मापन एंव गति (Measurement and Motion)
किसी भी भौतिक राशि के मापन के लिये एक मानक की आवश्यकता होती है। इसी मानक को उसे भौतिक राशि का मात्रक कहते हैं। लम्बाई द्रव्यमान तथा समय को मूलराशियाॅ कहा जाता है। क्योंकि इन्हें एक दूसरे में बदला नहीं जा सकता है। परन्तु सन् 1960 में मापतौल की अन्तर्राष्ट्रीय समिति ने 6 मूलराशियों लम्बाई, द्रव्यमान, समय, विद्युतधारा, ताप, ज्योति तीव्रता का निर्धारण किया। सन्- 1971 में इनमें एक अन्य मूलराशि पदार्थ की मात्रा को जोड़ा गया। इन मूलराशियों का मापन करने वाले मात्रकों को मूलमात्रक कहते हैं। ये मूलमात्रक निम्न हैं।
मीटर (m) :- इसमें लम्बाई का मापन किया जाता है। ‘‘एक मीटर वह दूरी है जिसमें शुद्ध क्रिप्टन 86 उत्सर्जित होने वाले नारंगी प्रकाश की 1650763.73 तरंगें आती है।’’ लम्बाई का सबसे बड़ा मात्रक प्रकाश वर्ष है। एक प्रकाश वर्ष प्रकाश द्वारा एक वर्ष में चली गयी दूरी को कहते हैं। 1 प्रकाश वर्ष = 9.46 × 1015 मीटर।
किलोग्राम (Kg) :- यह द्रव्यमान का मात्रक है। ‘‘ एक किलोग्राम पेरिस में रखे प्लेटिनम इरीडियम मिर धातु के एक विशेष टुकड़े का द्रव्यमान माना गया है। व्यवहार में 1 लीटर जल का द्रव्यमान भी 4ºC पर एक किलोग्राम होता है।
सेकेण्ड :- यह समय का मात्रक है। ‘‘एक सेकेंड समय वह समय अन्तराल है जिसमें परमाणु घड़ी में सिजियम परमाणु 9192631770 कम्पन करता है’’।
एम्पियर (A) :- यह वैद्युतधारा का मात्रक है। एक एम्पियर वह विद्युतधारा है जो कि निर्वात में एक दूसरे से 1 मीटर दूरी पर स्थित समानान्तर तारों में प्रवाहित किये जाने पर तारों के मध्य 2×10-7 न्यूटन का बल उत्पन्न करती है।
केल्विन (K) :- यह ताप का मात्रक है। ‘‘ सामान्य वायुमंडलीय दाब पर गलते हुये बर्फ के ताप तथा उबलते हुये जल के ताप के अन्तर के सौवें भाग को एक केल्विन कहते हैं।’’
केन्डिला (Cd) :- यह ज्योति तीव्रता का मात्रक है। एक केन्डिला मानक स्त्रोत के खुले मुख के 1 सेमी2 क्षेत्रफल की ज्योति तीव्रता 1/60 वाॅ भाग होती है जबकि स्त्रोत का ताप प्लेटिनम के गलनांक के बराबर हो।
मोल (mole) :- यह पदार्थ की मात्रा का मात्रक है। एक मोल किसी पदार्थ की वह मात्रा है जिसमें अवयवों की वही संख्या है जितनी C -12 के 0 – 012 किलोग्राम में परमाणुओं की संख्या होती है। इस पद्धति में मूल मात्रकों के अतिरिक्त दो पूरक मात्रक भी होते हैं। जैसे रेडियन तलीय कोण का मात्रक है तथा स्टेरेडियन घनकोण का मात्रक है।
व्युत्पन्न मात्रक (Derived Unit ) :- मूल राशियों के अतिरिक्त अन्य सभी भौतिक राशियों के मात्रक एक अथवा अधिक मूल मात्रकों पर उपयुक्त घातें लगाकर प्राप्त करते हैं। उदाहरणार्थ- क्षेत्रफल का मात्रक मीटर 2 घनत्व का मात्रक मीटर 3 वेग का मात्रक मीटर प्रति सेकेंड आदि।
सदिष एवं अदिष राषियाॅ :- सदिश राशियों में परिमाण के साथ-साथ दिशा भी होती है, इन्हें व्यक्त करने के लिए परिमाण के साथ दिशा भी आवश्यक होती है जैसे विस्थापन, वेग, त्वरण, बल, संवेग, घनत्व आवेग, वैद्युत क्षेत्र चुम्बकीय बल क्षेत्र आदि और अदिश में केवल परिमाण होता है दिशा नहीं जैसे द्रव्यमान आयतन, समय, कार्य, शाक्ति, ताप, आवेश, विभव आवृत्ति चाल आदि।
गति (Motion ) :- समय के साथ किसी वस्तु की स्थिति मे परिवर्तन को गति कहते हैं। यांत्रिक गतियाॅ दो प्रकार की होती हैं स्थानान्तरित अथवा रैखिक और घूर्णन गति। गतिशील वस्तु द्वारा किसी निश्चत समय में चली गयी दूरी को वस्तु की चाल कहते हैं। चाल अदिश राशि होती है।
चाल = तय की गयी दूरी / समय
मात्रक-मीटर/सेकेंड
वेग (Velocity) :- यह किसी वस्तु द्वारा इकाई समय में निर्दिष्ट दिशा में तय की गयी दूरी है। वेग एक सदिश राशि है क्योंकि इसमें दिशा का उल्लेख करना आवश्यक है। जैसे यदि कोई व्यक्ति वृत्तीय पथ पर 16 किमी0 प्रति घन्टा की चाल से साइकिल चला रहा है तो उसकी चाल तो नियत है परन्तु वेग लगातार बदल रहा है क्येांकि दिशा में परिवर्तन हो रहा है।
त्वरण (Acceleration) :- किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। त्वरण उस स्थिति में उत्पन्न होता है जबकि वस्तु के वेग में वृद्धि हो रही हो परन्तु वेग के घटने पर इसे मन्दन कहते हैं। रेखीय गति में होने वाले परिवर्तनों तथा परिणाम को निम्न समीकरण से व्यक्त करते हैं।
प्रक्षेप्यगति :- जब हम किसी पिण्ड को एक प्रारम्भिक वेग से उध्र्वाधर दिशा से भिन्न किसी दिशा में फेकते हैं तो उस पर गुरूत्वीय त्वरण सदैव नीचे की तरफ लगता है तथा पिण्ड उध्र्वाधर तल में एक वक्रपथ पर गति करता है। प्रक्षेप्य का पथ परवलयाकार होता है जिसमें पिण्ड द्वारा प्राप्त की गयी महत्तम ऊॅचाई, प्रक्षेप्य की परास तथा पथ को तय करने में लगे समय को निम्न समीकरणों से प्राप्त करते हैं ।
प्रक्षेप्य गति में यदि किसी वस्तु को 450 के कोण से प्रक्षेपित किया जाये तो उसकी परास अधिकतम होती है तो 900 के कोण से प्रक्षेपित करने पर पिण्ड महत्तम ऊँचाई प्राप्त करता है।
वृत्तीय गति :- कोई पिण्ड जब वृत्तीय पथ पर गति करता है तो पिण्ड पर वृत्त के केन्द्र की तरफ एक बल कार्य करता है जिसे अभिकेन्द्रीय बल कहते हैं।
जब हम डोरी के एक सिरे पर पत्थर बांधकर उसे एक वृत्तीय पथ पर घुमाते हैं तब पिण्ड पर अभिकेन्द्र बल हमारे हाथ की ओर कार्यकरता है और डोरी टूट जाने पर अभिकेन्द्र बल हमारे हाथ की ओर कार्य करता है और डोरी टूट जाने पर अभिकेन्द्र बल यकायक समाप्त हो जाता है जिससे पिण्ड वृत्त की स्पर्श रेखा की दिशा में ऋजुरेखीय पथ पर सीेधे चला जाता है। मौत के कुयें में कुयें की दीवार पर मोटर साइकिल चलाना भी अभिकेन्द्र बल के कारण ही सम्भव हो पाता है। एक साइकिल सवार मोड़ पर मुड़ते समय गिरने से बचने के लिए अपने शरीर को अन्दर की ओर झुका लेता है जिससे उसे पर्याप्त अभिकेन्द्र बल मिल जाता है। मोड़ पर रेल की पटरी व सड़कों पर अन्दर की तरफ ढलान रखा जाता है जिससे गाड़ियाँ गिरें न यह भी पर्याप्त अभिकेन्द्र बल प्रप्त करने के लिए ही किया लगता है।
वृत्तीय गति में अभिकेन्द्र बल के अतिरिक्त एक बल जिसे अपकेन्द्र बल कहते हैं। यह अभिकेन्द्र बल के विपरीत बाहर की तरफ लगता है। अपकेन्द्र बल परिमाण में अभिकेन्द्र बल के बराबर होता है दूध से मक्खन को अलग करना इसी बल के कारण सम्भव हो पाता है।
यदि किसी पिण्ड को रस्सी के एक छोर पर बांध कर उध्र्ववृत में घुमाया जाये तो पिण्ड का वेग निम्नतम बिन्दु पर सबसे अधिक तथा वृत्त के उच्चतम बिन्दु पर सबसे कम होता है। इसी तरह रस्सी में तनाव भी उच्च बिन्दु पर सबसे कम तथा निम्नतम बिन्दु पर सबसे अधिक होता है।
संवेग (Momentum) :- किसी वस्तु के वेग एवं द्रव्यमान के गुणनफल को वस्तु का संवेग कहते हैं। उदाहरणार्थ यदि एक कार और बस समान वेग से गतिशील हों तो बस का संवेग कार से अधिक होता है क्योंकि बस का द्रव्यमान कार से अधिक है।
संवेग = द्रव्यमान × वेग
अत्यधिक संवेग वाली वस्तु को कम संवेग वाली वस्तु की अपेक्षा रोकना कठिन होता है।
न्यूटन के गति विशयक नियम (Newton’s Law of Motion)
प्रथम नियम :- इस नियम के अनुसार प्रत्येक वस्तु विरामावस्था या गति की अवस्था में तब तक बनी रहती है जब तक कि उस पर कोई वाह्य बल न लगाया जाये। इस नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।
उदाहरणार्थ :- तेज दौड़ती कार या बस में यकायक बे्रक लगने से यात्री झटका खाकर आगे की ओर लुढ़क जाता है क्योंकि उसके शरीर का निचला भाग तो बस या कार के साथ तुरन्त विरामावस्था में आ जाता है परन्तु शरीर का ऊपरी भाग गति में बना रहता है।
द्वितीय नियम :- इस नियम के अनुसार किसी गतिशील वस्तु पर लगाया गया बल वस्तु के द्रव्यमान तथा त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है।
बल =द्रव्यमान × त्वरण
अर्थात यदि वस्तु पर कोई बल नहीं लग रहा है तो उसका त्वरण शून्य होगा, त्वरण शून्य होने का मतलब है या तो वस्तु विरामावस्था में है अथवा नियत वेग से गति कर रही है।
द्वितीय नियम :- इस नियम को क्रिया प्रतिक्रिया का नियम भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार जब कोई पिण्ड किसी दूसरे पिण्ड पर बल लगाता है तो दूसरा पिण्ड भी पहले पिण्ड पर उतना ही बल विपरीत दिशा में लगाता हैं।
उदाहरणार्थ :- जब हम दीवाल पर घूसा करते हैं तो दीवाल भी हमारे हाथ पर उतना ही बल लगाती है जिससे हमें चोट का एहसास होता है।
कुंए से पानी खींचते समय रस्सी के टूट जाने से पीछे की तरफ गिरना, नाव से कूदने पर नाव का पीेछे की तरफ खिसकना, राकेट का आगे बढ़ना आदि भी न्यूटन के इसी नियम पर आधारित हैं।