प्रकाश संश्लेषण (Photo Synthesis)
प्रकाश संश्लेषण एक जैव रासायनिक क्रिया है जिसमें पानी का आक्सीकरण तथा कार्बन डाइआक्साइड का अपचयन होता है। यह क्रिया प्रकाश एवं पर्णहरित की उपस्थिति में होती है जिसमें आक्सीजन मुक्त होती है और कार्बोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इसमें प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में बदलकर कार्बनिक पदार्थों में संचित हो जाती है। यह प्रक्रिया दो प्रावस्थाओं-प्रकाशिक एवं अप्रकाशिक अभिक्रिया-में पूर्ण होती है।
प्रकाशिक अभिक्रिया (Light reaction) :- इसमें प्रकाश एवं पर्णहरित की उपस्थिति में जल का अणु हाइड्रोजन (H+) तथा हाइड्राक्सिल (OH-) आयनों में टूट जाता है। हाइड्राक्सिल आयन आपस में मिलकर जल एवं आक्सीजन बनाते हैं। हाइड्रोजन आयन को हाइड्रोजन ग्राही ग्रहण करके अपचयित हो जाता है। अपचयित हाइड्रोजन ग्राही तथा प्रकाश अभिक्रिया से मुक्त ऊर्जा कार्बन डाइआक्साइड का अपचयन करती है जिससे शर्करा का निर्माण होता है।
प्रकाश अभिक्रिया क्लोरोप्लास्ट के ग्रेना में होती है जिसमें प्रकाश ऊर्जा का रूपान्तर रासायनिक ऊर्जा में होता है और यह ऊर्जा ATP में संचित हो जाती है। इस क्रिया को फोटोफास्फोरिलेशन कहते हैं। क्लोरोप्लास्ट में अनेक इलेक्ट्रान ग्राही होते हैं। इनके माध्यम से ऊजान्वित क्लोरोफिल अपनी मूल अवस्था में दो प्रक्रियाओं, चक्रीय फोटोफास्फोरिलेशन एवं अचक्रीय फोटोफास्फोरिलेशन-द्वारा आ जाता है।
अप्रकाशिक अभिक्रिया को केल्विन चक्र या C3 चक्र भी कहते हैं। यह क्रिया प्रकाश अभिक्रिया के साथ-साथ क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा में होती है। इसमें ATP एवं NADP 2H द्वारा कार्बन डाइआक्साइड का अपचयन होता है। और ग्लूकोज का निर्माण होता हे। इस क्रिया में कार्बन डाइआक्साइड सर्वप्रथम 5-कार्बन यौगिक रिबूलोज बाई फास्फेट से क्रिया करके एक अस्थायी 6-कार्बन यौगिक बनाती है, जो शीघ्र ही 3 – कार्बन यौगिक फास्फोग्लिसरिक अम्ल के दो अणुओं में टूट जाता है। यह क्रिया ’कार्बोक्सीडि सम्यूटेज एन्जाइम’ की उपस्थित में होती है। प्रकाशिक एवं अप्रकाशिक अभिक्रियाओं के योग से निम्न समीकरण प्राप्त होता है-
उपयोगिता की दृष्टि से प्रकाश संश्लेषण पौधों के लिए अति महत्वपूर्ण है। यह हरे पौधों के लिए भोज्य पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण करता है। इस क्रिया के फलस्वरूप प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में बदलकर कार्बनिक पदार्थों में संचित हो जाती है। इसे ऊर्जा का स्रोत भी माना जाता है। इस क्रिया के द्वारा वातावरण में आक्सीजन एवं का कार्बन डाइआक्साइड अनुपात संतुलित बना रहता है जिससे वायुमण्डल शुद्ध बना रहता है। इस क्रिया के परिणामस्वरूप बने कार्बनिक यौगिकों का उपयोग मनुष्य औषधियों तथा अन्य कार्यों के लिए करता है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पर प्रभाव डालने वाले कारकों में वाह्य एवं आन्तरिक कारक आते हैं। वाह्य कारकों में प्रकाश, ताप, कार्बन डाइआक्साइड जल, आक्सीजन एवं खनिज आते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए प्रकाश एक महत्वपूर्ण कारक है। इसके लिए 380.760mμ तरंग दैध्र्य वाली किरणें उपयोगी होती हैं। लाल और नीले रंग के प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की दर सबसे अधिक होती है जबकि हरे प्रकाश में यह दर सबसे कम होती है। अधिक समय तक तीव्र प्रकाश मिलते रहने से सोलेराइजेशन प्रभाव के कारण प्रकाश संश्लेषण की दर कम होने लगती हैं।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ताप भी एक महत्वपूर्ण कारक है। ठण्डी जलवायु में प्रकाश-संश्लेषण 3.5°Cताप पर आरम्भ हो जाता है। लेकिन गर्म जलवायु के पौधे 5°C से कम ताप पर प्रकाशसंश्लेषण नहीं कर सकते। सामान्यतया 10°Cसे 35°C ताप पर पौधे अच्छी तरह प्रकाशसंश्लेषण करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कच्चा पदार्थ कार्बन डाइआक्साइड (जो कि वायुमण्डल में लगभग 0.03% है। कार्बन डाइआक्साइडकी एक निश्चित मात्रा से अधिक मिलने पर यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पर विषैला प्रभाव डालती है। जल भी इस क्रिया के लिए आवश्यक कच्चा पदार्थ है। पौधों द्वारा अवशोषित जल का लगभग 1% भाग इस क्रिया के काम आती है। जल की कमी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।
आक्सीजन की अधिक सान्द्रता भी इस क्रिया पर विपरीत असर डालती है। पर्णहरित संश्लेषण के लिए आवश्यक खनिज Fe++और Mg++की कमी से पौधों में क्लोरोसिस हो जाती है जो कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के दर को प्रभावित करती है।
आन्तरिक कारकों में पर्णहरित एवं पत्ती की संरचना आते हैं। पर्णहरित प्रकाशसंश्लेषण के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। पर्णहरित रहित पौधों में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। इसके अलावा पत्ती की संरचना जैसे उपचर्म की मोटाई, रन्ध्रों की संख्या, कोशिकाओं में संचित खाद्य पदार्थों की मात्रा, पर्ण मध्योतक (Mesophyll) की संरचना, वाह्य त्वचीय रोगों की उपस्थिति आदि भी प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करती हैं।
हिल अभिक्रिया :– प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में जल का आक्सीकरण तथा कार्बन डाइआक्साइड का अवकरण होता है और शर्करा का निर्माण होता है। जल का आक्सीकरण प्रकाश की उपस्थिति में हरित लवक के ग्रेना में होता है। इसमें आक्सीजन मुक्त होती है और प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में बदलकर ATP में संचित होती है। इस तथ्य का पता सर्वप्रथम हिल तथा स्कारिस्ब्रिक ने लगाया था। इस कारण इसे हिल अभिक्रिया कहते है।
इमरसन प्रभाव (Emerson effect) :- राबर्ट इमरसन के अनुसार जब पौधों को 680 μm से अधिक तरंगदैध्र्य दी जाती है तो क्वान्टमी लब्धि में कमी आ जाती है जिसे रेडड्राप कहते हैं। यदि 680 μm से अधिक की तरंग दैध्र्यों के साथ लघु तरंग दैध्र्य भी दी जाये तो क्वाण्टमी लब्धि को बढ़ाया जा सकता है। इसे ही इमरसन प्रभाव कहते हैं।
क्वाण्टासोम :- हरित लवक में स्थित ग्रेना का निर्माण थाइलैकाॅयड से होता है। थाइलैकायड पर सूक्ष्म कण क्वाण्टासोम पाये जाते हैं। इनकी खोज पार्क एवं पौन ने 1961 में की थी। पार्क एवं विगिन्स ने इन्हें क्वाण्टासोम नाम दिया। प्रत्येक क्वाण्टासोम पर पर्णहरित के 230 अणु पाये जाते हैं।
C4 चक्र एवं हैच-स्लैक चक्र:- यह मुख्य रूप से एक बीजपत्री तथा कुछ द्विबीजपत्री पौधों में पाया जाता है। एक बीजपत्री पौधों में कार्बन डाइआक्साइड के स्थिरीकरण का प्रथम उत्पाद ’आक्सेलो एसीटिक अम्ल’ होता है। यह चार कार्बन वाला पदार्थ है। इसीलिए इन पौधों को C4 पौधे कहते हैं। कैल्विन चक्र द्वारा कार्बन डाइआक्साइड स्थिरीकरण में सबसे पहले बनने वाला उत्पाद 3 – कार्बन वाला फास्फोग्लिसरिक अम्ल होता है। अतः इन्हें C3 पौधें कहते हैं। C4 पौधों की मीसोफिल कोशिकाओं में फास्फोइनोल पाइरुविक अम्ल होता है। यह कार्बन डाइआक्साइड ग्रहण करके 4 कार्बन वाला यौगिक आक्सेलो-एसीटिक अम्ल बनाता है। आक्सेलो एसीटिक अम्ल की उपस्थित में अपचयित होकर मौलिक अम्ल बनाता है। जो बन्डल शीथ कोशिकाओं में विमोचित होकर कार्बन डाइआक्साइड तथा पाइरुविक अम्ल बनाता है। पाइरुविक अम्ल फिर से मीसोफिल कोशिकओं में पहुँचकर फास्फोइनोल पाइरुविक अम्ल बनाता है।
C4 पौधों की पत्तियों की शारीरिकी ’क्रान्ज प्रकार’ की होती है। मीसोफिल कोशिकाओं में C4 चक्र तथा बण्डल शीथ कोशिकाओं में C3 चक्र बनाता है। C4 पौधे अच्छे प्रकाश संश्लेषक होते हैं। C4 पौधे कम सान्द्रता की कार्बन डाइआक्साइड को भी प्रयोग में ला सकते हैं जबकि C3 पौधों में यह नहीं होता है। ब्4 चक्र को ही हैच-स्लैक चक्र कहते हैं। इस चक्र के लिए 30 से 450 ब ताप की आवश्यकता होती है। कैल्विन चक्र या C3 चक्र 10.25°C तापमान पर होती है। C4 चक्र में प्रकाशीय श्वसन की क्रिया नहीं होती है। अतः C2 का प्रकाश संश्लेषण पर अवरोधक प्रभाव नहीं पड़ता।
खरपतवार नाशक का प्रयोग खरपतवार को नष्ट करने के लिए किया जाता है। इन्हें तीन समूह में विभाजित करते हैं-
(1) यूरिया खरपतवार नाशी :- जैसे मोन्यूरोन तथा डाइयूरोन आदि।
(2) ट्राई ऐजिन खरपतवार नाशी :- जैसे ऐट्रोजिन तथा सिमेजिन आदि।
(3) बारपाइरीडाइलियम खरपतवार नाशी :- जैसे डाइक्वेट पेराक्वेट आदि। ये इलेक्ट्रान स्थानान्तरण को प्रभावित करते हैं और सुपर आक्साइड बनाकर पर्णहरित को निष्क्रिय करते हैं। ये पशुओं के लिए भी विषैले होते हैं।
CAM पौधे :- क्रेसीयोलेसी कुल के पौधो को CAM पौधे कहते हैं। जैसे नागफनी, घीक्वाॅर, केलेन्थो आदि। ये पौधे शुष्क तथा गर्म वातावरण में भी जीवित रहते हैं। इन पौधों में वाष्पोत्सर्जन रोकने के लिए रन्ध्र दिन में बन्द रहते हैं और रात में खुलते हैं।
नोट :-
- पृथ्वी पर आक्सीजन का मुख्य स्रोत– हरे पौधे
- अच्छे प्रकाश संश्लेषक हैं – C पौधे
- प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक पदार्थ – कार्बन डाइआक्साइड व जल
- वायुमण्डल में कार्बन डाइआक्साइडकी मात्रा होती है – 300ppm
- किसने कहा पौधे दूषित वायु को शुद्ध करते हैं – जोसेफ प्रिस्टले
- पौधों में जल को ऊपर तक पहुँचने का कार्य करता है – जाइलम (xylem)
- पौधों की एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जल का परिवहन होता है – परासरण द्वारा
- प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया में बनने वाला उत्पाद – ग्लूकोज व आक्सीजन
- हरी पत्तियों में सौर ऊर्जा का संग्राहक वर्णक – पर्णहरित
- प्रकाशसंश्लेषण की ’अन्ध अभिक्रियाओं’ का पता लगाने का श्रेय काॅल्विन तथा वेन्सन को दिया जाता है। इन वैज्ञानिकों ने अन्ध अभिक्रियाओं में बनने वाले उत्पादों का पता लगाने के लिए क्रोमैटोग्राफी एवं रेडियोऐक्टिव तत्वों का उपयोग किया था। इन्होंने रेडियों ऐक्टिव कार्बन c14 से युक्त कार्बन डाइआक्साइड का प्रयोग करके कार्बोहाइड्रेट बनने तक की अवस्थाओं का पता लगाया। इसके लिए 1961 में इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- हरि लवक के स्ट्रोमा में कार्बन डाइआक्साइड का स्थिरीकरण होता है।
- प्रकाश संश्लेषण के PS-1 के अभिक्रिया केन्द्र का नाम क्लोरोफिल ’ए’ 700 होता है जिसे P 700 कहते हैं। PS-11के अभिक्रिया केन्द्र का नाम क्लोरोफिल ए-680 होता है, जिसे P-.680 कहते हैं।
- प्रकाश फास्फेटीकरण क्रिया की खोज आर्नन एवं उनके सहयोगियों ने 1954 में की।
- केल्विन वेन्सन ने अन्धकार अभिक्रिया का पता लगाने के लिए 14कार्बन डाइआक्साइड नामक रेडियो ऐक्टिव टेसर का उपयोग किया था।
ऐट्रोजिन, सिमेजन, डाइयूरोन रसायन PSS-11 में प्रयुक्त प्लास्टो क्यूनोन से जुड़कर इलेक्ट्रान मुक्त होने में बांध डालते हैं। इनका उपयोग खरपतवारनाशी के रूप में किया जाता है। - जलीय पौधों से युक्त तालाब के जल में आक्सीजन अधिक मात्रा में पायी जाती है। पादप प्लवक के कारण जल में कीड़े मकोड़ों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है। इसीलिए छिछले जल में मछलियाँ अधिक मिलती हैं। हरे जलीय पौधे दिन के समय प्रकाश संश्लेषण क्रिया करते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस निष्काषित होती है। ऑक्सीजन बुलबुलों के रूप में तालाब के ऊपर उठती दिखायी देती है। जलीय पादपों द्वारा एक्वेरियम में ऑक्सीजन था का कार्बन डाइआक्साइड संतुलन बना रहता है।