण एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
- सामाजिक तथा आर्थिक सुरक्षा कार्यक्रम
- महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास कार्यक्रम
- सामाजिक अवस्थापना से सम्बन्धित कार्यक्रम
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP) :- यह योजना अक्टूबर 1980 में प्रारम्भ हुई। यह केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम था जिसमें केन्द्र एवं राज्य की वित्तीय भागीदारी 50-50 प्रतिशत थी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर उपलब्ध कराना था। वर्ष 1989 ई0 में जवाहर रोजगार योजना में इसको शामिल कर दिया गया।
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) :- यह योजना वर्ष 1978-79 में देश के कुछ भागों में प्रारम्भ की गयी। फलतः इसकी सफलता को देखते हुये इस पूरे देश में 1980 ई0 में विस्तार किया गया। यह एक गरीबी निवारक स्व रोजगार योजना थी। सन् 1999 ई0 में इसे स्वर्ण जयन्ती स्व रोजगार योजना में शामिल किया गया।
ग्रामीण नवयुवकों का स्वतः प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM) :- यह योजना वर्ष 1979 ई0 में प्रारम्भ की गयी। जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण नवयुवकों को स्वतः प्रशिक्षण देना था जो बेरोजगार थे और जिनकी आय साढ़े तीन हजार रूपये वार्षिक से कम थी। अप्रैल 1999 ई0 में इस योजना को स्वर्ण जयन्ती स्व रोजगार योजना में मिला दिया गया।
ग्रामीण भूमिहीन श्रमिक रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (RLEGP) :- ;त्स्म्ळच्द्ध रू. योजना का शुभारम्भ 15 अगस्त 1983 ई0 को किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य भूमिहीन श्रमिकों एवं सीमान्त किसानों को रोजगार के लाभप्रद अवसर उपलब्ध कराना था। अप्रैल 1989 ई0 में इस योजना को JRY में मिला दिया गया।
जवाहर रोजगार योजना (JRY) :- इस योजना का प्रारम्भ 28 अप्रैल 1989 ई0 को किया गया जो पूर्व की दो योजनाओं NREP तथा RLEGPको मिलाकर बनायी गयी थी। बाद में इन्दिरा आवास योजना IAY और दस लाख कुंए की योजना (MWS) को जवाहर रोजगार योजना में मिला दिया गया।
♦ JRY के तीन उद्देश्य थे-
- ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं एवं पुरुषों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक परिसम्पत्तियों का निर्माण करना।
- . ग्रामीण लोगों के रहन-सहन और जीवन स्तर में सुधार करना,
तथा परिवार में कम से कम एक व्यक्ति को सौ दिन का रोजगार प्रदान करना था।
JRY के 11 वर्ष होने पर उसका नाम बदलकर जवाहर रोजगार समृद्धि योजना कर दिया गया। फलतः अब इसे सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के एक हिस्से के रूप में माना जाता है।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्व रोजगार योजना (SJGSY) :- इस योजना का प्रारम्भ 1 अप्रैल 1999 को हुआ। यह योजना का निर्माण पिछली 6 योजनाओं को मिलाकर किया गया था। इस योजना में IDRP, TRYSEM ,IAY, MWS, SITRA एवं गंगा कल्याण योजना को शामिल किया गया था। इस योजना से लाभ प्राप्तकर्ता को स्व रोजगारी के रूप में जाना जाता था। जून 2011 में इस योजना को National Rural Librigood Missionछंजपवदंस त्नतंस सपइतपहववक डपेेपवद में शामिल कर दिया गया।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी अधिनियम (MNERGA) :- ग्रामीण रोजगारी भूख और गरीबी से निजात पाने के लिए केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना NERGA का शुभारम्भ प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने 2 फरवरी 2006 को आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर में किया गया। प्रारम्भ में इस योजना को देश के चुने हुये 200 जिलों में लागू किया गया।
इस योजना के अन्तर्गत हर ग्रामीण परिवार के सक्षम और इच्छुक व्यक्ति को सालभर में न्यूनतम 100 दिनों का काम दिया जाता है। योजना की विभिन्न विशेषताओं में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि यदि व्यक्ति को काम नहीं मिलता तो मजदूरी भत्ता दिया जाता है। काम करने की जगह मजदूर के घर से 5 किमी0 की दूरी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। महिला श्रमिकों को अपने बच्चों को साथ रखने की सुविधा दी जाती है। इस योजना के अन्तर्गत पंचायतों को अधिकार दिया गया है कि वे काम चाहने वाले लोगों की अर्जी का पूरा अध्ययन करें और 15 दिन के भीतर काम देना सुनिश्चित करें।
इस योजना में काम के बदले अनाज योजना, सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का विलय कर दिया गया तथा 1 अप्रैल 2008 से इसे पूरे भारत में लागू कर दिया गया।
मनरेगा के तहत मजदूरों को दी जाने वाली मजदूरी की दरों को खेतिहर मजदूरों के लिए उपभोक्ता में सूचकांक से सम्बद्ध करने की घोषणा 6 जनवरी 2011 से की गयी।
- वर्ष 2006 से मनरेगाा की शुरूआत से ग्रामीण परिवारों को लगभग 129000 करोड़ की मजदूरी का भुगतान 31 दिसम्बर, 2012 तक किया गया। ऽ दिसम्बर 2012 तक 1348 करोड़ श्रम दिवसों का रोजगार सृजन।
- वर्ष 2008 से दिसम्बर 2012 तक औसतन प्रत्येक वर्ष 5 करोड़ परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया।
- कुल सृजित श्रम दिवसों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों का हिस्सा 51ः महिलाओं का हिस्सा 47ः है।
- कार्यक्रम प्रारम्भ किए जाने के बाद से कुल 146 कार्य किए जा चुके हैं।
- वर्ष 2013-14 के बजट में रु 33,000 करोड़ का आवंटन इस योजना के लिए किया गया है।
- इस योजना में 90ः योगदान केन्द्र सरकार का और 10ः राज्यों का होता है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) :- ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता निवारण के लिए राजस्थान के बांसवाड़ा से 2 जून 2011 को इस योजना का शुभारम्भ किया गया। इस मिशन के तहत ग्राम स्तर पर स्वयं सहायता समूहों (Self Help Group -SHGs) को गठित कर उनके माध्यम से लाभप्रद रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर बेहतर जीवन-यापन का स्थाई आधार प्रदान करने की सरकार की योजना है। इस योजना की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
- प्रत्येक चिन्हित ग्रामीण गरीब परिवार से एक महिला सदस्य को स्वयं सहायता समूह के अन्तर्गत लाना।
- बी0पी0एल0 परिवारों के सौ प्रतिशत कबरेज के लक्ष्य को देखते हुए अनुसूचित जाति जनजाति से 50ः ए अल्पसंख्यक से 15ः तथा विकलांग व्यक्तियों से 3ः लाभार्थियों को सुनिश्चित करना है।
- क्षमता निर्माण तथा कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना।
- वित्तीय समावेशन, ब्याज अनुदान का प्रावधान नवीनतम का संवर्धन, पूँजीगत अनुदान सुनिश्चित करना है।
कौशल विकास कार्यक्रम (National Skill Devlopment Program) :- यह कार्यक्रम 11वीं पंचवर्षीय योजना में प्रारम्भ किया गया है। जिसका उद्देश्य पूरे देश में व्यापक स्तर पर कुशलता का विकास करना है। इसके लिए राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) को महत्वपूर्ण भूमिका दी गयी जो कि वित मंत्रालय की एक गैर लाभ प्राप्तकारी संस्था है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश भर में लोगों की कुशलता में वृद्धि लाकर न कि बेरोजगारी एवं गरीबी की समस्या से बाहर लाना है। बल्कि देश में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है।
अन्नपूर्णा योजना :- यह योजना गरीबी निवारण के सन्दर्भ में 2 अक्टूबर वर्ष 2000 को प्रारम्भ की गयी। इस योजना का प्रारम्भ उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले से हुई, जिसके अन्तर्गत निर्धन वर्ग के लोगों को 10 किलोग्राम अनाज बिना मूल्य के प्रतिमाह देने का लक्ष्य रखा गया।
अन्त्योदय अन्न योजना :- 25 दिसम्बर 2000 को इस योजना का शुभारम्भ प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा किया गया। इस योजना के तहत 2 रू0 प्रति किलोग्राम गेहूँ व 3 रू0 प्रति किलोग्राम चावल उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। प्रारम्भिक वर्षों में इस योजना में प्रत्येक परिवार को महीने में 25 किलोग्राम अनाज दिया जाता था। जिसे बाद में बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दिया गया।
जनश्री बीमा योजना (JBY) :- इस योजना का प्रारम्भ 10 अगस्त 2000 को किया गया जिसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे तथा उससे थोड़ा ऊपर रहने वाले ग्रामीण और शहरी व्यक्तियों को जीवन बीमा सुरक्षा प्रदान करना था। इसी से सम्बन्धित खेतिहर मजदूर बीमा योजना को माना जाता है जो कि भूमिहीन श्रमिकों के लिए प्रारम्भ की गयी थी। जिसके अन्तर्गत 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों को 100 रू0 प्रतिमाह का पेंशन दिया जाता है।
स्वावलम्बन योजना :- इस योजना का प्रारम्भ 27 सितम्बर 2010 को किया गया जो कि असंगठित क्षेत्र के लिए थी जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को पेंशन योजना का लाभ प्रदान कराना था।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) :- इस योजना को 1 अक्टूबर 2007 को घोषित किया गया तथा अप्रैल 2008 से लागू किया गया। इस योजना के उद्देश्यों में असंगठित क्षेत्रों में बी0पी0एल0 परिवारों को परिवार उत्प्लावक आधार पर प्रति परिवार प्रत्येक वर्ष 30 हजार रूपये का स्मार्ट कार्ड आधारित धन रहित स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना है। प्रीमियम वहन में केन्द्र तथा राज्य 75ः25, उत्तर पूर्वी राज्यों और जम्मू और कश्मीर के मामलों में यह अनुपात 90ः10 का है।
सर्व शिक्षा अभियान:- गरीबी एवं शिक्षा के बीच सह सम्बन्ध पाया जाता है और गरीबी निवारण के लिए आवश्यक है कि लोगों को शिक्षित किया जाये। इसी के तहत देश के 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को वर्ष 2010 तक 8वीं कक्षा तक निःशुल्क और गुणवत्ता परख प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य को लेकर वर्ष 2000-2001 में सर्व शिक्षा अभियान की घोषणा की गयी। मार्च 2009 में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान प्रारम्भ किया गया।
इस योजना के अन्तर्गत 6 से 11 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को वर्ष 2007 तक 5 वर्ष की तथा 11 से 14 वर्ष तक के बच्चों को 8 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से पूरा प्रयास किया जा रहा है जिसका अनुपात 65ः35 है। जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में यह 90ः10 का है। यह योजना भारत के सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू है और इससे स्कूल छोड़ने की दर में कमी आयी है। देश के 11 लाख बस्तियों के 19 करोड़ 20 लाख बच्चे इस कार्यक्रम से लाभान्वित हो रहे हैं।
मध्यान्ह भोजन योजना :-
यह कार्यक्रम 15 अगस्त 1995 ई0 को प्रारम्भ किया गया था। सितम्बर 2004 में इस योजना को संसोधित करके प्राथमिक स्तर पर लागू किया गया और अक्टूबर 2007 से कक्षा 8 तक के बच्चों को इस योजना को दायरे में लाया गया।
इस योजना में प्राथमिक स्तर के बच्चों को 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन का मध्यान्ह भोजन मुहैया कराया जाता है। प्राथमिक स्तर से ऊपर के बच्चों के लिए 700 कैलौरी और 20 ग्राम प्रोटीन का पोषाहार निश्चित किया गया है। पोषाहार मानदण्डों को पूरा करने के लिए केन्द्र सरकार प्रति प्राथमिक विद्यालय बालक प्रति विद्यालय दिवस 100 ग्राम की दर से और प्रति प्राथमिक विद्यालय के ऊपर बालक प्रति बालक दिवस 150 ग्राम की दर से खाद्यान्न मुहैया कराती है। इस स्कीम को मानीटर करने के लिए डक्ड.डप्ै शुरू किया गया जो दैनिक आधार पर एक घंण्टे के भीतर विद्यालयों से सूचना एकत्र करेगा। इस योजना के तहत केन्द्र एवं राज्य सरकारों का योगदान 75ः25 है। जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में 90ः10 का है।
साक्षर भारत योजना :- यह योजना सितम्बर 2009 में चालू की गयी जिसमें राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को पुनर्गठित किया गया और 7 करोड़ वयस्कों को साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया।
गोकुल ग्राम योजना :- गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गोकुल ग्राम योजना गुजरात सरकार द्वारा प्रारम्भ की गयी जिसमें प्रत्येक गांव का चयन किया जाता है और 15 लाख रूपये की सहायता देने का प्रावधान किया गया है।
विद्यावाहिनी योजना :- यह योजना इण्टरनेट एवं इण्टरानेट के माध्यम से 60 हजार सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जून 2003 में प्रारम्भ की गयी। इस योजना के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश के लखनऊ और इलाहाबाद, झारखण्ड से हजारीबाग, गुजरात से गांधी नगर, महाराष्ट्र से औरंगाबाद, पश्चिमी बंगाल से दक्षिण चैबिस परगना और आन्ध्र प्रदेश से बिचूर को शामिल किया गया।
आंगनबाड़ी केन्द्र :- आंगनबाड़ी केन्द्र शहरी एवं ग्रामीण क्षत्रों में खोले गये। जिनका मुख्य उद्देश्य 300 दिनों के लिये स्वास्थ्य पोषाहार शिक्षा एवं सन्दर्भित सेवाओं के अतिरिक्त अनौचारिक शिक्षा प्रदान करना है। इसमें कार्यकर्ताओं का चयन उसी क्षेत्र की महिलाओं में से किया जाता है। यह ICDS से जुड़े होते हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना :- यह योजना वर्ष 2003 से प्रारम्भ की गयी जिसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जाता है और इसके अन्तर्गत केन्द्र सरकार प्रति परिवार 550 रू0 जीवन बीमा कम्पनियों को प्रीमियम के रूप में देती है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना :- अक्टूबर 2007 में प्रारम्भ की गयी यह योजना 1 अप्रैल 2008 से प्रभावी रूप में सामने आयी। इस योजना के द्वारा असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के प्रत्येक श्रमिक एवं परिवार को 30 हजार रूपये प्रति परिवार स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जायेगा। सन् 2010-11 में इसे मनरेगा से जोड़ दिया गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) :- इस कार्यक्रम की शुरूआत 12 अप्रैल 2005 को की गई। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनतम परिवारों को वहनीय एवं विश्वसनीय गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराया जाता है। इसके अन्तर्गत बच्चों के स्वास्थ्य परियोजनाओं जैसे-मलेरिया, टीवी, कुष्ठ रोग, इन सभी के लिए एकही स्थान पर उपचार की सेवायें उपलब्ध कराई जा रही हैं और इसी के सन्दर्भ में सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता अर्थात आशा की नियुक्ति प्रति एक हजार आबादी के अनुपात में किया गया है। इस योजना के अन्तर्गत 2013-14 के बजट में 21,239 करोड़ रू0 खर्च किये गये।
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना :- यह योजना 15 अगस्त 2003 को प्रारम्भ की गयी जिसका उद्देश्य देश के सभी भागों में कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता की चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना है।
जननी सुरक्षा योजना :- यह योजना 1 अप्रैल 2005 को प्रारम्भ की गयी। इसका मुख्य उद्देश्य मातृ मृत्युदर एवं शिशु मृत्युदर पर अंकुश लगाकर गर्भवती महिलाओं के हितों का संरक्षण करना। यह योजना छत्भ्ड का घटक और पूर्व में संचालित ’राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना’ का प्रतिस्थापन्न है। इस योजना का लाभ 19 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को पहले दो जीवित प्रसवों के समय (एक-एक हजार रु.) प्राप्त होता है। भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तीकरण के सम्बन्ध में कुछ विशेष प्रावधान किये गये हैं।
निर्भया फण्ड :- वर्ष 2013-14 के केन्द्र सरकार के बजट में महिलाओं के स्वाभिमान की रक्षा के लिए निर्भया फण्ड स्थापित किया गया जिसके लिए सौ करोड़ रूपये का आवंटन केन्द्र सरकार द्वारा किया गया।
महिला स्वयं सिद्ध योजना :- महिला सशक्तीकरण वर्ष 2001 में इस योजना की घोषणा की गयी। इस योजना को पूर्व में संचालित इन्दिरा महिला योजना एवं महिला संवृद्धि योजना के स्थान पर चलाया गया। इस नयी योजना में महिलाओं के विकास एवं सशक्तीकरण को ध्यान में रखते हुए उन्हें माइक्रो क्रेडिट के माध्यम से सूक्ष्म उद्योग स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना था।
स्वावलम्बन योजना :- यह योजना महिलाओं को प्रशिक्षित एवं कुशलता प्रदान के लिए चलाई गयी। जिससे वे पोषक्ता के साथ-साथ रोजगार परक बन सकें। स्वाधार योजना:- वर्ष 2001 में प्रारम्भ की गयी यह योजना उन महिलाओं को सहायता पहुँचाने के लिए चलायी गयी जो अत्यन्त विपरीत परिस्थितियों में अथवा कठोर परिस्थितियों में फंसी थी।
बालिका संवृद्धि योजना :- यह योजना सन् 1997 में प्रारम्भ की गयी और 19़99 ई0 में इसे पुनर्गठित किया गया। इस योजना के अन्तर्गत आंगनबाड़ी केन्दीय किशोरी शक्ति योजना और किशोरी पोषाहार कार्यक्रम को सम्मिलित किया गया है।
धन लक्ष्मी योजना :- यह योजना मार्च 2008 में प्रारम्भ की गयी। इसके अन्तर्गत बालिकाओं के जन्म एवं पंजीकरण, टीकाकरण और कक्षा 8 तक की पढ़ाई करने पर एक निश्चित राशि उनके परिवार को दी जाती है।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन :- इसकी स्थापना 5 मई 1988 ई0 को हुई, इसे सितम्बर 2009 ई0 को साक्षरता भारत योजना में शामिल किया गया।
ग्रामीण अवसंरचना और विकास (Rural Infrastructure and Development) :- भारत सरकार ने ग्रामीण शहरी एकीकरण तथा समाज के निर्धन एवं सुविधा वंचित वर्गों के विकास की समान पद्धति तैयार करने के उद्देश्य से ग्रामीण अवसंरचना के निर्माण को प्राथमिकता देती आ रही है। इस सम्बन्ध में कुछ कार्यक्रम चलाये गये-
भारत निर्माण कार्यक्रम :- ग्रामीण भारत में मूलभूत ढाँचागत सुविधाओं की समुचित व्यवस्था करने के उद्देश्य से वर्ष 2005-06 में केन्द्र सरकार द्वारा चार वर्षीय भारत निर्माण नामक योजना संचालित करने की घोषणा की गयी। इस योजना के छः घटक हैं-सिंचाई, सड़क, आवास, जलापूर्ति, विद्युतीकरण एवं दूरसंचार सम्पर्क।
इन्दिरा आवास योजना (IAY) :- यह योजना 1985-86 में त्स्म्ळच् की एक उपयोजना के रूप में आरम्भ की गई। यह योजना केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित थी जिसमें केन्द्र का योगदान 75ः और राज्य का 25ः था परन्तु 2013 में इस अनुपात को 50-50ः कर दिया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति जनजाति तथा मुक्त बन्धुवा मजदूरों को निःशुल्क आवास उपलब्ध कराना था।
कुल निर्मित मकानों का 3ः भाग ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीबी की रेखा के नीचे के अपंग एवं मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्तियों के लिए आरक्षित किया गया है।
लाभार्थियों का चयन करने का अधिकार ग्रामसभा को प्राप्त है। स्वच्छ शौचालय और धुआं रहित चूल्हा इस योजना का मुख्य अंग है।
इस योजना के तहत दी जाने वाली सहायता राशि 1 अप्रैल 2013 से बढ़ाकर मैदानी भागों में 45 हजार से 70 हजार एवं पहाड़ी दुर्गन्ध क्षेत्रों में 48500 से 75500 रूपये प्रदान की जाती है।
इस योजना की प्रभावी मानीटरिंग के लिए MIS साफ्टवेयर स्थापित किया गया है।
प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना :- यह योजना वर्ष 2009-10 में चलायी गयी जिन गावों में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 50ः से ज्यादा है यह योजना उस गाँव के विकास से सम्बन्धित है।
राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM) :- मई 2013 से प्रारम्भ इस योजना में शहरी क्षेत्र के गरीबों को आवश्यक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराना है। इस योजना में केन्द्र सरकार का योगदान 75 एवं राज्यों का 25 जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में यह अनुपात 90ः10 का है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) :- यह 25 दिसम्बर 2000 से 100 प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित योजना थी। इसका उद्देश्य सभी पात्र सम्पर्क रहित ग्रामीण बस्तियों को हर मौसम में सम्पर्क सुविधा उपलब्ध कराना है। भारत निर्माण के अन्तर्गत मैदानी क्षेत्रों में 1000 या इससे अधिक जनसंख्या वाली और पहाड़ी रेगिस्तान यह जनजातीय इलाकों में 500 या अधिक जनसंख्या वाली सभी बस्तियों के लिए सम्पर्क सुविधा मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्यक्रम का वित्त पोषक मुख्यतः केन्द्रीय सड़क निधि में डीजल उपकर के अर्जन से किया जाता है।
जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण योजना (JNNURN) :– यह योजना दिसम्बर 2005 में प्रारम्भ की गयी है। इसके अन्तर्गत दो मुख्य घटक हैं-शहरी निर्धनों को बुनियादी सेवायें (Basic Service for Urban Poor- BSUP) कार्यक्रम और समेकित आवास एवं गन्दी बस्ती कार्यक्रम (Intigrated Housing and Slum Development Program ISSDP) यह कार्यक्रम और संरचना विकास और आवास के विकास तथा क्षमता विकास के लिए शहरों को पर्याप्त केन्द्रीय सहायता उपलब्ध कराता है। इसका लक्ष्य शहरी गरीबों को बुनियादी सेवाएँ देना है।
राजीव आवास योजना (RAY) :- यह योजना 2 जून 2011 को प्रारम्भ की गयी। इस योजना में राज्यों को आश्रय पुनर्विकास तथा वाहिनी आवास समूह के सृजन के लिए सहायता प्रदान करती है। इस योजना के दो चरण है-
- पहला चरण योजना अनुमोदन की तारीख से 2 वर्षों का होगा।
- . द्वितीय चरण में 12वीं पंचवर्षीय योजना की शेष अवधि के लिए होगा।
असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम:- यह अधिनियम 16 मई 2009 को लागू हुआ। जिसका मुख्य उद्देश्य असंगठित मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना था।