प्रतिरोधक भण्डार (वफर स्टाॅक)

प्रतिरोधक भण्डार (वफर स्टाॅक)

वफर स्टाक बनाने का एक मात्र उद्देश्य खाद्य सुरक्षा प्रदान करना होता है यह एक ऐसा प्रारम्भिक स्टाॅक है जिसके फसल खराब होने की स्थिति में अनाज निकाला जाता है। सन् 1994 ई0 के बाद से स्टाॅक प्रत्येक तिमाही के लिए अलग-अलग निर्धारित किया जा रहा है। यदि स्टाॅक वर्ष भी प्रत्येक तिमाही के लिए निर्धारित वफर स्टाॅक मापदण्डों से कम रह जाता है तो अनाज की खरीद के लिए उच्चतम मूल्य प्रोत्साहनों के माध्यम से स्टाॅक की कमी को पूरा करने के लिए कदम उठाया जाता जाता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution Systems-P.D.S) :- उपभोक्ताओं को सस्ते मूल्य पर उचित दर राशन दुकानों द्वारा उपभोग वस्तुएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा PDS 1950 ई0 में लागू किया गया। इसके अन्तर्गत गरीबों को सस्ते मूल्य पर खाद्यान्न वितरित करके उन्हें मँहगाई के बोझ से बचाने का प्रयास किया जाता है। उपभोक्ताओं को निम्न माध्यमों से वस्तुएं उपलब्ध करायी जाती है-

1. मिट्टी के तल की विक्रय दुकाने
2. सुपर बाजार
3.नियंत्रित उपभोक्ता भण्डार
4.राशन या सरकारी सस्ते गल्ले की दुकाने
5. सहकारी-उपभोक्ता भुगतान

यदि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लोगों को मिलने वाले खाद्यान्नों का मूल्य उसके आपूर्ति लागत से कम है तो लागत एवं मूलय के इस अन्तर को खाद्यान्न अनुदान या Food Subsidy कहा जाता है।

नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली :- सन् 1992 ई0 में नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रारम्भ की गयी जिसमे देश के सबसे पिछड़े हुए क्षेत्रों, रेगिस्तानी इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों और गरीब मलिन बस्तियों में 50 रू0 प्रति कुन्तल से कम मूल्य पर गेहूँ एवं चावल उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है इसके अन्तर्गत छः प्रमुख आवश्यक वस्तुओं गेहूँ, चावल, चीनी, खाद्य तेल, मिट्टी का तेल, कोयला के साथ-साथ चाय, साबुन, दाल, आयोडीन नमक को भी शामिल किया गया है।

लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली :- TPDS प्रणाली 1 जून 1997 ई0 में प्रारम्भ की गयी। यह प्रणाली भारत में सभी राज्यों में लागू है जिसमें दिल्ली और लक्षद्वीप इसके दायरे से बाहर हैं। इस योजना के अन्तर्गत गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले प्रत्येक परिवार को एक न्यूनतम कीमत पर अनुदान युक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
TPDS के तीन स्तर हैं-

1. अन्त्योदय अन्न योजना (AAY) :- 25 दिसम्बर 2000 को यह योजना प्रारम्भ की गयी जिसमें प्रत्येक परिवार को 2 रू0 प्रति किग्रा गेहूँ तथा 3 रू0 प्रति किग्रा चावल देने का लक्ष्य रखा गया था इस दर पर 35 किग्रा खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया था।

2. गरीबी रेखा से नीचे के परिवार (BPL) :- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत ठण्च्ण्स् परिवारों को 4.15 रूपये प्रति किग्रा गेहूँ 5.56 रू0 प्रति किग्रा चावल की दर से 35 किग्रा प्रति महीना खाद्यान्न उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।

3. गरीबी रेखा के ऊपर के परिवार (APL) :- इस प्रकार के परिवार को खाद्यान्नों में लागत के बराबर मूल्य लेने का लक्ष्य बनाया गया है।

नोट :-  वर्ष 2010 में सरकार द्वारा एक आदेश जारी कर अन्त्योदय अन्न योजना और B.P.L परिवारों के खाद्यान्नों की सीमा को 10 किग्रा परिवार बढ़ाकर 25 किग्रा से बढ़ाकर 35 किग्रा कर दिया गया।

भूमि विकास बैंक:-

भूमि विकास बैंक की स्थापना कृषकों की दीर्घ कालीन प्रान्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु की गयी थी। यह बैंक भारत में सर्वप्रथम 1929 ई0 मद्रास में स्थापित किया गया था। यह कृषकों की चल अचल सम्पत्ति को बंधक बनाकर ऋण प्रदान करता है।

’स्वाभिमान’ कार्यक्रम:- ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करने के लिए वित्तीय समावेशन पर राष्ट्र व्यापी कार्यक्रम स्वाभिमान  का शुभारम्भ 10 फरवरी 2011 को नई दिल्ली में किया गया। यह कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा भारतीय बैंक संघ IBA के सहयोग से ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के मध्य विद्यमान आर्थिक विषमता को कम करने हेतु प्रारम्भ किया गया जिसका मोटो-’सुनहरे कल का अभियान’ है।

राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (National Agriculture Insurance Scheme) :- देश में सर्वप्रथम फसल बीमा योजना 1973-1984 में के दौरान चलाई गयी। बाद में अप्रैल 1985 ई0 में केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने व्यापक फसल बीमा योजना (Comprehensive Crop Insurance Scheme)  प्रारम्भ की। इसी के स्थान पर 1999-2000 में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना लागू की गयी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य सूखे, बाढ़, ओलावृष्टि, चक्रवात, आग, कीट बीमारियाँ आदि जैसी प्राकृति आपदाओं के कारण फसल को हुई क्षति से किसानों को संरक्षण प्रदान करना है ताकि आगामी मौसम में उनकी ऋण साख बहाल हो सके। यह योजना ऋण ग्रस्तता पर ध्यान दिए बिना सभी कृषकों के लिए उपलब्ध है। वर्तमान में कृषि बीमा आयोग द्वारा इस योजना के विकल्प के रूप में मौसम आधारित फसल बीमा योजना प्रारम्भ की गयी है।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना:- इस योजना का प्रारम्भ सितम्बर 2007 में किया गया। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का उद्देश्य कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों की सम्पूर्ण विकास सुनिश्चित करना। इस योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) राज्यों को प्रोत्साहित करना ताकि कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की जा सके।
(2) कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र की योजनाओं के आयोजन और कार्यान्वयन की प्रक्रिया में राज्यों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना।
(3) जिलों एवं राज्यों के लिए कृषि योजनाओं की तैयारी कृषि जलवायु की परिस्थितियों, प्रौद्योगिकी और प्राकृतिक स्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
(4) यह निश्चित करना कि स्थानीय जरूरतों को राज्यों की कृषि योजनाओं में बेहतर ढंग से प्रतिबिम्बित किया जाए।
(5) कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों में किसानों को बेहतर रिटर्न दिलाना।

वर्ष 2002-01 में माइक्रो मैनेजमेंट आॅफ एग्रीकल्चर स्कीम प्रारम्भ की गयी जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि विभिन्न राज्यों को मिलने वाली सहायता प्राथमिकता के आधार पर निर्धारित होना चाहिए। इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड का मुख्यालय हैदराबाद में तम्बाकू बोर्ड का मुख्यालय गुण्टूर आन्ध्र प्रदेश में, 295 बोर्ड कोपट्टम केरल में स्थापित किया गया है। मसाला बोर्ड कोच्चि केरल में, काॅफी बोर्ड बैंग्लूर कर्नाटक में स्थापित किया गया है जबकि राष्ट्रीय जूट बोर्ड कलकत्ता में स्थापित है।

राष्ट्रीय कृषक आयोग एवं नई राष्ट्रीय कृषि नीति :- किसानों एवं कृषि क्षेत्र के लिए कार्य योजना पर सुझाव देने के लिए वर्ष 2004 ई0 में डाॅ0 एम0एस0 स्वामी नाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय कृषक आयोग ने दिसम्बर 2004, अगस्त 2005, अप्रैल 2006 तथा अक्टूबर 2006 में गठित किया गया। इसके अन्तर्गत यह बात सामने आयी कि कृषि उपजों के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव से किसानों की रक्षा हेतु केन्द्र एवं राज्य सरकार के साथ-साथ वित्तीय संसाधनों द्वारा नियंत्रित मार्केट रिस्क स्टेवालाइजेशन फण्ड को गठित किया जाय। इसी के साथ सूखें एवं वर्षा सम्बन्धी आपदाओं से किसानों की रक्षा के लिए एग्रीकल्चर रिश्क फण्ड की स्थापना की संस्तुति भी आयोग ने की।
नई राष्ट्रीय कृषि नीति ने निम्न बातों पर जोर दिया-

1. सभी कृषि उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाय।
2. सभी राज्यों में राज्य स्तरीय किसान आयोग के गठन का सुझाव।
3. किसानों के लिए बीमा योजनाओं का विस्तार किया जाए।
4. कृषि सम्बन्धी मामलों के लिए स्थानीय पंचायतों के अधिकारों में वृद्धि की जाय।
5. केन्द्र एवं राज्य में कृषि मंत्रालयों का नाम बदलकर कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय करने का सुझाव दिया गया।
6. राज्य सरकारों द्वारा कृषि हेतु अधिक संसाधनों के आवंटन की सिफारिस की गयी।

किसान काल सेन्टर:- प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी 21 जनवरी सन् 2004 को नई दिल्ली में ’किसान काल सेंटर तथा कृषि चैनल का उद्घाटन किया। इसके माध्यम से किसान कृषि सम्बन्धी समस्त जानकारी टेलीफोन काल द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।

सरल नाॅलेज सेन्टर:- भारत सरकार ने ग्रामीण विकास बैंक NABRD के द्वारा देश के ग्रामीण इलाकों में सरल नाॅलेज सेंन्टर्स Rural Knowledge Center की स्थापना की गयी। इसका उद्देश्य किसानों को सूचना प्रौद्योगिकी व दूर संचार तकनीक द्वारा वांछित जानकारियाँ उपलब्ध कराना है।

प्रत्यक्ष हस्तान्तरण योजना  (DBT) :- यह योजना वर्ष 2013 ई0 में प्रारम्भ की गयी। इसके सम्बन्ध में नंदन नीलकणि की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी थी जिसके सुझाव पर इसे प्रारम्भ किया गया। इसके अन्तर्गत मनरेगा की मजदूरी, वृद्धावस्था पेंशन छात्रवृत्ति तथा अन्य सभी हस्तांतरण सीधे लाभर्थियों के बैंक में खाते में दिए जाएगें।

भारत मेे खाद्य सुरक्षा (National Food Security Of India) :-

भारत में खाद्य सुरक्षा का अर्थ सभी लोगों के लिए सदैव भोजन की उपलब्धता पहुँच और उसे प्राप्त करने का सामथ्र्य खाद्य सुरक्षा सार्वजनिक वितरण प्रणाली शासकीय सतर्कता और खाद्य सुरक्षा के खतरे की स्थिति में सरकार द्वारा की गई कार्यवाही पर निर्भर करती है। जीवन के लिए भोजन उतना ही आवश्यक है जितना की साँस लेने के लिए वायु। लेकिन खाद्य सुरक्षा मात्र दो जून की रोटी पाने मात्र नहीं है अपितु उससे कहीं अधिक है। खाद्य सुरक्षा के निम्नलिखित आयाम हैं।

1. खाद्य उपलब्धता का तात्पर्य देश में खाद्य उत्पादन खाद्य आयाम और सरकारी अनाज भण्डारों में संचित पिछले स्टाॅक से है।
2. खाद्य पहुँच का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति में खाद्य मिलता रहे।
3. सामथ्य का अर्थ लोगों के पास अपनी भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए।

किसी देश में खाद्य सुरक्षा केवल तभी सुनिश्चित होती है जब सभी लोगों के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध हो तथा लोगों के पास गुणवक्ता युक्त खाद्य पदार्थ खरीदने के क्षमता हो और खाद्य पदार्थ की उपलब्धता में कोई बांधा न आये। 1970 की दशक में संयुक्त राष्ट्र संघ ने खाद्य सुरक्षा का अर्थ बताया है कि आधारित खाद्य पदार्थों की सदैव उपलब्धता। प्रो अमत्र्य सेन ने हकदारियों के आधार पर खाद्य सुरक्षा में एक नया आयाम जोड़ा।

विश्व खााद्य सम्मेलन 1995 में यह घोषणा की गई कि व्यक्तिगत पारिवारिक, क्षेत्रीय राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा का अस्तित्व तभी है जब सक्रिय और स्वस्थ्य जीवन व्यतीत करने के लिए पर्याप्त सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य तक सभी लोगों की भौतिक एवं आर्थिक पहुँच सदैव हो।’’

खाद्य एवं पोषाहार की सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से 10 सितम्बर 2013 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम अधिसूचित किया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी को कुल लाभान्वित किया जाने का प्रावधान किया गया है। इसमें प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए प्रति व्यक्ति 5 किग्रा0 खाद्यान्न और अन्त्योदय योजना के तहत परियोजना के लिए 3 रू0 किग्रा0 चावल 2 रू0 किग्रा0 गेहूँ और 1 रू0 किग्रा0 मोटे अनाज की आर्थिक सहायता देय कीमतों पर प्रत्येक परिवार 35 किग्रा0 खाद्यान्नों का हकदार है। इस अधिनियम ने महिलाओं और बच्चों को पोषाहार सम्बन्धी सहायता दिए जाने पर विशेष बल दिया गया है। इसके घटकों में बफर स्टाॅक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ-साथ एकीकृत बाल विकास सेवाएँ काम के बदले अनाज दोपहर का भोजन, अन्त्योदय अन्य योजना आदि है। खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में सरकार को भूमिका के अलावा अनेक सहकारी समितियां और गैर सरकारी संगठन हैं जो इस दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं।

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