राजनीतिक संगठनः-
सिन्धु सभ्यता के लिपि के पढ़े न जाने के कारण यहाँ की शासन प्रणाली पर केवल अनुमान ही लगाया जाता है। समकालीन मेसोपोटामियां सभ्यता में मन्दिर के प्रमाण मिले हैं वहाँ पर पुरोहितों का शासन माना जाता है परन्तु सिन्धु सभ्यता से ऐसे किसी भी मन्दिर के प्रमाण प्राप्त नही हुए हैं अतः यहाँ पर पुरोहितों का शासन नहीं माना जा सकता हालांकि प्रसिद्ध इतिहासकार ए0एल0 बासम ने यहाँ पर पुरोहितों का शासन माना है। डाॅ0 आर0एस0 शर्मा सिन्धु सभ्यता में वणिक वर्ग का शासन मानते हैं जो इस समय विद्वानों में सबसे ज्यादा मान्य है। पिग्गट ने बताया किस सामराज्य की दो जुड़वा राजधानियाँ हड़प्पा और मोहनजोदड़ों है।
सामाजिक दशा:-
सिन्धु सभ्यता से हमें एक शासक वर्ग का पता चलता है पुरोहितों के प्रमाण भी कुछ मिले हैं यहाँ का शासन वणिक समुदाय द्वारा चलाया जाता था। मकानों के प्रारूप के आधार पर श्रमिक और दासों का अनुमान भी लगाया जाता है अतः वहाँ की सामाजिक संरचना में उपर्युक्त वर्ग की कल्पना की जाती है।
1. स्त्रियों की दशा:-
सिन्धु सभ्यता में सबसे अधिक मृण्य मूर्तियां नारी की प्राप्ति हुई है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि समाज में उनकी दशा अच्छी थी परन्तु इस विषय में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि राजस्थान और गुजरात से किसी भी नारी की मृण्य मूर्ति के प्रमाण नहीं प्राप्त हुए हैं।
लोथल और कालीबंगा से युगल शवाधान के आधार पर सती प्रथा का अनुमान लगाया जा सकता है सिन्धु सभ्यता में दास प्रथा प्रचलित थी।
लोथल और कालीबंगा से युगल शवाधान के आधार पर सती प्रथा का अनुमान लगाया जा सकता है सिन्धु सभ्यता में दास प्रथा प्रचलित थी।
वस्त्र आभूषण रहन-सहन:-
सिन्धु सभ्यता को कपास उपजाने का श्रेय प्राप्त है। यहाँ से सूती वस्त्र के प्रमाण मिले हैं। वस्त्रों पर बुनाई भी होती थी। मोहनजोदड़ो से हाथी के दांत की बनी सुइयों एवं कंघी का प्रमाण है। वही से ताँबे के सीसे प्राप्त हुए हैं। चान्हूदड़ो से लिपिस्टिक काजल आदि के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं।
आर्थिक दशाः-
1. कृषि:- हड़प्पा वासी सामान्यतः जाड़े में नवम्बर- दिसम्बर में अपनी फसलों को बोते थे तथा अगली बरसात आने के पूर्व मार्च-अप्रैल में काट लेते थे। इन लोगों को 9 प्रकार की फसलें ज्ञात थी- गेहँ, जौ, कपास, सरसो, राई, तिल, मटर तरबूज, खजूर। हड़प्पाई लोग फसलों के बोने में भ्वम (हो) (हल की प्रारम्भिक अवस्था) का प्रयोग करते थे। फसल काटने के लिए पत्थर के हशिये का प्रयोग किया जाता था। वनावली से मिट्टी के हल के प्रमाण मिलें है वहाँ से बढि़या किस्म का जौ प्राप्त हुआ है।
चावल:- सिन्धु सभ्यता के लोगों को चावल का ज्ञान नहीं था परन्तु इसके कुछ प्रमाण मिले है लोथल से चावल प्राप्त हुआ है जबकि रंगपुर से धान की भूंसी । परन्तु सामान्यतः यहाँ चावल के अस्तित्व को नही माना जाता।
सिंचाई:- सिंचाई के साधनों में वर्षा जल का प्रयोग होता था। लेकिन नहरों का प्रयोग नहीं होता था। नहरों का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में प्राप्त होता है। नहरों का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य खारवेल के हाथी-गुफा अभिलेख में मिलता है।
पशुपालन:-सिन्धु सभ्यता में पशुओं का ज्ञान विभिन्न प्रकार की मृण्य मूर्तियों और मुहरों पर उनके अंकन से होता है। कूबढ़ वाले बैल की महत्ता सबसे अधिक थी। एक श्रंृगी साँड भी था। गाय का प्रमाण यद्यपि माना जाता है परन्तु इसका अंकन न तो मुहरों पर मिलता है और न ही इसकी कोई मृण्य मूर्ति प्राप्त होती है हलांकि एस0आर0 राव ने लोथल से गाय की मृण्य मूति प्राप्त होने का दावा किया है।
घोड़ा:-सिन्धु सभ्यता के लोगों को घोड़ों का ज्ञान नहीं था परन्तु इसके कुछ प्रमाण प्राप्त हुए हैं जैसे-लोथल एवं रंगपुर से मृण्य मूर्ति, सुर कोटडा से सैन्धव कालीन से अस्थि पंजर आदि। बलुचिस्तान में स्थित राना घुड़ई से घोड़े के दाँत मिले हैं लोथल से घोड़े की मृण्य मूति प्राप्त हुई है इसी तरह मोहनजोदड़ों के उपरी स्तर से घोड़े के प्रमाण मिले हैं।
बाघ:- सिन्धु सभ्यता के लोगों को बाघ का ज्ञान था लेकिन शेर का ज्ञान नहीं था।
उद्योग धन्धे:- सूती वस्त्र यहाँ का सबसे प्रमुख उद्योग रहा होगा चूँकि कपास सैन्धव लोगों की मूल फसल थी सूती वस्त्र के प्रमाण मोहनजोदड़ों से प्राप्त हुए हैं। वस्त्रों पर बुनाई भी की जाती थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक व्यक्ति तिपतिया शाल ओढ़े हुए हैं यूनानी कपास के कारण ही इसे सिन्डन कहते थे।
ताँबे सैन्धव सभ्यता में प्रमुख रूप से प्रयोग की जाने वाली धातु थी। ताँबा मुख्य रूप से राजस्थान के खेतड़ी से (झुन-झुन जिला) प्राप्त किया जाता था। बलुचिस्तान और मगन (मध्य एशियाई देश) से भी ताँबा के प्रमाण मिले हैं। ताँबें में टिन मिलाकर काँसा तैयार किया जाता था। टिन अफगानिस्तान से मंगाया जाता था। ताँबे से बनी वस्तुयें काँसें की अपेक्षा अधिक मात्रा में मिली हुई है।
मुहरें मनके मृदभाण्ड धातु मूर्तियां और नगर बनाने वाले लोगों का भी समुदाय था।
व्यापार:- व्यापार मूलतः दो प्रकार का होता था आन्तरिक व्यापार एवं वाह्य व्यापार।
चावल:- सिन्धु सभ्यता के लोगों को चावल का ज्ञान नहीं था परन्तु इसके कुछ प्रमाण मिले है लोथल से चावल प्राप्त हुआ है जबकि रंगपुर से धान की भूंसी । परन्तु सामान्यतः यहाँ चावल के अस्तित्व को नही माना जाता।
सिंचाई:- सिंचाई के साधनों में वर्षा जल का प्रयोग होता था। लेकिन नहरों का प्रयोग नहीं होता था। नहरों का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में प्राप्त होता है। नहरों का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य खारवेल के हाथी-गुफा अभिलेख में मिलता है।
पशुपालन:-सिन्धु सभ्यता में पशुओं का ज्ञान विभिन्न प्रकार की मृण्य मूर्तियों और मुहरों पर उनके अंकन से होता है। कूबढ़ वाले बैल की महत्ता सबसे अधिक थी। एक श्रंृगी साँड भी था। गाय का प्रमाण यद्यपि माना जाता है परन्तु इसका अंकन न तो मुहरों पर मिलता है और न ही इसकी कोई मृण्य मूर्ति प्राप्त होती है हलांकि एस0आर0 राव ने लोथल से गाय की मृण्य मूति प्राप्त होने का दावा किया है।
घोड़ा:-सिन्धु सभ्यता के लोगों को घोड़ों का ज्ञान नहीं था परन्तु इसके कुछ प्रमाण प्राप्त हुए हैं जैसे-लोथल एवं रंगपुर से मृण्य मूर्ति, सुर कोटडा से सैन्धव कालीन से अस्थि पंजर आदि। बलुचिस्तान में स्थित राना घुड़ई से घोड़े के दाँत मिले हैं लोथल से घोड़े की मृण्य मूति प्राप्त हुई है इसी तरह मोहनजोदड़ों के उपरी स्तर से घोड़े के प्रमाण मिले हैं।
बाघ:- सिन्धु सभ्यता के लोगों को बाघ का ज्ञान था लेकिन शेर का ज्ञान नहीं था।
उद्योग धन्धे:- सूती वस्त्र यहाँ का सबसे प्रमुख उद्योग रहा होगा चूँकि कपास सैन्धव लोगों की मूल फसल थी सूती वस्त्र के प्रमाण मोहनजोदड़ों से प्राप्त हुए हैं। वस्त्रों पर बुनाई भी की जाती थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक व्यक्ति तिपतिया शाल ओढ़े हुए हैं यूनानी कपास के कारण ही इसे सिन्डन कहते थे।
ताँबे सैन्धव सभ्यता में प्रमुख रूप से प्रयोग की जाने वाली धातु थी। ताँबा मुख्य रूप से राजस्थान के खेतड़ी से (झुन-झुन जिला) प्राप्त किया जाता था। बलुचिस्तान और मगन (मध्य एशियाई देश) से भी ताँबा के प्रमाण मिले हैं। ताँबें में टिन मिलाकर काँसा तैयार किया जाता था। टिन अफगानिस्तान से मंगाया जाता था। ताँबे से बनी वस्तुयें काँसें की अपेक्षा अधिक मात्रा में मिली हुई है।
मुहरें मनके मृदभाण्ड धातु मूर्तियां और नगर बनाने वाले लोगों का भी समुदाय था।
व्यापार:- व्यापार मूलतः दो प्रकार का होता था आन्तरिक व्यापार एवं वाह्य व्यापार।
आन्तरिक व्यापार:-
सैन्धव लोगों का आन्तरिक व्यापार अत्यन्त उन्नत अवस्था में था एक ही तरह के बाट-माप का प्रयोग और उनका 16 गुने के रूप में होना विभिन्न नगरों में अन्नागार प्राप्त होना बैलगाड़ी के पहिए का ठोस होना उनमें आपस में किसी न किसी तरह से सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है।
क्षेत्र:- सिन्धु सभ्यता के लोग महाराष्ट्र कर्नाटक और तमिलनाडु तक व्यापार करने के लिए जाते रहे होगें। महाराष्ट्र के दैमाबाद से एक काँसे का रथ प्राप्त हुआ है जिसे एक नग्न पुरुष चला रहा है। दैमाबाद का सम्बन्ध सिन्धु क्षेत्र से लगाया जा रहा है। कर्नाटक के कोलार से सैन्धव लोग सोना प्राप्त करते थे इसी तरह तमिलनाडु के दोछा बेक्टा से वे हरा पत्थर प्राप्त करते थे। इस तरह सुदूर दक्षिण तक सैन्धव लोगों का व्यापारिक सम्बन्ध पहले से ही था।
बंगाल बिहार और उत्तर-पूर्वी राज्यों से उनके किसी व्यापारिक सम्बन्ध का पता नहीं चलता।
क्षेत्र:- सिन्धु सभ्यता के लोग महाराष्ट्र कर्नाटक और तमिलनाडु तक व्यापार करने के लिए जाते रहे होगें। महाराष्ट्र के दैमाबाद से एक काँसे का रथ प्राप्त हुआ है जिसे एक नग्न पुरुष चला रहा है। दैमाबाद का सम्बन्ध सिन्धु क्षेत्र से लगाया जा रहा है। कर्नाटक के कोलार से सैन्धव लोग सोना प्राप्त करते थे इसी तरह तमिलनाडु के दोछा बेक्टा से वे हरा पत्थर प्राप्त करते थे। इस तरह सुदूर दक्षिण तक सैन्धव लोगों का व्यापारिक सम्बन्ध पहले से ही था।
बंगाल बिहार और उत्तर-पूर्वी राज्यों से उनके किसी व्यापारिक सम्बन्ध का पता नहीं चलता।
वाह्य व्यापार:-
सैन्धव लोगों के वाह्य व्यापार का साक्ष्य भी मिला है। एक प्रकार के बाट-माप मुहरों की उपस्थिति बन्दरगाह नगरों का होना लोथल से गोदी बाड़े का प्रमाण प्राप्त होना। लोथल में फारस की मुहर प्राप्त होना इनके वाह्य व्यापार को प्रदर्शित करता है।
सिन्धु सभ्यता की बेलनाकार मुहरें मेसोपोटामियां के आधा दर्जर नगरो (उर, किश, तिल अस्मर नित्पुर, टेटे गावरा, हमा) से प्राप्त हुए हैं। मेसोपोटामिया के शासक सारगोन काल की मिट्टी की पट्टिकाओं पर मेलुहा, ढिलमुन और मगन से व्यापार का उल्लेख मिलता है। मेलुहा की पहचान मोहनजोदड़ों से की जाती है। ढिल्मुन की पहचान बहरीन से, मगन की पहचान अभी संदिग्ध है परन्तु इसका उल्लेख ताँबे के प्रमुख स्रोत के रूप में हुआ है। सम्भवतः यह आधुनिक ओमान अथवा बलुचिस्तान का कोई क्षेत्र रहा होगा।
व्यापारिक देशः-1- मेसोपोटामियां (ईराक, ईरान, अफगानि -स्तान, ढिल्मुन (बहरीन) रूस का दक्षिणी तुर्कमेनिस्तान, मिश्र, कुबैत (फैल्का द्वीप) तिब्बत।
नोट:- इस व्यापार में यूरोपीय देश, दक्षिणी पूर्वी एशियाई देश, चीन और अमेरीकी देशों ने भाग नहीं लिया।
निर्यात की वस्तुयें:- सूती वस्त्र, मसाला, हाथी दांत, काली लकड़ी, मुहरें आदि।
आयातित वस्तुयेंः-
1- लाजवर्द मणि-अफगानिस्तान का बदख्सा क्षेत्र।
2- चाँदी – अफगानिस्तान
3- टिन – ईरान, अफगानिस्तान
4- संगमराब अथवा हरिताश्म ;श्रमकद्ध ईरान से।
5- फिरोजा टिन और चांदी – ईरान से।
6- फिलन्ट एवं चर्ट के पत्थर – त्वीतप (रोड़ी) पाकिस्तान के सिन्ध एवं .. नाानत (सक्खर) क्षेत्र से।
सैन्धव लोगों ने अफगानिस्तान में अपना व्यापारिक उपनिवेश बसाया जबकि ढिलमुन (बहरीन) उनके बीच व्यापारिक बिचैलिए का कार्य करता था।
सिन्धु सभ्यता की बेलनाकार मुहरें मेसोपोटामियां के आधा दर्जर नगरो (उर, किश, तिल अस्मर नित्पुर, टेटे गावरा, हमा) से प्राप्त हुए हैं। मेसोपोटामिया के शासक सारगोन काल की मिट्टी की पट्टिकाओं पर मेलुहा, ढिलमुन और मगन से व्यापार का उल्लेख मिलता है। मेलुहा की पहचान मोहनजोदड़ों से की जाती है। ढिल्मुन की पहचान बहरीन से, मगन की पहचान अभी संदिग्ध है परन्तु इसका उल्लेख ताँबे के प्रमुख स्रोत के रूप में हुआ है। सम्भवतः यह आधुनिक ओमान अथवा बलुचिस्तान का कोई क्षेत्र रहा होगा।
व्यापारिक देशः-1- मेसोपोटामियां (ईराक, ईरान, अफगानि -स्तान, ढिल्मुन (बहरीन) रूस का दक्षिणी तुर्कमेनिस्तान, मिश्र, कुबैत (फैल्का द्वीप) तिब्बत।
नोट:- इस व्यापार में यूरोपीय देश, दक्षिणी पूर्वी एशियाई देश, चीन और अमेरीकी देशों ने भाग नहीं लिया।
निर्यात की वस्तुयें:- सूती वस्त्र, मसाला, हाथी दांत, काली लकड़ी, मुहरें आदि।
आयातित वस्तुयेंः-
1- लाजवर्द मणि-अफगानिस्तान का बदख्सा क्षेत्र।
2- चाँदी – अफगानिस्तान
3- टिन – ईरान, अफगानिस्तान
4- संगमराब अथवा हरिताश्म ;श्रमकद्ध ईरान से।
5- फिरोजा टिन और चांदी – ईरान से।
6- फिलन्ट एवं चर्ट के पत्थर – त्वीतप (रोड़ी) पाकिस्तान के सिन्ध एवं .. नाानत (सक्खर) क्षेत्र से।
सैन्धव लोगों ने अफगानिस्तान में अपना व्यापारिक उपनिवेश बसाया जबकि ढिलमुन (बहरीन) उनके बीच व्यापारिक बिचैलिए का कार्य करता था।