भारत में केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर संसदीय शासन प्रणाली स्वीकार की गयी है। संसदीय शासन प्रणाली में दोहरी कार्यपालिका पायी जाती है। प्रथम-प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के नेतृत्व में वास्तविक कार्यपालिका/द्वितीय-राष्ट्रपति या राज्यपाल के नेतृत्व में नाममात्र की कार्यपालिका। अनु0 153 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। अनु0 154 में कहा गया कि राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का मुखिया होगा।
राज्यपाल की नियुक्ति:-
अनु0-155 के अंतर्गत राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति जी द्वारा होगी। नियुक्ति वे संघीय मंत्रिपरिषद की परामर्श से करेंगे।
योग्यता:-
अनु0 157 के अंतर्गत राज्यपाल के लिए निम्नलिखित योग्यता है-
- वे भारत के नागरिक हो।
- वे 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुके हों।
अनु0 158 में अन्य शर्तों का उल्लेख किया गया है। जैसे-
- पागल व दिवालिया न हो।
- लाभ के पद पर न हो।
- संसद व विधानमण्डल के सदस्य न हो।
7वें संविधान संशोधन अधि0 1956 से व्यवस्था दी गयी कि दो या इससे अधिक राज्यों के लिए एक राज्यपाल हो सकते हैं।
राज्यपाल का कार्यकाल (अनु0 156 के अनुसार)
- राज्यपाल पद ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष तक अपने पद पर बने रहेगें। इसके पूर्व वह अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को दे सकते हैं या राष्ट्रपति उसे पदमुक्त कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त कार्य करता है। अतः उसे महाभियोग से नहीं हटाया जा सकता। राज्यपाल को हटाये जाने का संविधान में कोई आधार वर्णित नहीं है। अतः उसे किसी भी आधार पर हटाया जा सकता है।
- राज्यपाल अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी है।
- अनु0 160 राष्ट्रपति असाधारण परिस्थितियों में राज्यपाल का कार्य करेगा।
- राज्यपाल को वेतन भत्ता राज्य संचित निधि से दिया जायेगा।
शपथ:- राज्यपाल को शपथ उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठ न्यायाधीश दिलायेगा।
राज्यपाल के निर्वाचन की व्याख्या निम्नलिखित कारणों से नहीं किया गया-
- निर्वाचित राज्यपाल संसदीय शासन प्रणाली के प्रतिकूल होगा।
- इसका मुख्यमंत्री से टकराव होगा।
- वह दलीय राजनीति का शिकार हो जायेगा।
- यह केन्द्र व राज्य के मध्यस्थ की भूमिका नहीं निभा पायेगा।
उपर्युक्त कारणों से राज्यपाल का चुनाव न कराकर नियुक्ति का प्रावधान हुआ। संविधान सभा की प्रांतीय समिति ने सुझाव दिया था कि राज्यपाल का वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव किया जाये।
राज्यपाल के कार्य एवं शक्तियां:-
डी.डी. वसु ने कहा कि राज्यपाल की शक्तियां राष्ट्रपति की शक्तियों के समान है, सिर्फ कूटनीतिक, सैनिक एवं आपातकाल की शक्ति को छोड़कर।
कार्यपालिकीय कार्य:-
- अनुच्छेद 154:-राज्यपाल कार्यपालिका का प्रधान होगा। वह यह कार्य स्वयं या अपने अधीनस्थों द्वारा कराता है।
- अनुच्छेद 162:- राज्यपाल के कार्यपालिकीय शक्ति का विस्तार राज्य सूची पर बने विधियों तक है।
- राज्य का शासन संचालन राज्यपाल के नाम से होता है।
- वह राज्य प्रशासन का अध्यक्ष होता है।
- असम के राज्यपाल को अनुसूचित कबीलो के कल्याण हेतु विशेष विवेकाधिकार प्राप्त है।
- असम के राज्यपाल को जिला परिषदों द्वारा खानों के लाइसेन्स से प्राप्त राजस्व की राशि निर्धारित करने का अधिकार है।
- सिक्किम के राज्यपाल को सामाजिक, आर्थिक विकास हेतु विशेषाधिकार प्राप्त है।
- अरूणाचल प्रदेश के राज्यपाल को वहाँ कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेषाधिकार प्राप्त है।
- राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा मुख्यमंत्री के परामर्श से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता, लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष सदस्य आदि की नियुक्ति करता है।
- राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफलता सम्बन्धी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रेषित करता है।
विधायी कार्य:-
- राज्यपाल राज्य विधानमण्डल का अंग होगा। (अनु0 168) उसके हस्ताक्षर के बिना कोई विधेयक कानून का रुप नहीं धारण करता है।
- अनुच्छेद 174 राज्यपाल राज्य-विधानमण्डल का सत्र, सत्रावसान और विघटन करेगा।
- राज्यपाल राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित विधेयकों पर (धन विधेयक को छोड़कर) अनुमति दे सकता है, अनुमति रोक सकता है और पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है तथा अनु0 200 के अंतर्गत वह उसे राष्ट्रपति हेतु आरक्षित कर सकता है। अनु0 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति आरक्षित विधेयकों पर अनुमति दे सकता है या विधेयक को समाप्त कर सकता है।
- अनुच्छेद 333 के अंतर्गत राज्य विधानसभा में एंग्लोइण्डियन वर्ग का उचित प्रतिनिधित्व न हो तो राज्यपाल एक एंग्लो इण्डियन का मनोनयन कर सकता है।
- अनुच्छेद 171 के अंतर्गत राज्य विधान परिषद के 1/6 सदस्यों का मनोनयन राज्यपाल करते हैं वे ऐसे सदस्यों का मनोनयन करते हैं जो विज्ञान, साहित्य, कला, समाज सेवा और सहकारी आन्दोलन के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया हो।
- राज्य विधान मण्डल में किसी विधेयक पर गतिरोध की स्थिति में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है। अर्थात राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयक को राज्य विधान परिषद अधिकतम 4 माह (3+1) तक रोक सकती है। 4 माह के बाद राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयक मान्य होगा।
- अनु0 213 के अंतर्गत राज्यसूची के विषयों पर यदि विधानमण्डल सत्र में नहीं है तो राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकते हें। ऐसा अध्यादेश राज्यविधान मण्डल के सत्र में आने के 6 सप्ताह तक विधान मण्डल के अनुमति के बगैर प्रभावी रहेगा।
3. वित्तीय कार्य:-
- राज्यपाल राज्य का वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) वित्तमंत्री से विधान मण्डल में पेश करवाता है।
- आकस्मिक निधि पर राज्यपाल का नियंत्रण होता है अर्थात् इस निधि से धन की निकासी राज्यपाल विधानमण्डल की अनुमति के बगैर करता है।
- धन विधेयक, वित विधेयक और विनियोग विधेयक राज्यपाल की अनुमति से ही विधानसभा में प्रस्तुत होता है।
4. न्यायिक कार्य:-
- राज्यपाल जिला जजों की नियुक्ति करते हैं।
- हाईकोर्ट के जजों की नियुक्तियों में राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं।
- अनु0 161 के अंतर्गत राज्य सूची के विषयों पर बने विधि के उल्लंघनकर्ता अपराधी के दण्ड को क्षमादान कर सकते देते हैं।
5. राज्यपाल के विवेकाधिकार:-
- असम, सिक्किम, अरूणाचल आदि के राज्यपालों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त है।
- राज्य में संवैधानिक मिशनरी फेल होने सम्बन्धी प्रतिवेदन राष्ट्रपति को भेजने में।
- जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिले तब मुख्यमंत्री की नियुक्ति में।
- यदि बहुमत खोया मंत्रिपरिषद त्यागपत्र न दे तो उसे हटाने में।
- विधेयकों पर हस्ताक्षर करते समय।
- विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करते समय।
- राज्य विधानसभा के विघटन के समय।
- 1967 के चौथे आमचुनाव के बाद ज्यादातर प्रांतों में गठबन्धन की राजनीति की शुरुआत हुयी। जिससे राज्य में राज्यपाल की भूमिका बढ़ने लगी। इससे पूर्व राज्यपाल की भूमिका नाममात्र की संवैधानिक मुखिया तक ही थी इसीलिए-डाॅ. पट्टाभिसीत्ता रमैया ने कहा-’’राज्यपाल का कार्य आगन्तुओं का स्वागत करना है। सरोजनी नायडू ने कहा ’’यह सोने के पिजरे में बंद एक पक्षी के समान है।’’ विजयलक्ष्मी पंडित ने कहा इस पद की ओर लोगों का आकर्षण इसके वेतन के कारण है।
- संविधान सभा के सदस्यों ने राज्यपाल को केन्द्र एवं राज्य के बीच एक कड़ी के रुप में स्थापित किया ताकि वह के.एम. मुन्शी के शब्दों में-’’भारत की एकता बनाए हुए राज्यों को केन्द्र से जोड़ सके।
- आरम्भ से ही राज्यपाल के पद पर विवाद रहा, जिस पर राजमन्नार समिति ने (डी.एम.के. सरकार 1969) कहा-
- राज्यपाल की नियुक्ति मुख्यमंत्री के परामर्श पर हो।
- राज्यपाल को लेकर व्यापक संविधान संशोधन हो।
- प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा-’’सार्वजनिक क्षेत्र के अनुभवी की नियुक्ति राज्यपाल पद पर हो।’’
- सरकारिया आयोग ने कहा-’’सार्वजनिक क्षेत्र के अनुभवी की नियुक्ति राज्यपाल पद पर हो।’’
- निम्नलिखित व्यवस्था करके राज्यपाल को निष्पक्ष या संघात्मक भावनाओं के अनुकूल बनाया जा सकता है-
- राज्यपाल की नियुक्ति एवं पदच्युति एक पैनल के परामर्श पर हो जिसमें सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के नेता हो और ईमानदार छवि वाले प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकारी आदि हो।
- सक्रिय राजनीतिज्ञ की नियुक्ति न हो।
- राज्यपाल के स्थानान्तरण नीति स्पष्ट हो।