कांग्रेस की स्थापना के वास्तविक उद्देश्य तथा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम चरण

कांग्रेस की स्थापना के वास्तविक उद्देश्य

  1. देश के हितों की रक्षा करने वाले भारतीयों के बीच मित्रता और संपर्क बढ़ाना।
  2.  जातिगत, धर्मगत तथा प्रतीय विभेदों को मिटाकर राष्ट्रीय एकता की भावना को विकसित करना।
  3.  राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक मुद्दों पर शिक्षित वर्गाें को एकजुट करना।
  4.  भविष्य के रानीतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा सुनिश्चित करना।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम चरण 1885-1905

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन में के नए युग का आरंभ हो गया। कांग्रेस का शुरुवाती नेतृत्व उदारवादी राष्ट्रीय नेताओं ने किया। अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने कांग्रेस के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को स्पष्ट कर दिया। साथ ही, उदारवादी नीतियों को कांग्रेस का आदर्श घोषित किया गया। कांग्रेस के आरंभिक 20 वर्षों के काल को उदारवादी राष्ट्रीयता की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इस काल में कांग्रेस की नीतियाॅ अत्यंत उदार थीं। इस समय कांग्रेस पर समृद्धशाली माध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का प्रभाव था जिनमें वकील, डाॅक्टर, इंजीनियर एवं पत्रकार इत्यादि प्रमुख थे। ये उदारवादी नेता अंग्रेजों के प्रति निष्ठावान थे तथाउन्हें अपना शत्रु नहीं मानते थे। दादा भाई नौरोजी के इन शब्दों में आंग्रेजों के प्रत उनकी भावनाओं की मूर्त अभिव्यक्ति का पता चलता है- ’’ हम ब्रिटिश प्रजा है, हम अपने हक की माॅग कर सकते हैं। अगर हमें ब्रिटेन की सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं से वंचित रखा जाता है तो फिर भारत को अंग्रेजों के सवमित्व में रहने से क्या लाभ? यह तो एक औा एशियाई निरंकुश शासन मात्र होगा’’ उदारवादी नेताओं में फिरोजशाह मेहता, बहरूदीन तैय्यब जी, व्योमेश चन्द्र बनर्जी लालमोहन घोष सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, आनंद मोहन बोस और रमेशचंन्द्र दत्त प्रमुख थे। कालांतर में द्वारकानाथ गांगुली, एम, जी, राणाडे, वीर राघवचारी, आनंद चारलू और गोखले भी सम्मिलित हो गए।

 उदारवादियों की कार्यप्रणाली

उदारवादियों या नरमपंथियों की कार्यप्रणाली का एक विशिष्ट तरीका था, जिसमें वे अपने प्रतिवेदनों भाषणों और लेखों के माध्यम से अंग्रेजी राज की प्रशंसा करते हुए अपनी माॅगों को व्यक्त किया करते थे। इन याचनाओं को समाचार-पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से स्पष्ट किया जाता था। कांग्रेस का अधिवेशन वर्ष में केवल तीन दिन चलता था। वार्षिक अधिवेशनों के अतिरिक्त अपने कार्यक्रम को जारी रखने के लिए कांग्रेस के पास किसी भी संगठित तंत्र का आभाव था।

उदारवादियों की विचारधारा एवं आरंभिक कार्यक्रम

कांग्रेसी नेताओं को आंरभ में दृढ़ विश्वास था कि भारतीयों के सारे के पीछे नौकरशाही  का भेदभावपूर्ण व्यवहार ही जिम्मेदार है। यदि अंग्रेजों को देश की वास्तविक स्थिति से अवगत कराया जाए तो वह कल्याणकारी विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देगे। उन्हें अंग्रेजों की न्यायप्रियता तथा उदारता के विषय में भ्रम था, जिसके परिणामस्वरूप वे एक अधिवेशन से दूसरे अधिवेशन तक समान प्रकार की माॅगों से संबधित प्रस्तावों कीही पुनरावृत्ति करते थे। इन माॅगों को तीन श्रेण्यिों में विभक्त किया जा सकता है- संवैधानिक, प्रशासनिक और आर्थिक।

उदारवादियों की संवैधानिक माॅगें

  • उदारवादियों ने ब्रिटिश शासन में मुक्ति की माॅग नहीं की, बल्कि वे सिर्फ देश की सरकार में सहभागिता की माॅग कर रहे थे तथा ब्रिटिश शासन के प्रति निष्ठावान थे।
  •   उदारवादियों द्वारा अपनी माॅगों को संविधान की परिधि के भतर रखकर ही प्रस्तुत किया गया। वे आक्रमण तरीकों की बजाय याचनाओं के माध्यम से ब्रिटिश शासन का ध्यान आकर्षित करना चाहते थे।
  •   उदारवादी राजनीतिक कार्यक्रमों के माध्यम से अपने अधिकारों को प्राप्त करना चाहते थे। वे किसी भी उग्र कार्यवाही के पक्ष में नहीं थे।
  •  उदारवादियों ने महत्वपूर्ण रानीतिक प्रश्नों पर भारतीयों के मध्य बनाए रखने का प्रयास किया।
  •   उदारवादियों के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन चलाए जाने के के लिए समय अभी अनुकूल नहीं था।

 उदारवादियों की प्रशासनिक माॅगें

  •   लोक सेवाओं में समान शर्तों के साथ भरतीयों की नियुक्ति तथा भविष्य में इन सेवाओं का भारतीयकण उदारवादियों की महत्वपूर्ण माॅग थी।
  •   उदारवादियों ने आम्र्स एक्ट को रद्द किए जाने की माॅग की।
  •   कांग्रेस न्यायपालिका तथा कार्यपालिका के कार्यक्षेत्रों पृथक करने की माॅग उठा रही थी तथा ज्यूरी के अधिकारों को सीमित करने का विरोध भी कर रही थी।
  •   नागरिक अधिकारों को सुनिश्चित करना इनकी अन्य प्रमुख माॅग थी। इन्होंने अभिव्यकित की स्वतंत्रता को सीमति करने वाली सभी प्रशासनिक कार्यवाहियों का विरोध किया।

उदारवादियों की आर्थिक मांग

  •  उदारवादियों ने साम्राज्यवाद की अथशास्त्रीय आलोचना करते हुए शोषण के विभिन्न रूपों, यथा-व्यापार, उद्योग तथा वित्त की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
  •     उदारवादियों के अनुसार भारतीयों के पिछडेपन गरीबी, कृषकों की बदहालली तथा लघु उद्योगों के विनाश के लिए ब्रिटिश उपनिवेशवादी नीति उत्तरदायी थी।
  •   उद्योग के संदर्भ में उदारवादियों ने विऔद्योगीकरणके स्वरूप विवेचन किया।
  •   दादा भाई नौरोजी द्वारा लिखे गए लेख पाॅवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में  धन के निष्कासन’ सिद्धांत के माध्यम से ब्रिटिश उपनिवेशवादी नीतियों की कटु आलोचना की गई।
  •   भारत के आर्थिक दोहन को समाप्त करके सरकार को कल्याण कारी कार्यों की ओर प्रेरित करने की दिशा में उदारवादियों द्वारा विस्तृत कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की गई। जिनमें भू-राजस्व0 को कम करना नमक कर समाप्त करना कृषि बैंकों का विकास करना तथा सिंचाई सुविधाओं का करना प्रमुख थे।

  उदारवादियों के कार्याें का मूल्यांकन

उदारवादियों की राजनीतिक माॅगों का स्वरूप सारण होने के बावजूद आर्थिक मागों का स्वरूप ब्रिटिश-विरोधी तथा उग्र था। उनहों ने ब्रिटिश उपनिवेशवादी नीतियों का पर्दाफाश कर दिया। कांग्रेस एक अखिल भारतीय संस्था थी, जिसकी माॅगों का स्वरूप धर्म निरपेक्ष था। यद्यपि यह मुख्य रूप से एक राजनीतिक संगठन था, लेकिन इसने धर्म को छोड़कर जीवन के सभी क्षेत्रों में भारतीयों के हितों को अपने कार्यक्रमों में शामिल किया। 1892 ई0 का भारतीय परिषद अधिनियम उदारवादियों के राजनीतिक प्रयासों से ही पारित हुआ। यद्यपि ये प्रयास संतोषजनक नहीं थे, तथापि इनहोंने परवर्ती आंदोलन के लिए नींव रखने का काम किया।

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