महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Theory of Continental Drift)

महाद्वीपों के प्रवाहित होने की संभावना का सुझाव सर्वप्रथम फ्राँसीसी विद्वान एन्टोनियो स्नाइडर ने 1858 ई0 में दिया किन्तु वैज्ञानिकता के अभाव में इस संभावना को नकार दिया गया। 1910 में टेलर ने स्थल भाग के क्षैतिज स्थानान्तरण को मोड़दार पर्वतों की व्याख्या के क्रम में प्रस्तुत किया किन्तु कई कारणों से इनकी संकल्पना भी मान्यता प्राप्त नहीं कर सकी। इसके बाद अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में महाद्वीपीय प्रवाह को सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया तथा 1915 में इसकी विस्तृत विवेचना की।

वेगनर के अनुसार कार्बोनीफेरस युग में संसार के सभी महादेश एक साथ एकत्रित थे और एक स्थलखण्ड के रूप में विद्यमान थे। वेगनर ने इसे पैंजिया कहा। पैंजिया में विभाजन कार्बोनीफेरस युग में प्रारंम्भ हुआ और महाद्वीपों का वर्तमान स्वरूप पैन्जिया के विखण्डन तथा इन विखण्डित हुए स्थलखण्डों के प्रवाहित होकर अलग होने के फलस्वरूप हुआ। वेगनर के अनुसार पैंजिया चारों तरफ से जल से घिरा हुआ था जिसे उसने पैंथालासा कहा। उनके अनुसार महाद्वीपीय ठोस भाग सियाल तथा महासागरीय भू भाग सीमा का बना हुआ है तािा सियाल सीमा पर तैर रहा है। सीमा के ऊपर तैरते हुए पैन्जिया का विखण्डन और प्रवाह मुख्यतः गुरुत्वाकर्षण शक्तियों की असमानता के कारण हुआ। वेगनर के अनुसार जब पैंजिया में विभाजन हुआ तब दो दिशाओं में प्रवाह हुआ-उत्तर या विषुवत रेखा की ओर तथा पश्चिम की ओर।

  1.  विषुवत रेखा की ओर प्रवाह गुरुत्व बल तथा प्लवनशीलता के बल (Force to buoyancy के कारण हुआ।

2.  महाद्वीपों का पश्चिम दिशा की ओर प्रवाह सूर्य तथा चन्द्रमा के ज्वारीय बल के कारण हुआ।पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूमती है और ज्वारीय बल पृथ्वी के भ्रमण पर ब्रेक लगाते हैं इस कारण महाद्वीपीय भाग पीछे छूट जाते हैं तथा स्थल भाग पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगते हैं तथा स्थल भाग पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगते हैं। पैंजिया का गुरुत्व बल व प्लवनशीलता के बल के कारण दो भागों में विखण्डन हुआ। उत्तरी भाग लाॅरेंशिया या अंगारालैण्ड तथा दक्षिणी भाग गोंडवानालैण्ड कहलाया। बीच का भाग टेथिज सागर के रूप में बदल गया। जुरैसिक काल में गोण्डवानालैड का विभाजन हुआ तथा ज्वारीय बल के कारण प्रायद्वीपीय भारत, मेंडागास्कर, आॅस्ट्रेलिया तथा अण्टार्कटिका गोंडवाना लैंड से अलग होकर प्रवाहित हो गये। इसी समय उत्तरी व दक्षिण अमेरिका ज्वारीय बल के कारण पश्चिम की ओर प्रवाहित हो गये। पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने के क्रम में सीमा का रुकावट के कारण प0 भाग में राॅकी तथा एंडीज पर्वतों का निर्माण हुआ। प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर की ओर प्रवाहित होने के कारण हिन्द महासागर तथा दोनों अमेरिकी महाद्वीपों के पश्चिम की ओर प्रवाहित होने के कारण अटलांटिक महासागर का निर्माण हुआ। आर्कटिक सागर तथा उत्तरी ध्रुव सागर का निर्माण महाद्वीपों के उत्तरी ध्रुवों से हटने के फलस्वरूप हुआ। कई दिशाओं से महाद्वीपों के, अतिक्रमण के कारण पेंथालासा का आकार संकुचित हो गया

सिद्धांत के पक्ष में प्रमाण-

वेगनर के अनुसार आरंभ में सभी स्थलीय भाग पैंजिया के रूप में थे। इसके लिए उन्होंने कई प्रमाण प्रस्तुत किये। वेगनर के अनुसार अटलांटिक महासागर के दोनों तटों में भौगोलिक एकरूपता पायी जाती है। इस एकरूपता के कारण उन्हें आसानी से जोड़ा जा सकता है। दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है और इसी प्रकार उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट से जोड़ा जा सकता है। इस स्थिति को Jig saw Fit कहते हैं।

भूगर्भिक प्रमाणों के आधार पर अटलांटिक महासागर के दोनों तटों के कैलिडोनियन तथा हर्सीनियन पर्वत क्रमों में समानता पायी जाती है। दक्षिणी अटलांटिक महासागरों के तटों पर स्थित अफ्रीका व ब्राजील की संरचना और चट्टानों में भी समानता है।

दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तथा अफ्रीका के पश्चिमी तटों का गहन अध्ययन यह प्रमाणित करता है कि दोनों तटों की संरचना में पर्याप्त साम्यता है। इसके अलावा भारत, दक्षिण अफ्रीका, फाॅकलैण्ड, आॅस्ट्रेलिया तथा अण्टार्कटिका में ग्लोसाॅप्टेरिस वनस्पति का पाया जाना यह प्रमाणित करता है कि कभी ये स्थल भाग एक साथ जुड़े हुए थे।

आलोचना:- इस सिद्धान्त की सबसे बड़ी आलोचना प्रवाह की शक्तियों के सन्दर्भ में की गयी है। वेगनर ने जिन बलों को महाद्वीपों के प्रवाह के लिए उत्तरदायी बताया है, वह उपयुक्त नहीं है। इसके अलावा वेगनर के सिद्धांत में परस्पर विरोधी बातें भी दिखाई देती हैं। पहले उन्होंने कहा कि सियाल, सीमा पर बिना रूकावट के तैर रहा है और फिर कहा कि सीमा से सियाल पर रुकावट आयी। वेगनर ने उस बल के बारे में भी नही बताया, जिससे कार्बोनिफेरस युग से पहले पैंजिया स्थिरावस्था में था।

अटलांटिक तटों के आकार की एकरूपता (Jig-Saw-Fit) पर वेगनर ने जितना जोर दिया है, वास्तव में यह बहुत हद तक सही नहीं है क्योंकि दोनों तटों की भूगर्भिक बनावट सभी जगह मेल नहीं खाती हैं।  लेकिन इन आलोचनाओं के बावजूद भी वेगनर के सिद्धान्त का अपना अलग महत्व है। इस सिद्धान्त के द्वारा अनेक भौगोलिक और भू-वैज्ञानिक समस्याओं को सुलझाने में मदद मिली है। समय के साथ नये अनुसंधानों ने इसकी पुष्टि की है और प्लेट विवर्तनिका व पुरा-चुम्बकत्व द्वारा भी इस सिद्धान्त के समान में कई प्रमाण मिले हैं।

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