संयुक्त राष्ट्र संघ की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार विश्व के प्रायः हर भाग में शुष्क भूमि का तेजी से विस्तार हो रहा है। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में विश्व की कुल भूमि का 40 प्रतिशत हिस्सा मरुभूमि है जिसके विस्तार पर यदि रोक न लगाई गई तो अगले 10 वर्षों में यह 56 प्रतिशत तक हो जायेगा। संयुक्त राष्ट्र द्वारा रेगिस्तान के विस्तार को रोकने से संबंधित किए गए समझौते में भारत भी भागीदार देश है। इसके लिए बनाई गयी बीस वर्षीय सघन राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAP) तैयार की गयी है। इसके अतिरिक्त एशियाई देशों में मरुस्थल विकास कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शुरू किया गया है। इसके लिए छह विषय आधारित नेटवर्को की पहचान की गयी है। भारत इस कार्यक्रम का मेजबान देश है। दिल्ली स्थिति केन्द्रीय बंजर भूमि अनुसंधान संस्थान (CAZRI) को इस कार्यक्रम का नेशनल टास्क मैनेजर चिह्नित किया गया है।
मरुस्थल रोधन एवं प्रमुख मिशन
एकीकृत बंजरभूमि विकास कार्यक्रम (Integrated Watershed Development Programme):
कार्यक्रम (IWDP) वर्ष 1989-90 से चलाया जा रहा है। 1 अप्रैल, 1995 से यह कार्यक्रम जलसंभर आधार पर जलसंभर विकास के सामान्य दिशा-निर्देशों के तहत चलाया जा रहा है।
सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Area Programme-DPAP) , सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम की शुरुआत 1973 में की गयी थी।
मरुभूमि विकास कार्यक्रम (DDP) वर्ष 1997-98 में राजस्थान, गुजरात और हरियाणा के उष्ण मरुभूमि इलाकों तथा जम्मू- कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के शीत मरुभूमि क्षेत्रों, दोनों ही में चाल किया गया था। कार्यक्रम का उद्देश्य पारिस्थितिकी संतुलन को प्राकृतिक संसाधनों, जैसे-जल, भूमि तथा वानस्पतिक क्षेत्र के दोहन, संरक्षण तथा विकास द्वारा सुरक्षित रखना तथा भू-उत्पादकता को बढ़ाना है।