भारतीय मानसून (The Origin Of India Man soon)
मानसून शब्द अरबी भाषा के मौसिम शब्द से लिया गया है। जिसका तात्पर्य है हवाओं का ऋतुवत परिवर्तन। इसी लिए भारतीय महाद्वीप पर चलने वाली हवाएं मानसूनी हवाएं कहलाती हैं क्योंकि ये भी ऋतुवत परिवर्तित होती रहती है।
मनसून उत्पत्ति के बारे मे निम्नलिखित सिद्धान्त हैंः-
1. तापीय सिद्धान्त।
2. फ्लान महोदय का विषुवत रेखीय पछुआ पवन सिद्धान्त।
3. जेट स्टीम सिद्धान्त।
4. एलनिनो सिद्धान्त।
1. तापीय सिद्धान्त- यह सर्वाधिक प्राचीन संकल्पना है।
- तापीय सिद्धान्त को प्रभावित करने वाले कारक- सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणायन की स्थिति।
- सागर और स्थलों का स्वभाव (स्थल गर्म या ठण्डा)
जब सूर्य उत्तरायण में होगा –
जब सूर्य कर्क रेखा पर चमकता है तो भारत के उत्तरी तरफ यानी तिब्बत के पठारो पर या पोतवार के पठार और थार के मरूस्थल पर भ्पही ज्मउचमतंजनतम पाया जाता है। जिससे स्वू चतंेेनतम की उत्पत्ति होगी। इसी समय बंगाल की खाडी और अरब सागर में निम्न तापमान और उच्च वायुदाब की स्थिति होगी। इसी कारण हिन्द महासागर या अरब या बंगाल की खाड़ी से आने वाली दक्षिणी-पश्चिमी हवायें (इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून कहा जाता है) जब अनईमुडी और महेन्द्रगिरी पर्वत से टकराती हैं तो दो शाखाओं में बंट जाती है जिसमें एक अरब सागर की शाखा और दूसरी बंगाल की खाड़ी की शाखा। पुनः अरब सागर की शाखा तीन भागों में बंट जाती है।
पश्चिमी घाट की शाखा –
जून को केरल तट पर पश्चिमी घाट महेन्द्रगिरी के पास आकस्मिक वर्षा होती है जिससे मानसून का फटना कहते हैं। धीरे-धीरे यह उत्तर की तरफ बढने लगता है तथा महीने के अंत तक सामान्य देश के अधिकतर भागों में फैल जाता है। अरब सागर की मानसून की शाखा पश्चिमी तट से टकराकर मुम्बई के दक्षिण में तटवर्ती जिलों और पश्चिमी घाट पर भारी वर्षा करती है। तथा पश्चिमी घाट के पूर्वी तट पर वर्षा नहीं होती है जिससे यह क्षेत्र वृष्टि छाया प्रदेश के क्षेत्र में आता है यही कारण है कि महाबालेश्वर मे ज्यादा वर्षा होती है और पुणें मे वर्षा कम होती है। नर्मदा ताप्ती घाटी का शाखाः- यह शाखा नर्मदा-ताप्ती भ्रंश घाटी में प्रवेश करके नागपुर आदि में वर्षा करती है।
अरावली की शाखा :- यह धारा काठियावाड़ को पार करके आगे बढ़ती है तथा मुख्य रूप से गुजरात के तटवर्ती जिलों में वर्षा करती है। अरावली की पहाड़ियों के निकटवर्ती क्षेत्र को छोड़कर राजस्थान में बहुत कम वर्षा होती है।
बंगाल की खाड़ी की शाखा :- बंगाल की धारा भी दो शाखाओं में विभक्त हो जाती हैं एक उत्तरी-पूर्वी भारत, म्यांमार और थाईलैंड की ओर बढ़ जाती है तथा दूसरी बंगाल की खाड़ी को पार करके निम्न वायु दाब के मानसूनी गर्त की ओर पश्चिमी दिशा में चली जाती है। ये पवनें सीधे उत्तर की दिशा में मुडकर गंगा के डेल्टा क्षेत्र से होकर खासी पहाड़ियों तक पहुॅचती हैं तथा लगभग 1500 मी0 की ऊँचाई तक उठकर मेंघालय के चेरापूंॅजी तथा मासिनराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा करती हैं।
नोट- मई माह में मानसूनी हवाओं के कारण असम में बाढ़ आती है।
- भारत में मानसून 1 जून को आता है। जबकि यह उत्तर प्रदेश में 15 जून को पहॅुचता है
जब सूर्य दक्षिणायन में होगा :-
जब सूर्य दक्षिणायन में होता है तो तिब्बत के पठार, पोतवार के पठार, थार मरूस्थल पर उच्च दाब और निम्न ताप होता है जबकि सागरीय सतह पर निम्न दाब तथा उच्च ताप होता है। जिससे मानसूनी हवाएं स्थल से सागर की ओर चलेंगी। इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व होती है इसलिए इसे उत्तर-पूर्वी मानसून या लौटती मानसून कहते हैं। इन हवाओं की एक शाखा बंगाल की खाडी से आद्रता ग्रहण कर पूर्वी घाट से टकराकर तमिलनाडु में वर्षा करती हैं। इस प्रकार तमिलनाडु में वर्षा लौटती मानसून से होती है।
मानसून पूर्व वर्षा –
काल वैशाखी :- जहाॅ समुद्री आद्र पवनें स्थानीय गरम और शुष्क पवनों से मिलती हैं उन प्रदेशों में अक्सर प्रचंड स्थानीय तूफान बन जाते हैं। इन तूफानों के साथ तेज हवाएं, मूसलाधार वर्षा और ओले आते हैं। इनसे भारी विनाश होता है। ये तूफान पश्चिम बंगाल और असम में प्रायः आते हैं, जहाॅ इन्हें क्रमशः काल वैशाखी और बोर्डाइचिल्ला कहते हैं। इन्हें नारवेस्टर भी कहा जाता हैै।
आम्र वर्षा –
प्रायद्वीप में (केरल और तमिलनाडु) तड़ित झंझा से वर्षा मुख्य रूप से अप्रैल और मई में होती है। इसे आम्रवृष्टि कहते हैं, जो आम फसल के लिए लाभकारी है।
फूलों की वर्षा – कर्नाटक और केरल में होने वाली मानसून पूर्व वर्षा फूलों के लिए लाभदायक होती है इसीलिए इसे फूलों की वर्षा कहते हैं।
चाय की वर्षा – मई महीने में आसाम में होने वाली वर्षा जो चाय की फसल के लिए लाभकारी होती है।
फ्लांन महोदय का विषुवत रेखीय पछुवा पवन का सिद्धांन्त :-
उत्तरी गोलार्द्ध में चलने वाली ब्यापारिक हवायें एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में चलने वाली ब्यापारिक हवांए जहाॅ आकर मिलती है उसे Inter Convergence Zone (अन्तर उष्ण कटिबन्धीय मेखला) कहतें हैं।
जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में होता है तो I.P.C.Z उत्तर की तरफ खिसक जाती है जिससे दक्षिणी गोलार्द्ध में चलने वाली व्यापारिक हवाएं जिनकी दिशा दक्षिण पश्चिम से दक्षिण पूर्व होती है उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाहिनी तरफ मुडकर दक्षिण पश्चिम मानसूनी हवाओं का निर्माण करती है। जो भारत में मानसून की उत्पत्ति करती है।
जेट स्ट्रीम सिद्धान्त –
जेट स्ट्रीम उपरी क्षोभमण्डल में चलने वाली तीव्र वायुधारा या हवा है जो 10-13 किमी0 के बीच में चलती है तथा इसकी गति 150 किमी0 घण्टा होती है इसलिए इसे जेटस्ट्रीम कहते हैं। ये पवने भारतीय मानसून को प्रभावित करती है ये दो प्रकार की होती हैः-
1. उष्ण कटिबन्धीय पूर्वा जेट हवायें (पूर्व से पश्चिम चलती हैं)
2. उपोष्ण कटिबन्धीय पछुवा जेट हवायें ( पश्चिम से चलती पूर्व हैं)
एलनिनों सिद्धान्त –
स्पेन से लिया गया शब्द है। इसे केल्विन जल धारा भी कहा जाता है। एलनिनो पेरू के तट के पास चलने वाली गर्म जल धारा है इसे ईश का बच्चा कहते हैं यह-
1. भारतीय मानसून के लिए घातक है क्योंकि ये धारायें हिन्द माहासागर में पहॅुच कर वहाँ तापमान बढ़ा देती है जिससे दाब कम हो जाता है और मानसूनी हवाओं का प्रवाह रूक जाता है।
2. एलनीनो के कारण अमेजिन बेसिन में आग लगती है तथा वहाॅ सूखा पड़ता है।
3. एलनीनों के द्वारा आस्ट्रेलिया में भी सूखा पड़ता हैं
ल-नीनोः-
ईषू की बच्ची– यह जल धारा भारतीय मानसून के लिए लाभकारी है।