प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त (Plate Tectonic Theory)

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त(Plate Tectonic Theory)

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत प्लेटों के स्वभाव एवं प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1960 के दशक में किया गया। हैरी हेस, विल्सन, माॅर्गन, मैकेन्जी तथा पार्कर आदि विद्वानों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा समुद्री तल प्रसार, महाद्वीपीय विस्थापन, भूपटलीय संरचना, भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया आदि की व्याख्या की जा सकती है। यह संकल्पना समुद्री नितल प्रसार की परिकल्पना का विस्तारित एवं परिष्कृत रूप है। इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का भू-पटल मुख्यतः छः बड़े और छः छोटे प्लेटों में विभाजित है तथा ये प्लेटें लगातार गति कर रही हैं ये प्लेटें एक-दूसरे के संदर्भ में तथा पृथ्वी के घूर्णन-अक्ष के संदर्भ में निरंतर गति कर रही है।

नोट:- कुछ विद्वान अमेरिकन प्लेट को उत्तरी तथा दक्षिणी दो अलग-अलग प्लेट मानते हुए मुख्य प्लेटों की संख्या 7 बताते हैं। प्लेटों में यह गति तीन प्रकार से संचालित होती है-

  1.  अपसारी गति
  2.  अभिसारी गति
  3.  संरक्षी गति अपसारी गति

अपसारी गति (Divergent Movement)

अपसारी गति में प्लेटें एक दूसरे से विपरीत दिशा में गतिशील होती हैं। इसमें दोनों प्लेटों के मध्य भ्रंश का निर्माण होता है जिसके सहारे मैग्मा का प्रवाह पृथ्वी की सतह पर होता है। इससे नवीन भूपर्पटी का निर्माण होता है। मध्य अटलान्टिक कटक इस गति का सर्वोत्तम उदाहरण है जहाँ कटक निर्माण के साथ ज्वालामुखी क्रिया व समुद्री नितल प्रसार की क्रिया हो रही है।

 अभिसारी गति (Convergent Movement)

अभिसारी गति में दो प्लेटें अभिसरित होकर आपस में टकराती है तथा इस प्रक्रिया में अधिक घनत्व वाला प्लेट कम घनत्व वाले प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाता है एवं अधिक गहराई पर पहुँचने के पश्चात ताप के प्रभाव से पिघल जाता हैं विश्व के वलित पर्वत, ज्वालामुखी, भूंकप व द्वीपीय चाप की व्याख्या इसी गति के द्वारा संभव है। यह अभिसरण तीन प्रकार से होता है-

  1.  महासागरीय-महाद्वीपीय प्लेट
  2.  महासागरीय-महासागरीय प्लेट
  3.  महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेट
 अभिसारी गति के सन्दर्भ में निम्न तथ्य महत्वपूर्ण हैं-
  •  अधिक घनत्व वाला प्लेट नीचे क्षेपित होता है तथा कम घनत्व वाला प्लेट संपीडित होने के कारण वलित हो जाता है।
  •  प्लेटो का क्षेपण लगभग 450 पर होता है तथा अधिक गहराई में ’’बेनी आॅफ जोन’’ में जाकर प्लेटें पिघल जाती हैं।
  •  जब दो प्लेटें समान घनत्व की होती हैं तो मोटे भूपृष्ठ का निर्माण होता है।

महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण की स्थिति में अन्तः महाद्वीपीय पर्वतों का निर्माण होता है, जैसे हिमालय व आल्प्स पर्वत का निर्माण। हिमालय पर्वत शृंखला का निर्माण भारतीय प्लेट तथा यूरेशियाई प्लेटों की अभिसरण गति के फलस्वरूप टेथिस सागर के मलबों एवं भूपटल में मोड़ के फलस्वरूप हुआ। अफ्रीकी एवं यूरेशियाई प्लेट के अभिसरण के फलस्वरूप आल्प्स एवं एटलस पर्वत का निर्माण हुआ।

राॅकी एवं एण्डीज पर्वत का निर्माण महाद्वीपीय-महासागरीय गति के परिणामस्वरूप हुआ है। महाद्वीपीय-महासागरीय प्लेटों के अभिसरण में अधिक घनत्व वाली महासागरीय प्लेट का महाद्वीपीय प्लेट के नीचे क्षेपण हो जाता है तथा अत्यधिक संपीडन के कारण प्लेट के किनारे के पदार्थों का वलन होता है। जिससे मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति होती है। अधिक घनत्व वाली प्लेट के नीचे धँसने से गर्त का निर्माण होता है। अधिक गहराई में महासागरीय प्लेट बेनी आॅफ जोन में जाकर पिघल जाती है। ये पिघली हुई चट्टानें मैग्मा के रूप में धरातल पर उद्गमित होती हैं। एण्डीज पर्वत श्रेणी पर ज्वालामुखी की उपस्थित तथा पेरु टेªन्च की व्याख्या इस गति के द्वारा होती है।

जब दोनों प्लेटें महासागरीय होती हें तो टकराव की स्थिति में एक प्लेट का अग्रभाग दूसरे प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाता है एवं उत्पन्न संपीडन से द्वीपीय तोरण एवं द्वीपीय चाप की उत्पत्ति होती हे। जापान द्वीप व चाप का निर्माण इसी गति के फलस्वरूप हुआ है। इस गति में क्षेपित प्लेट अधिक गहराई में जाकर पिघलती है जिससे ज्वालामुखी क्रिया होती है एवं ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण होता है।

 संरक्षी गति (Transtform Movement)

संरक्षी गति में प्लेटें एक-दूसरे के साथ क्षैतिज दिशा में प्रवाहित होती हैं। इस प्रक्रिया में न तो नये क्रस्ट का निर्माण होता है और न ही विनाश। प्लेटों के घर्षण के कारण इन क्षेत्रों में भूकंप उत्पन्न होता है। सेन एंड्रियाज भं्रश (कैलिफोर्निया) का निर्माण इसी गति के कारण हुआ है।

सिद्धांत की आलोचना (Criticism of Theory)

  • प्लेटों की दिशा व गतिशीलता को प्रमाणित करना कठिन है।
  •   कभी-कभी एक ही प्लेट दो दिशाओं में एक साथ गति करती हैं।
  •  प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त प्राचीन पर्वतों की उत्पत्ति की व्याख्या करने में असमर्थ है।
  •  प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त यह स्पष्ट करने में असमर्थ है कि जहाँ प्रसार सभी महासागरों में होता है वहाँ प्रत्यावर्तन के क्षेत्र (Subduction)प्रशान्त महासागर के तटों तक ही सीमित क्यों है।

इसके बावजूद प्लेटें विवर्तनिकी सिद्धान्त का अपना महत्व है। यह सिद्धान्त विभिन्न भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से करने में सक्षम है। इसके माध्यम से ज्वालामुखी व भूकंप की व्याख्या एवं वितरण प्रारूप की स्थिति को समझा जा सकता है। साथ ही नवीन वलित पर्वतों के निर्माण की प्रक्रिया की स्पष्ट व्याख्या संभव है। इस सिद्धान्त ने भू-वैज्ञानिक तथा भू-आकृतिक विचारधारा को एक नया मोड़ व नई दिशा प्रदान की है। इस सिद्धान्त की सहायता से भूपटल की संरचना व उसके अन्य प्रक्रमों को एक व्यापक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।

प्लेटों की तीनों गति (अपसारी, अभिसारी तथा संरक्षी) के आधार पर तीन प्रकार के प्लेट सीमांत होते हैं-

  1.  अपसारी गति – रचनात्मक प्लेट सीमांत (नये क्रस्ट का निर्माण)।
  2.  अभिसारी गति – विनाशी प्लेट सीमांत (क्रस्ट का क्षय)।
  3. संरक्षी गति – संरक्षी प्लेअ सीमांत (न तो क्रस्ट का निर्माण और न ही क्षय)।

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