जीवाणु (Bacteria)
जीवाणु परपोषी प्रोकैरियोटिक कोशिका से बने सर्वव्यापी पर्णहरित रहित होते हैं। ये प्रायः एक कोशीय होते हैं। इनका आकार 2 से 5μ तक होता है। कुछ जीवाणु 80μ तक लम्बे होते हैं। इनको सर्वप्रथम ’एण्टोनी वान ल्यूवेनहाॅक’(Antony van Leeuwewhock) ने देखा। एरनबर्ग 1828 ने इन्हें जीवाणु नाम दिया।
इनकी कोशिका भित्ति पाॅलीसैकराइड, लिपिड और प्रोटीन की बनी होती है। इसमें म्यूकोपेप्टाइड, एलेनिन तथा डाइएमीनोपीमेलिक अम्ल भी पाये जाते हैं। कोशिका भित्ति के चारों ओर ’स्लाइम की परत’ पायी जाती है। स्लाइम पर्त मोटी होकर कैप्सूल बना लेती है। कैप्सूल युक्त जीवाणु रोग जनक होते हैं। वसा वाल्यूटिन तथा ग्लाइकोजन के रूप में भोजन संचित रहता है। कुछ जीवाणुओं जैसे बैक्टीरियो क्लोरोफिल, बैक्टीरियो परप्यूरिन, क्लोरोवियम क्लोरोफिल आदि में क्लोरोफिल वर्णक पाये जाते हैं।
कोशिका द्रव्य में 705 राइबोसोम पाये जाते हैं। लेकिन माइटोकान्ड्रिया, लवक तथा अन्तः प्रदव्यी जालिका का अभाव होता है। श्वसन क्रिया मीसोसोम्स में होती है। कोशिका के लगभग मध्य में DNA का वलयिन अणु होता है। गुणसूत्रों (DNA) के अतिरिक्त ’प्लाज्मिड’ (Plasmid) नामक आनुवंशिक पदार्थ होते हैं। मुख्य गुणसूत्र का भाग बनने वाले प्लाज्मिड ’एपिसोम’ कहलाते हैं।
जीवाणुओं में पोषण :- पोषण के आधार पर जीवाणुओं को स्वपोषी एवं परपोषी में बाँटा गया है-स्वपोषी जीवाणु प्रकाश ऊर्जा या रासायनिक ऊर्जा का उपयोग करके अपना भोजन बना लेते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(1) प्रकाश संश्लेषी :- कुछ जीवाणुओं में क्लोरोफिल सदृश्य वर्णक पाये जाते हैं। जैसे, बैक्टीरियों पर प्यूरिन, बैक्टीरियो क्लोरोफिल आदि। ये जीवाणु H2 स्रोत के लिए जल के स्थान पर H2S का उपयोग करते हैं। जैसे-क्रोमेशियम, क्लोरोवियम जीवाणु।
(2) रसायन संश्लेषी :- अकार्बनिक पदार्थों का आक्सीकरण करके प्राप्त ऊर्जा का उपयोग ये जीवाणु अपने भोजन के निर्माण हेतु करते हैं। यथा-(a) सल्फर जीवाणु जैसे थायोबैसिलस, बेजियाटोआ आदि। H2S को जल तथा गन्धक में आक्सीकृत कर देते हैं। (b) हाइड्रोजन जीवाणु जैसे हाइड्रोजीनो मोनास, बैसिलस पेन्टोट्रोफस आदि हाइड्रोजन को जल में बदल देते हैं। (c)आयरन जीवाणु जैसे फैरोबैसिलस, लेप्टोथ्रिक्स आदि फैरस यौगिकों को फैरिक यौगिकों में बदल देते हैं। (d) नाइट्रीकारी जीवाणु नाइट्रोसोमोनास अमोनिया को नाइट्राइट में और नाइट्रोबैक्टर नाइट्रेट में बदल देते हैं।
परपोषी जीवाणुओं को भी तीन वर्गों में रखा गया है-
परजीवी (Parasites) :- ये अपना भोजन जीवित जन्तु या पादप कोशिकाओं से प्राप्त करते हैं। स्टेप्टोकोकस, क्लास्ड्रियम आदि इसी प्रकार के जीवाणु है।
मृतोपजीवी (Saprophytes) :- अपना भोजन मृत कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। वास्तव में ये अपघटक का कार्य करते हैं। बैसिलस रैमोसस इसी प्रकार का जीवाणु है।
सहजीवी (Symbiotic) :- इसके अन्तर्गत आने वाले जीवाणु अन्य जन्तुओं व पौधों के साथ रहते हुए परस्पर एक दूसरे को लाभ पहुँचाते हैं। मनुष्य की आँत में रहने वाला इस्चेरिकिया कोलाई (Eseheriachia Coli); तथा मटर कुल के पौधों की जड़ों में रहने वाला राइजोबियम लेग्यूमिनोसरम (Rhizobium Legiminosarum) जीवाणु इसी प्रकार के हैं।
जनन (Reproduction) :- जीवाणुओं में वर्धी, लिंगी तथा अलिंगी तीनों प्रकार के जनन होते हैं।
वर्धी जनन मुकुलन एवं विखण्डन द्वारा होता है। अलिंगी जनन अन्तः बीजाणुओं, कोनिडिया एवं चलबीजाणु द्वारा होता है।
लेडल वर्ग एवं टेटम ने जीवाणुओं में लिंगी जनन का पता लगाया जो तीन प्रकार से होता है-
(1) रूपान्तरण (Transformation) :- इसमें एक प्रकार की जीवाणु कोशिका दूसरे प्रकार में बदल जाती है। इसमें एक जीवाणु कोशिका दूसरे प्रकार के जीवाणु के आनुवंशिक पदार्थों का अवशोषण कर लेती है। सर्वप्रथम इसका अध्ययन ग्रिफिथ ने किया। बाद में एवरी मैकलियोउ और मैककार्थी ने इसका विस्तृत अध्ययन किया।
(2) पारक्रमण (Transduction) :- इसमें बैक्अीरियोफेज द्वारा एक जीवाणु के आनुवंशिक पदार्थ दूसरे में स्थानान्तरित कर दिये जाते हैं। इसकी खोज जिन्डर तथा लेडरबर्ग ने किया था।
(3) संयुग्मन (Conguation) :- इसमें दाता जीवाणु अपने आनुवंशिक पदार्थ को ग्राही जीवाणु को संयुग्मन द्वारा स्थानान्तरित कर देता है। इसकी खोज लेडरबर्ग तथा टेटम ने की थी।
जीवाणुओं का आर्थिक महत्व :- आर्थिक दृष्टि से जीवाणुओं को दो श्रेणियों-लाभदायक एवं हानिकारक जीवाणु में रखा गया है। लाभदायक जीवाणुओं का प्रयोग कृषि क्षेत्र में, डेरी में तथा उद्योगों में किया जाता है। कृषि क्षेत्रों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण, नाइट्रीकरण तथा अपघटक के कार्य करते हैं।
बैक्टीरियम लेक्टिसाइ एसिडा :- दूध में पायी जाने वाली लैक्टोस शर्करा को लैक्टिक अम्ल में बदल देते हैं जिसमे दूध दही में बदल जाता है।
उद्योगों में जीवाणुओं का प्रयोग कुछ इस प्रकार होता है-
एसीटो बैक्टर :- एल्कोहाल को एसिटिक अम्ल (सिरका) में बदल देते हैं।
तम्बाकू उद्योग में बैसिलस मैगाथीरियम कुल के जीवाणु द्वारा किण्वन से तम्बाकू की सुगन्ध एवं स्वाद को बढ़ाया जाता है।
’क्लाॅस्ट्रीडियम ब्यूट्राइकिम’ नामक जीवाणु की सहायता से जूट, पटसन, सन आदि से रेशे प्राप्त किये जाते हैं।
चाय उद्योग में माइक्रोकोकस नामक जीवाणु द्वारा किण्वन कराकर चाय की पत्तियों में स्वाद एवं सुगन्ध को बढ़ाया जाता है।
कुछ जीवाणु जैसे बैसिलस व्रेबिस से थायरोथ्रीन, बेसिलस सबटिलिस से सबटिलीन तथा स्ट्रेप्टो माइसिस की विभिनन जातियों से स्ट्रेप्टो माइसिन, टेरामाइसिन आदि प्रतिजैविक औषधियाँ (Antibiotic) तैयार की जाती हैं।
’क्लास्ट्रीडियम ब्यूटाइलिकम’ नामक जीवाणु से किण्वन द्वारा विटामिन B2 प्राप्त किया जाता है।
मनुष्य की आँत में पाया जाने वाला जीवाणु इस्चेरिकिया कोलाई विटामिन B12 का निर्माण करता है।
हानिकारक क्रियाएँ :- जीवाणु के हानिकारक क्रियाओं में मानव एवं पौधों में होने वाले रोग, विनाइट्रीकरण, भोजन का नाश आदि आते हैं।
कुछ जीवाणु जैसे थायोबैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स माइक्रोकोकस डिनाइट्रीफिकेनस आदि जीवाणु नाइट्रोजन में यौगिकों को तोड़ देते हैं जिससे भूमि की उर्वरता घट जाती है। क्लास्ट्रीडियम बोट्यूलिनम जैसे मृतजीवी जीवाणु खाद्य पदार्थों को नष्ट कर देते हैं।
आकार के आधार पर जीवाणु के प्रकार-
(1) कोकाई (Cocci) :- गोल होते हैं, एकल या समूह में मिलते हैं। जब ये एकल होते हैं तो इन्हें माइक्रोकोकाई, दो के समूह में होने पर डिप्लोकोकाई, जब ये जीवाणु शृंखला में मिलते हैं तब इन्हें स्ट्रेप्टो कोकाई, चार के समूह में मिलने पर टेट्राकोकाई, जीवाणु धन के आकार में रहने पर सार्सीनो कोकाई, जीवाणु के अनियमित गुच्छे या समूह में होने पर कोकाई, जीवाणु के अनियमित गुच्छे या समूह में होने पर स्टेफिलोकोकाई कहलाते हैं।
(2) बेसीलाई जीवाणु छड़ाकार होते हैं। इनके जोड़ों में रहने पर इन्हें डिप्लोबेसीलाई, शृंखला में होने पर इन्हें स्ट्रेप्टो बेसीलाई, गुच्छे के रूपा में मिलने पर इनको स्टैफाइलो बेसीलाई कहते हें।
(3) स्पाइरिलाई जीवाणु लम्बे तथा सर्पिलाकार होते हैं। आमतौर पर ये एकल होते हैं, जैसे स्पाइरिलम रूप्रम।
(4) कामा के समान आकृति (,) वाले जीवाणु जैसे एव्रियोकालेरी।
(5) एक्टिनोमाइसिटीज जीवाणु पतले, शाखित तथा सूत्राकार होते हैं। जैसे-स्ट्रेप्टो माइसीज।
नोट :-
जीवाणु एक दृढ़ कोशिका भित्ति से घिरा रहता है। कोशिका भित्ति की संरचना ग्राम +Ve तथा -ve जीवाणु से भिन्न होती है।
रासायनिक रूप से कोशिका भित्ति म्यूरिन या म्यूकोपेप्टाइउ या पेप्टीडोग्लाइकाॅन की बनी होती है।
जीवाणु की जीवाणु द्रव्यकला लिपोप्रोटीन से बनी अर्द्धपारगम्य कला होती है।
जीवाणुओं की कोशिका में माइट्रोकाण्ड्रिया, गाल्जीकाय, अंतः प्रदव्यी जालिका, सेन्ट्रोसोम, क्लोरोप्लास्ट का अभाव होता है। जीवाणुओं में RNA तीन प्रकार का होता है – m- RNA,t- RNA तथा r-RNA ।