ध्वनि (Sound)

ध्वनि (Sound)

ध्वनि एक प्रकार की यांत्रिक अनुदैध्र्य तरंग है जो हमारे कान के पर्दे को उद्दीपित करती है। प्रकाश के विपरीत ये तरंगे निर्वात में गमन नहीं कर सकती हैं। इनके लिए माध्यम का होना आवश्यक होता है। शुष्क वायु में ध्वनि की चाल लगभग 332 मीटर प्रति सेकेंड होती है। माध्यम का घनत्व बढ़ने से ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। इसी कारण इस्पात में ध्वनि की चाल लगभग 5000 मीटर प्रति सेकेंड तथा जल में 1450 मीटर प्रति सेकेंड होती है। हवा में 1°C गर्म होने पर वायु की चाल 0.61मीटर/सेकेंड की वृद्धि होती है। इसी कारण गर्मी के दिनों में जाड़े के दिनों की अपेक्षा आवाज दूर तक सुनायी पड़ती है। मौसम की आर्द्रता बढ़ने से भी वायु की चाल बढ़ जाती है। इसी कारण बरसात की रातों मे आवाज साफ तथा दूर तक सुनायी पड़ती है।
ध्वनि का परार्वतन एवं अपर्वतन (Reflation tion and Refraction of sound) :- ध्वनि तरंगों का परावर्तन एवं अपवर्तन प्रकाश तरंगों की भाॅति ही होता है। किसी पहाड़ी के पास खडे़ ताली बजाने से ताली की प्रतिध्वनि सुनायी पड़ना ध्वनि के अपवर्तन के कारण ही सम्भव होता है। विभिन्न यंत्र भी ध्वनि के परावर्तन के सिद्धान्त पर कार्य करते हैं। जैसे सोनार नामक यंत्र का उपयोग समुद्र की गहराई मापने तथा समुद्र में उपस्थित वस्तुओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने में किया जाता है। इसी प्रकार अल्ट्रासाउण्ड जिसका उपयोग शरीर की आन्तरिक संरचना को ज्ञात करने में किया जाता है, इसी सिद्धान्त पर कार्य करता है। इन दोनों यंत्रों में ध्वनि की पराश्रव्य तरंगों को प्रयोग में लाते हैं।
ध्वनि तरंगें जब एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तो वे अपने पथ से कुछ विचलित हो जाती हैं, इसे ध्वनि का अपर्वतन कहतें हैं। उदाहरण स्वरूप गर्म दिनों में भूमि के निकट की वायु ऊपर की अपेक्षा अधिक गर्म होती है। अतः भूमि के निकट की वायु में ध्वनि का वेग अधिक होता है। इस प्रकार नीचे से ऊपर की तरफ गति करती ध्वनि तरंगें अपने मार्ग से दूर मुड़ जाती हैं। जाडे़ के दिनों में पृथ्वी के सम्पर्क में रहने वाली वायु ठण्डी होती है। तथा इससे ऊपर की वायु की परत इससे कुछ गर्म होती है जिससे ऊपर की तरफ गति करती हुई ध्वनि तरंगें पृथ्वी की तरफ मुड़ जाती हैं।
अनुनाद (Resonance) :- किसी भी कम्पायमान वस्तु में उसकी एक स्वाभाविक आवृति होती है और ऐसी ध्वनि उत्पन्न कर सकने वाले यंत्र पर जब किसी अन्य श्रोत की ध्वनि तरंगे पड़ती है तब उस तंत्र में प्रणोदित कम्पन उत्पन्न होतें हैं। जब उस प्रणोदित ध्वनि स्रोत की आवृत्ति उस प्रणोदित तंत्र की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर होती है तब इसका आयाम महत्तम हो जाता है। फलस्वरूप उस तंत्र से प्रबल ध्वनि उत्पन होने लगती है। इस घटना को अनुनाद कहते हैं।
अनुनाद के कारण ही सेना द्वारा किसी पुल को पार करते समय उन्हें एक साथ कदम मिलाकर नहीं चलने दिया जाता है क्यांेकि एक साथ कदम मिलाकर चलने की आवृत्ति यदि पुल की स्वाभाविक आवृत्ति के बराबर हो जाये तो पुल के कम्पन की अवृत्ति बहुत अधिक हो जायेगी जिससे पुल टूट सकता है। किसी रेडियो स्टेशन से प्रसारित कार्यक्रमों का रेडियो को विशेष आवृत्ति पर ट्यून करने पर सुनायी पड़ना भी अनुनाद के कारण ही होता है।
प्रघाती तरंगे (Shock waves) :- यदि किसी पिण्ड की वायु में चाल ध्वनि की चाल से अधिक हो तो ऐसे पिण्ड अपने पीछे विक्षोभका एक शंक्वाकार क्षेत्र छोड़ते जाते हैं। जो बराबर फैलता जाता है। इस विक्षोभ को प्रघाती तरंगे कहतें हैं। इन तरंगों में बहुत अधिक ऊर्जा होती है। यदि यह किसी भवन से टकरा जाये तो भवन को क्षतिग्रस्त कर सकती हैं। कभी-कभी पराध्वनिक वायुयानों के गुजरने या कोई बड़ा विस्फोट होने पर घर की खिड़कियों के शीशे टूट जाते हैं, ऐसा प्रघाती तरंगों के कारण ही होता है। समुद्र में मोटरबोट के ध्वनि से अधिक तीब्र गति से चलने पर भी प्रघाती तरंगे उत्पन्न होती हैं जिन्हें बो-तरंगें कहतें (Bow-waves) हैं।
ध्वनि तरंगों का व्यतिकरण (Interference of sound waves) :- जब किसी माध्यम में एक ही आवृत्ति की दो तरंगो एक साथ चलती हैं तो उनके अध्यारोपण से माध्यम के कुछ बिन्दुओं पर परिणामी तरंग की तीव्रता बहुत अधिक पायी जाती है तथा कुछ बिन्दुओं पर परिणामी तीव्रता शून्य होती है। जिन बिन्दुओं पर तीव्रता अधिकतम होती है, उन बिन्दुओं पर हुये व्यतिकरण को संपोषी व्यतिकरण  तथा जिन बिन्दुओं पर शून्य होती है उसे विनाशी व्यतिकरण कहतें हैं। इससे कुछ स्थानों पर ध्वनि की तीव्रता बहुत तेज सुनायी पडे़गी तथा कुछ स्थानों पर श्रोता को ध्वनि की तीव्रता शून्य लगेगी। व्यतिकरण से बचने के लिए सिनेमा हाल की दीवारों को खुरदुरे तथा ध्वनि को अवशोषित करने वाले पदार्थाें से बनाया जाता है। जिससे ध्वनि परावर्तित न होने पाये तथा व्यतिकरण न हो और प्रत्येक स्थान पर बैठे हुए श्रोता को ध्वनि की समान तीव्रता सुनायी पडे़।

घ्वनियों के लक्षण (Characteristics of sound ) 

1. तीव्रता (Intensity) :- ध्वनि का पहला लक्षण उसकी तीव्रता है जिसके कारण ध्वनि हमें धीमी तथा तेज सुनायी पड़ती है। ध्वनि की तीव्रता ध्वनि स्रोत के कम्पन के आयाम पर निर्भर करती है। ध्वनि की तीव्रता को डेसिबल में मापतें हैं। 80 डेसिबल से ऊपर की तीव्रता वाली ध्वनि हमारे कान को नुकसान पहुँचा सकती है। कुछ सामान्य ध्वनियाॅं तथा उनके तीव्रता स्तर निम्न लिखित हैं।
स्रोत                                         तीव्रता स्तर (डेसिबल)
फुसफुसाहट                                         20
सामान्य बातचीत                                    65
यातायात                                               85
रेलगाड़ी                                                90
राकेट                                                   180
2. तारत्व (Pitch) :- तारत्व के कारण ही हम किसी ध्वनि को बारीक या मोटी कहतें हैं। ध्वनि की तारत्व उसके आवृत्ति के अनुक्रमानुपाती होती है। पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं की आवाज अधिक तीक्ष्ण होती है क्योंकि महिलाओं की आवाज की आवृत्ति तथा तारत्व पुरूषों की आवाज से अधिक होती है।
3. गुणता (Quality) :- संगीत में विभिन्न वाद्ययंत्रों समान तीव्रता तथा आवृत्ति की ध्वनि निकलने पर भी हम यह पहचान लेतें हैं कि कौन सी ध्वनि किस यंत्र की है। ध्वनि के इस लक्षण को जिसके कारण हमें समान आवृत्ति की तथा समान तीव्रता की ध्वनियों में अन्तर प्रतीत होता है, ध्वनि की गुणता कहतें हैं।

ध्वनि तरंगो के प्रकार (Types of sound waves)

1. अपश्रव्य तरंगें (Infrasonic waves) :- 20 हार्टज से कम आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को अपश्रव्य तरंगे कहतें हैं। मनुष्य नहीं सुनसकता है।
2. श्रव्य तरंगें (Sonic waves) :-  20 हार्टज से 20000 हार्टज तक की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंगें कहतें हैं। मनुष्य इन्हीं तरंगों को सुन सकता है।
3. पराश्रव्य तरंगें (Ultrasonic waves) :-  20000 हाट्र्ज से ऊपर की आवृत्ति वाली तरंगों को पराश्रव्य तरंगे कहतें हैं। मनुष्य इन तरंगों को भी नहीं सुन सकता है। कुछ जन्तु जैसे कुत्ता, बिल्ली, आदि में इन तरंगों के सुनने की क्षमता होती है।
डाप्लर प्रभाव (Doppler’s effect) :- . किसी ध्वनि स्रोत तथा श्रोता के सापेक्ष गति के कारण स्रोत की आवृत्ति में होने वाले आभासी परिवर्तन को डाप्लर प्रभाव कहतें हैं। उदाहरण स्वरूप- जब प्लेटफार्म पर खड़े होते हैं तथा दूर सीटी देती हुई ते-ट्रेन प्लेटफार्म की तरफ आती है तो हमें ध्वनि उच्च आवृत्ति वाली अर्थात तीव्र सुनायी पड़ती है परन्तु जब ट्रेन प्लेटफार्म से दूर जाने लगती है तो वही ध्वनि हमें निम्न आवृत्ति वाली अर्थात मोटी सुनायी पड़ती है।
इस प्रकार यदि गति के फलस्वरूप स्रोत तथा स्रोता के बीच की दूरी घट रही होती है तो श्रोता को स्रोत की आवृत्ति बढ़ी हुई प्रतीत होती है। इसके विपरीत यदि उनके बीच की दूरी बढ़ रही होती है तो श्रोता को आवृत्ति घटी हुई प्रतीत होती है। डाॅप्लर प्रभाव का उपयोग उड़ते हुये विमान का वेग ज्ञात करने में, पनडुब्बियों का वेग ज्ञात करने में किया जाता है।
डाॅप्लर प्रभाव ध्वनि की तरंगों में ही नहीं अपितु प्रकाश तरंगों के लिये भी प्रयुक्त किया जाता है। प्रकाश के डाॅप्लर प्रभाव से तारों तथा गैलेक्सियों की गति का अनुमान लगाया जाता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top