हृदय सम्बन्धी रोग
हृदयावरण शोथ(Pericarditis) :- इस दशा में हृदय को ढकने वाली झिल्ली में सूजन आ जाती है और हृदयावरण कोश (pericardium) में तरल एकत्रित हो जाता है। फलस्वरूप हृदय की मुक्त गति नहीं हो पाती। हृदयावरण (पेरिकार्डियम) धीरे-धीरे मोटा और कठोर हो जाता है तथा हृदय को कसने लगता है, इस कारण हृदय फैल नहीं पाता और उसमें रक्त पूरी तरह नहीं भर पाता। इसी अवस्था को संकीर्णकारी हृदयावरण शोथ कहते हैं।
अन्तः हृदयशोथ(Endocarditis) :- हृदय कोष्ठों को भीतर की ओर से ढकने वाली कला एण्डोकार्डियम में सूजन आ जाने से यह रोग हो जाता है। ऐसा रुमेटी ज्वर(Rheumatic Fever) में हो सकता है। यह माइट्रल वाल्व को प्रभावित करता है।
कोरोनरी धमनी रोग :- कोरोनरी धमनी के धीरे-धीरे संकीर्ण होते रहने से अतिरिक्त घनास्र (Thrombus)के कारण यह यकायक बंद या अवरूद्ध हो सकती है। इस प्रकार हृद पेशी का रक्त संभरण(Supply) घट जाता है जिससे हृद पेशी स्थानिक अरक्तता तथा रोगी की छाती में पीड़ा या हृद शूल होता है।
रक्त संकुल हृदपात(Congestive heart failure):- यह अवस्था हृदय की पम्प क्रिया के असफल रहने के कारण होती है। रोगी को श्वास में कष्ट होता है तथा कोमल ऊतकों में शोभ-तरल एकत्रित हो जाता है।
रक्त(Blood) :- एक तरल ऊतक है जो दो भागों का बना होता है-एक तरल अंश जिसे प्लाज्मा कहते हैं, तथा एक जरा ठोस अंश जो रक्त कोशिकाओं के रूप में होता है। रक्त की संरचना निम्नलिखित घटकों से होती है-जल 91% प्रोटीन- 8% प्रतिशत (एल्बुमिन, ग्लोबुलिन, प्रोथ्राम्बिन तथा फाइब्रिनोजन)।
लवण 0.9 प्रतिशत (सोडियम क्लोराइड, सोडियम बाईकार्बोनेट तथा कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, लौह आदि के लवण)।
रक्त का शेष भाग अनेक कार्बनिक यौगिकों जैसे ग्लूकोज, वसा, यूरिया, यूरिक एसिड, क्रिएटिनिन, कोलेस्टेªरौल तथा अमीनो एसिड की अत्यन्त मात्रा होती है। इसके अलावा रक्त में आक्सीजन तथा कार्बन डाइआक्साइड गैस, आन्तरिक स्राव, एन्जाइम, एन्टिजन (प्रतिजन) पदार्थ होते हैं
रक्त कोशिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं –
- लोहित कोशिकाएँ (Red cells erythrocytes)
- श्वेत कोशिकाएँ (White cells or leukocytes)
- विम्बाणु (Platelets or throm-bocytes) ।
लाल रक्त कोशिकाएँ :- छोटी, उभयातल चक्रिकाओं (Biconcave) के समान होती हैं। इनके दोनों पृष्ठ अवतल होते हैं। एक क्यूबिक मिलीमीटर रक्त में लगभग 50 लाख लाल कोशिकाएँ होती हैं। ये एक आवरण अथवा पीठिका की बनी होती हैं जिसमें हीमोग्लोबिन भरा होता है। लाल कोशिकाओं के निर्माण के लिए प्रोटीन आवश्यक होता है, जो एमीनो एसिडों से बनता है। हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिए लोहा आवश्यक होता है। लाल कोशिकाओं का निर्माण अस्थि मज्जा में होता है।
लाल रक्त कोशिका की औसत आयु 120 दिन होती है। ऐसी कोशिका का विघटन जालिका-अन्तः कला तन्त्र(Reticuloendothelial System)में विशेषतः यकृत और प्लीहा में होता है।
हीमोग्लोबिन एक जटिल प्रोटीन है जिसमें लौह की पर्याप्त मात्रा होती है। आॅक्सीजन के साथ मिलकर आक्सी-हीमोग्लोबिन बनाते हैं। इस प्रकार रक्त के द्वारा आक्सीजन फेफड़ों से सभी ऊतकों तक पहुँच जाती है। रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा 15 ग्राम प्रति 100 घन सेंटीमीटर होती है। लैंडस्टीनर की ABO पद्धति के अनुसार रक्त को चार मुख्य वर्गों A,B,O,AB में बाँटा गया है।
श्वेत रक्त कोशिकाएँ (white blood cells) :- पारदर्शी तथा रंगहीन कोशिकाएँ जो लाल कोशिकाओं की तुलना में आकार में अधिक किन्तु संख्या में कम होती है। प्रत्येक घन मिलीमीटर रक्त में 6000-10000 (औसत 8000) श्वेत कोशिकाएँ होती हैं। इसमें कणिका कोशिकाएँ (Granulocytes )जिनका न्यूक्लियस बहुखंडित होता है तथा इनका प्रोटोप्लाज्म (जीवद्रव्य) कणिकीय होता है, इसी कारण इन्हें कणिका कोशिका कहते हैं।
उदासीन रागी कोशिकाएँ (Necrophilia cells) श्वेत कोशिकाओं में इनकी अधिकता होती है। इन्हें बहुरूपी केन्द्रक कोशिका भी कहते हैं। इनका रंग बैगनी होता है। इयोसीन रागी कोशिकाएँ (Eosinophil cells) इनकी संख्या बहुत कम होती है तथा लाल रंग की दिखती है। तीसरी क्षारक रागी कोशिकाएँ (Basophil cells)होती हैं।
लसिका कोशिकाएँ (Lymphocytes) :- इनकी उत्पत्ति अस्थिमज्जा के अतिरिक्त लसिका पर्वों, प्लीहा, यकृत और अन्य लिम्फ ऊतकों में भी होती हैं। ये दो प्रकार की लघु एवं वृहत लिम्फ कोशिकाएँ हैं। इसके अतिरिक्त कुछ इनसे भी अधिक आकार की कोशिकाएँ होती हैं जो मोनोसाइट (एक केन्द्रक श्वेत कोशिका) कहलाती हैं। इनकी संख्या 5 प्रतिशत होती हैं।
न्यूट्रोफिल और मोनोजाइट शरीर को सूक्ष्म जीवों से बचाने के लिए आवश्यक योग देती हैं। इनमें जीवित बैक्टीरिया का भक्षण करने की क्षमता होती हे। न्यूट्रोफिलों में एक प्रोटीन विघटनकारी एन्जाइम भी होता है जिसकी सहायता से वे जीवित ऊतक को विघटित कर सकते हैं।
श्वेत कोशिकाबहुलता (Leucocytosis) :- इस दशा में श्वेत रक्त कोशिकाओं की गणना बढ़ जाती है। सामान्यतः 10,000 प्रति घन मिमी से अधिक होने पर ऐसा होता है।
श्वेत कोशिकाअल्पता (Lymphocytosis) :- श्वेत कोशिकाओं की संख्या 5000 प्रति घन मिमी से कम होने पर ऐसी दशा हो जाती है।
लसिका कोशिकाबहुलता (Lymphocytosis)– रक्त में लिम्फोसाइट की गणना बढ़ने की स्थिति में ऐसा होता है।
कणिका कोशिकाहीनता (Agranulocytosis) :- बहुरूप केन्द्रक अथवा कणिकाओं की संख्या का अत्यधिक घट जाना।
रक्त विम्बाणु (Platelets) :- इन लघु कोशिकाओं का आकार लाल रक्त कोशिका की तुलना में लगभग एक तिहाई, एक घन मिली रक्त में इनकी संख्या 3 लाख होती है।
रक्त प्लाज्मा :- एक हल्के पीले रंग का तरल है जिसकी अभिक्रिया तनिक क्षारीय होती है। प्लाज्मा के माध्यम से लवण, वसा, ग्लूकोज, एमीनो एसिड तथा अन्य पोषक पदार्थ ऊतकों तक पहुँचते हैं। इसके अतिरिक्त प्लाज्मा इन ऊतकों से अपशिष्ट उत्पाद ले जाता है।
उदाहरणत : यूरिया, यूरिक एसिड तथा कार्बन डाइआक्साइड का कुछ अंश।
प्लाज्मा प्रोटीनों में तीन मुख्य है-
एल्बुमिन, ग्लोब्युलिन एवं फाइब्रिनोजन :- एल्बुमिन 100ml रक्त में सामान्यतः 3-5 ग्राम, ग्लोब्युलिन 100ml रक्त में 2-3 ग्राम होता है।
जीवन में मानव रक्त सदा तनिक क्षारीय होता है तथा इसका Ph7 .35-7.45 होता है।
रक्त का स्कंदन(Coagulation of blood) :- रक्त स्राव होने के तुरन्त पश्चात् रक्त गाढ़ा और चिपचिपा हो जाता है।
लसिका तथा रुधिर में अन्तर
रुधिर (blood)
- रुधिर में लाल रुधिराणु पाये जाते हैं।
- रुधिर का रंग लाल होता है।
- आक्सीजन तथा पोषक पदार्थ अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
- विलेय प्लाज्मा प्रोटीन अधिक होती है। न्यूट्रोफिल्स की संख्या अधिक होती हे
लसिका (Lymph)
- लसिका में लाल रुधिराणु नहीं पाये जाते।
- लसिका का रंग श्वेत होता है।
- उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है।
- अविलेय प्लाज्मा प्रोटीन अधिक होती है। चलिस्फोसाइट की संख्या अधिक होती है।
खुला रुधिर परिसंचरण तन्त्र
- धमनियां कोटरों में खुलती हैं।
- रुधिर प्रवाह की गति बहुत धीमी होती है।
- इस परिसंचरण तन्त्र में रक्त केशिकाएँ नहीं होती हैं।
- शरीर के विभिन्न अंग रुधिर के सीधे सम्पर्क में रहते हैं।
बंद रुधिर परिसंचरण तन्त्र
- धमनियां कोशिकाओं में खुलती हैं।
- रुधिर उच्च दबाव व गति से प्रवाहित होता है।
- रक्त केशिकाएँ पाई जाती हैं।
- शरीर के अंग रुधिर के सीधे सम्पर्क में नहीं रहते हैं। तथा एक लाल जेली के रूप में जम जाता है। इस जेली अथवा थक्का के संकुचित होने या सिकुड़ने पर इससे हल्के पीले रंग का द्रव निकलता है। जो सीरम (serum) कहलाता है।
इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम (E.C.G) :- हृदय के संकुचन तथा अनुशिथिलन के समय हृदय पेशियों में विद्युत रासायनिक तरंगों का प्रवाह होता है। हृदय के विभिन्न कक्षों में उत्पन्न इन विद्युतीय तरंगों के अन्तरों को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम नामक मशीन की सहायता से नापा व अंकित किया जा सकता है। इन अन्तरों का इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम द्वारा अंकन इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम कहलाता है। स्फिग्मोमैनोमीटर की सहायता से रुधिर दाब की माप की जाती है।
निवाहिका तन्त्र (Portal stem) :- केशिकाओं में विभक्त होकर किसी अंग में समाप्त हो जाती है। ऐसे तन्त्र को निवाहिका तन्त्र कहते हैं।
संवहनी तन्त्र (Conducting system) :- हृदय स्पंदन के लिए हृदय में विशिष्ट हृद पेशियों से बना संवहनी तन्त्र होता है। यह तन्त्र हृदय स्पन्दन को पूरे हृदय में पहुँचाने का कार्य करता है।